हमारी आकांक्षाएँ ही नहीं
कभी-कभार हमारे भय भी वक़्त होते हैं ।
द्वेष अंधेरा नहीं है
तारों भरी रात
इच्छित स्थान पर
वह प्रेम भाव से पिघल कर
फिर से जम कर
हमारा पाठ हमें ही बता सकते हैं ।
कर सकते हैं आकाश को विभाजित ।
विजय के लिए यज्ञ करने से
मानव-मूल्यों के लिए लड़ी जाने वाली लड़ाई
ही कसौटी है मनुष्य के लिए ।
युद्ध जय-पराजय में समाप्त हो जाता है
जब तक हृदय स्पंदित रहता है
लड़ाइयाँ तब तक जारी रहती हैं ।
आपसी विरोध के संघर्ष में
मूल्यों का क्षय होता है ।
पुन: पैदा होते हैं नए मूल्य...
पत्थरों से घिरे हुए प्रदेश में
नदियों के समान होते हैं मूल्य ।
आन्दोलन के जलप्रपात की भांति
काया प्रवेश नहीं करते
विद्युत के तेज़ की तरह
अंधेरों में तुम्हारी दृष्टि से
उद्भासित होकर
चेतना के तेल में सुलगने वाले
रास्तों की तरह होते हैं मूल्य ।
बातों की ओट में
छिपे होते हैं मन की तरह
कार्य में परिणित होने वाले
सृजन जैसे मूल्य ।
प्रभाव मात्र कसौटी के पत्थरों के अलावा
विजय के उत्साह में आयोजित
जश्न में नहीं होता ।
निरन्तर संघर्ष के सिवा
मूल्य संघर्ष के सिवा
मूल्य समाप्ति में नहीं होता है
जीवन-सत्य ।
अनुवाद: - शशिनारायण स्वाधीन
2 टिप्पणियाँ
अच्छी कविता...
जवाब देंहटाएंwarwar rao ji ki kavita parhi. yah man ko jhhakjhhorati hai.bhav dil ko chhu gaya .aap bade
जवाब देंहटाएंrachanakaro ki rachnaye dey rahe hain.is liye roj
padhane ki ichha hoti hai.dhanyawad.
dr.dadoolal joshi 'farhad;
farhad4152@gmail.com
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.