मूँड आय मोचो सरग, आरू धरतनी पायँ।
दूनोंचो सौकार मयँम कमया माने आयँ।
सिर मेरा आकाश है, और धरती पाँव।मैं दोनो का साहूकार हूँ, कमाऊ आदमी हूँ।
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नाँगर, बैला, भुईं चो, कोन धरेसे नावँ।
कमया चो कमई चलो, जियो देस चो गाँव।
हल बैल और भूमि को, कौन पूछता है?कमाऊ की कमाई चले, जियें देश के गाँव।
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कुकडा केबे बालसी, केबे होली, साँज।
कमया नीं जाने असन, बूता धरली माँज।
मुर्गा कब बोला, कब साँझ हुई?मेहनती नहीं जागता, मेहनत का नशा एसा गहराया।
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काटुन काटुन धान धन, मारुन मारुन बेठ।
कमया मन डँड पावला, पुटका बनली सेठ।
धान धन काट काट कर गुमेट गुमेट कर बैठमजदूरों नें कष्ट साध्य परिश्रम
किया, और ‘पुटका’ बन गया सेठ।
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काम कमानी गाँव चो, आरू सहर चो गोठ।
’गजा मूँग बदला दुनों, जिनगी होली मोठ।
काम कमाई गाँव की और शहर की बात।दोनो गजामूँग (मीत) हो गये, एसी स्थिति
में,ज़िन्दगी जो दुबली थी वह मोटी हो गयी।
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लकड़ी गोटक रान चो, कुरची बनली काय।
माची मन के आपलो, निरने नायँ चिताय।
एक जंगल की लकड़ी कुर्सी क्या बन गयीवह अपनी माचियों को बिलकुल नहीं
पहचानती।
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सहरे जाउन खादलो, मिठई मंगल साय।
लेका काजे आनलो, लाई चला छुचाय।
शहर में जा कर, मंगलसाय ने मिठाई खा ली।और अपने लडके के लिये सिर्फ चना
लाई खरीद लाया।
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बोबो खाउन लाडरा, पाउन पाउन लाड़।
एबे सब चो भूत के, खेदेसे बटपाड़।
रोटी खा कर लाडला पा पा कर लाड।सब के भूतों को खदेडता सुर चढा, सिरहा हो
गया।
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मँदहा मँदहा हाट ने, बिकुन खादला लाज।
मुँडे अकरली बेसरम, तिहँके होली ताज।
1 टिप्पणियाँ
ache dohe
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