प्राण शर्मा वरिष्ठ लेखक और प्रसिद्ध शायर हैं और इन दिनों ब्रिटेन में अवस्थित हैं।
आप ग़ज़ल के जाने मानें उस्तादों में गिने जाते हैं।
आप के "गज़ल कहता हूँ' और 'सुराही' काव्य संग्रह प्रकाशित हैं, साथ ही साथ अंतर्जाल पर भी आप सक्रिय हैं।
आप के "गज़ल कहता हूँ' और 'सुराही' काव्य संग्रह प्रकाशित हैं, साथ ही साथ अंतर्जाल पर भी आप सक्रिय हैं।
खुशी ज़िंदगी की कहीं खो न जाए
ये डर है, ये खुशबू हवा हो न जाए
यही सोच कर मौन रहता हूँ अक़सर
बुजुर्गों के आगे ख़ता हो न जाए
कभी रेत पर कुछ भी लिखता नहीं हूँ
कहीं तेज़ बारिश उसे धो न जाए
हमेशा ये संदेह रहता है मुझको
वो दुश्मन है , काँटे कभी बो न जाए
उसे अपना दुःख मैं सुनाता नहीं हूँ
वो पगली बिलख कर कहीं रो न जाए
5 टिप्पणियाँ
यही सोच कर मौन रहता हूँ अक़सर
जवाब देंहटाएंबुजुर्गों के आगे ख़ता हो न जाए
-बहुत उम्दा..आनन्द आ गया,
हमेशा ये संदेह रहता है मुझको
जवाब देंहटाएंवो दुश्मन है , काँटे कभी बो न जाए ...
प्राण साहब की गजलें हमेशा ही दिल को छूती हैं ... ताज़ा ग़ज़ल के शेर इतनी सादगी और सरल भाषा में बुने हैं की सीधे दिल तक जाते हैं .... गहरा दर्शन झलकता है शेरों में ...
उम्दा गजल ...बधाई
जवाब देंहटाएंजीवन दर्शन को सुन्दर और सादे शब्दों में संजोया है आपने इस रचना में | बधाई प्राण जी |
जवाब देंहटाएंसादर,
शशि पाधा
खुशी ज़िंदगी की कहीं खो न जाए
जवाब देंहटाएंये डर है, ये खुशबू हवा हो न जाए
यही सोच कर मौन रहता हूँ अक़सर
बुजुर्गों के आगे ख़ता हो न जाए
उसे अपना दुःख मैं सुनाता नहीं हूँ
वो पगली बिलख कर कहीं रो न जाए
अहा हा क्या कहा जाय प्राण साहब के बारे में वाह बेजोड़ अद्भुत लाजवाब कमाल। सरल सहज भाषा में शेर कहने का हुनर जैसा प्राण साहब के पास है वैसा और कहीं मुश्किल से दिखाई पड़ता है उनकी यही खूबी उन्हें सबसे अलग दर्ज में खड़ा कर देती है। उनसे मैंने बहुत कुछ सीखा है और सीख रहा हूँ। ईश्वर उन्हें लम्बी उम्र और अच्छी सेहत अता फरमाये -आमीन।
नीरज
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