प्राण शर्मा वरिष्ठ लेखक और प्रसिद्ध शायर हैं और इन दिनों ब्रिटेन में अवस्थित हैं। आप ग़ज़ल के जाने मानें उस्तादों में गिने जाते हैं।
आप के "गज़ल कहता हूँ' और 'सुराही' काव्य संग्रह प्रकाशित हैं, साथ ही साथ अंतर्जाल पर भी आप सक्रिय हैं।
आप के "गज़ल कहता हूँ' और 'सुराही' काव्य संग्रह प्रकाशित हैं, साथ ही साथ अंतर्जाल पर भी आप सक्रिय हैं।
बुला कर घर में हर इक अजनबी को
न डाला कर तू ख़तरे में खुदी को
बहुत देखे हैं मैंने लोग ऐसे
तरसते रहते हैं जो दोस्ती को
बगीचे की सजावट उनसे ही है
सराहें क्यों न हम हर इक कली को
चलेगा उसका जादू हर किसी पर
सजा कर देख प्यारे ज़िंदगी को
न जाने किस जहां में खो गई है
चलो, हम ढूँढ लाएं सादगी को
3 टिप्पणियाँ
बहुत ख़ूब।
जवाब देंहटाएंन जाने किस जहां में खो गई है
जवाब देंहटाएंचलो, हम ढूँढ लाएं सादगी को
बहुत खूब सर , क्या बात है .
एक छोटे से शेर में आपने ज़िन्दगी का फलसफा कह दिया ..
सलाम कबूल करे सर.
आपका अपना विजय
आपकी यह गजल मन को छू गयी,जिससे गुजरना एक सुकून भरे अहसास को महसूस करने जैसा है,
जवाब देंहटाएंन जाने किस जहां में खो गयी है
चलो,हम ढूंढ लायें सादगी को.
बेहतरीन अंदाज,बधाई
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.