आज फिर से भूख की और रोटियों की बात हो
खेत से रूठे हुए सब मोतियों की बात हो
रचनाकार परिचय:-
जिनसे तय था ये अँधेरे दूर होंगे गाँव के
अब अंधेरों से कहो उन सब दियों की बात हो
इक नए युग में हमें तो लेके जाना था तुम्हें
इस समुन्दर में कहीं तो कश्तियों की बात हो
जो तुम्हारी याद लेकर आ गई थीं एक दिन
धूप में जलती हुई उन सर्दियों की बात हो
जिनको तुमने था उजाड़ा कल तरक्की के लिए
आज फिर उजड़ी हुई उन बस्तियों की बात हो
ज़िक्र जब भी जंगलों का, आंसुओं का, आए तो
पेड़ से टूटी हुई सब पत्तियों की बात हो
खेत से रूठे हुए सब मोतियों की बात हो
अंग्रेजी साहित्य में एम. ए., एम. फ़िल., डी. फ़िल. डॉ0 राकेश जोशी मूलतः राजकीय महाविद्यालय, डोईवाला, देहरादून, उत्तराखंड में अंग्रेजी साहित्य के असिस्टेंट प्रोफेसर हैं| इससे पूर्व वे कर्मचारी भविष्य निधि संगठन, श्रम मंत्रालय, भारत सरकार में हिंदी अनुवादक के तौर पर मुंबई में पदस्थापित रहे| मुंबई में ही उन्होंने थोड़े समय के लिए आकाशवाणी विविध भारती में आकस्मिक उद्घोषक के तौर पर भी कार्य किया| उनकी कविताएँ अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने के साथ-साथ आकाशवाणी से भी प्रसारित हुई हैं| छात्र जीवन के दौरान ही उन्होंने साहित्यिक पत्रिका "लौ" का संपादन भी किया| उनकी एक काव्य-पुस्तिका "कुछ बातें कविताओं में" सन 1997 में प्रकाशित हुई थी| उनका एक ग़ज़ल संकलन शीघ्र प्रकाश्य है|
अब अंधेरों से कहो उन सब दियों की बात हो
इक नए युग में हमें तो लेके जाना था तुम्हें
इस समुन्दर में कहीं तो कश्तियों की बात हो
जो तुम्हारी याद लेकर आ गई थीं एक दिन
धूप में जलती हुई उन सर्दियों की बात हो
जिनको तुमने था उजाड़ा कल तरक्की के लिए
आज फिर उजड़ी हुई उन बस्तियों की बात हो
ज़िक्र जब भी जंगलों का, आंसुओं का, आए तो
पेड़ से टूटी हुई सब पत्तियों की बात हो
1 टिप्पणियाँ
जिनसे तय था ये अँधेरे दूर होंगे गाँव के
जवाब देंहटाएंअब अंधेरों से कहो उन सब दियों की बात हो
बहुत उम्दा ग़ज़ल!
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.