अभिषेक सागर बिहार के एक छोटे से गाँव मे जन्मे अपनी साहित्यिक अभिरुचि तथा अध्ययन शील प्रवृत्ति के कारन आप लेखन से जुडे। वर्तमान मे एन एच पी सी मे कार्य करते हुए आप साहित्य शिल्पी के संचालक सदस्यों में हैं।
अपनी संगीत शिक्षा से संतुष्ट न हो कर भीमसेन ग्वालियर भाग आये और वहाँ के 'माधव संगीत विद्यालय' में प्रवेश ले लिया। ग्वालियर के 'करवल्लभ संगीत सम्मेलन' में उनकी मुलाकात में विनायकराव पटवर्धन से हुई। मिले। विनायकराव को आश्चर्य हुआ कि सवाई गन्धर्व उसके घर के बहुत पास रहते हैं। सवाई गन्धर्व ने भीमसेन को सुनकर कहा, "मैं इसे सिखाऊँगा यदि यह अब तक का सीखा हुआ सब भुला सके।” इसी तरह अनेक ज्ञानियों का जिनमें इनायत खान, स्यामाचार्या जोशी आदि है के सहयोग व सीख से उन्हें जो ज्ञान मिला उसके फलस्वरूप वे एक महान संगीतकार के रूप में ख्यातिप्राप्त हुए। वर्ष 1941 में भीमसेन जोशी ने 19 वर्ष की उम्र में मंच पर अपनी पहली प्रस्तुति दी। उनका पहला एल्बम 20 वर्ष की आयु में निकला,जिसमें कन्नड़ और हिन्दी में कुछ धार्मिक गीत थे। इसके दो वर्ष बाद वह रेडियो कलाकार के तौर पर मुंबई में काम करने लगे। विभिन्न घरानों के गुणों को मिलाकर भीमसेन जोशी अद्भुत गायन प्रस्तुत करते थे। जोशी जी किराना घराने के सबसे प्रसिद्ध गायकों में से एक माने जाते थे। उन्हें उनकी ख़्याल शैली और भजन गायन के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। पंडित भीमसेन जोशी ने कई फ़िल्मों के लिए भी गाने गाए। उन्होंने ‘तानसेन’, ‘सुर संगम’, ‘बसंत बहार’ और ‘अनकही’ जैसी कई फ़िल्मों के लिए गायिकी की।
शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में पं. भीमसेन जोशी जैसी लोकप्रियता कम ही कलाकारों को प्राप्त हुई है। छह दशकों तक देश विदेश में अपने असंख्य प्रशंसकों को अपने गायन से मंत्रमुग्ध करने वाले पं. भीमसेन जोशी ऐसे अनुपम रत्न थे कि जिनके नाम के साथ जुड़कर भारतरत्न की पदवी सम्मानित होती है। उन्हें 1972 में 'पद्म श्री, 1985 में 'पद्म भूषण', 1999 में 'पद्म विभूषण' तथा 4 नवम्बर, 2008 को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' प्रदान किया गया था। वे 'संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार' से भी सम्मानित किये गये हैं। पंडित भीमसेन जोशी का निधन 24 जनवरी, 2011 को पुणे, महाराष्ट्र में हुआ इसके साथ ही एक युग का अंत हो गया था।
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