"लगता है जिन्दगी और मौत के बीच का फासला बहुत कम है ....!"
"ऐसा मत बोलो ........जन्म हो या मृत्यु, जो कुछ ऊपर वाले ने लिख दिया वह होना तय है, घबराने से कुछ नहीं मिलता! जिन्दगी के साथ सुख-दुःख तो लगे ही रहते हैं|"
"और तो कुछ नहीं, बस छोटी का विवाह मेरे सामने हो जाता फिर भले ही चला जाता| यही चिंता मुझे कमजोर बनाती है|"
"ऐसा मत बोलो ........जन्म हो या मृत्यु, जो कुछ ऊपर वाले ने लिख दिया वह होना तय है, घबराने से कुछ नहीं मिलता! जिन्दगी के साथ सुख-दुःख तो लगे ही रहते हैं|"
"और तो कुछ नहीं, बस छोटी का विवाह मेरे सामने हो जाता फिर भले ही चला जाता| यही चिंता मुझे कमजोर बनाती है|"
हरियाणा स्थित जगाधरी में जन्मे सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा 32 वर्ष तक दिल्ली में जीव-विज्ञान के प्रवक्ता के रूप में कार्यरत रहने के उपरांत सेवानिवृत हुए हैं तथा वर्तमान में स्वतंत्र रूप से लघुकथा, कहानी, बाल - साहित्य, कविता व सामयिक विषयों पर लेखन में संलग्न हैं।
आपकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, यथा “आज़ादी”, “विष-कन्या”, “तीसरा पैग” (सभी लघुकथा संग्रह), “बन्धन-मुक्त तथा अन्य कहानियाँ” (कहानी संग्रह), “मेरे देश की बात” (कविता संग्रह), “बर्थ-डे, नन्हे चाचा का” (बाल-कथा संग्रह) आदि। इसके अतिरिक्त कई पत्र-पत्रिकाओं में भी आपकी रचनाएं निरंतर प्रकाशित होती रही हैं तथा आपने कुछ पुस्तकों का सम्पादन भी किया है।
साहित्य-अकादमी (दिल्ली) सहित कई संस्थाओं द्वारा आपकी कई रचनाओं को पुरुस्कृत भी किया गया है।
आपकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, यथा “आज़ादी”, “विष-कन्या”, “तीसरा पैग” (सभी लघुकथा संग्रह), “बन्धन-मुक्त तथा अन्य कहानियाँ” (कहानी संग्रह), “मेरे देश की बात” (कविता संग्रह), “बर्थ-डे, नन्हे चाचा का” (बाल-कथा संग्रह) आदि। इसके अतिरिक्त कई पत्र-पत्रिकाओं में भी आपकी रचनाएं निरंतर प्रकाशित होती रही हैं तथा आपने कुछ पुस्तकों का सम्पादन भी किया है।
साहित्य-अकादमी (दिल्ली) सहित कई संस्थाओं द्वारा आपकी कई रचनाओं को पुरुस्कृत भी किया गया है।
"क्या पता ऐसा होगा भी या नहीं?"
"अगर ऐसे ही सोचते रहे तो कुछ भी ठीक नहीं होगा| विलाप से तो कभी कोई हालात नहीं सुधरते ... पहले से परहेज या सावधानी बरती होती तो यह नौबत ही क्यों आती?" बहन ने मिजाजपुर्सी के नाम पर आखरी तीर भी चला दिया| उसके चेहरे पर बीमारी के साथ-साथ चिन्ता की लकीरें और गहरी हो गयीं, "....... .......... ............. ...........!" वह बिस्तर पर पड़ा चुपचाप छत में बनती -बिगड़ती आकृतियों में खो गया|
"मेरे लायक कोई काम हो तो बताओ| अब मुझे चलना होगा| तुम्हारे जीजाजी आफिस से आते होगें|" बहन अस्पताल के स्टूल से उठ चुकी थी| उसने दोनों हाथ जोड़ दिये| उसकी आँखे किसी अनहोनी के भय से नम थीं|
"आप उदास क्यों हैं अंकल? उठिए आपकी दवा का समय हो गया|"
"दवा से क्या होगा सिस्टर बेटी, असर तो होना नहीं है|"
"हिम्मत हारने से कुछ नहीं होता, दवा आप पर पूरा असर कर रही है| मैंने अभी आपकी लेटेस्ट रिपोर्ट चेक की हैं| आप तो तेजी से इम्प्रूव कर रहे हैं|"
"बेटी दिलासा देने का शुक्रिया, परन्तू झूठ तो भाग्य की लकीरों को नहीं बदल सकता न|"
"अंकल प्लीज़ ऐसा न कहिए, मैं आपसे झूठ नहीं बोलूँगी|"
"सिस्टर क्या सचमुच पिछले जन्म में तुम मेरी बेटी थीं?"
"मैं तो इस जन्म में भी आपकी बेटी ही हूँ| आप जब भले - चंगे होकर घर जाने को होंगे, तब मैं आपसे एक गिफ्ट जरूर लूंगी|"
"बिटिया तुम्हारी बातों से मुझमें जीने की आस के साथ-साथ तमन्ना भी जाग जाती है| तुम मुझे ठीक करके ही मानोगी|"
"अंकल .... बातें बाद में करेंगे, पहले आप दवा ले लीजिए, आपको दवा देने के बाद ही मैं दूसरे पेशेन्ट्स को दवा देने जा पाऊँगी|"
"बेटा! दवा तो दे दो पर इतने सारे लोगों की देखभाल करते-करते थक नहीं जाती हो?"
"आपके ठीक हो जाने के बाद इस सवाल का आन्सर आपको अपने आप मिल जायेगा|" उन्होंने सिस्टर से दवा लेने के लिए अपना मुहँ खोल दिया|श्वेत परिवेश की स्वामिनी उस कन्या ने दवा उनके खुले मुँह में रखने के बाद पानी से भरा आधा गिलास उनके हाथ में पकड़ा दिया|
"यह हुई न अच्छे बच्चों वाली बात!" दवा उनके हलक से उतरते ही वह खिलखिला पड़ी| उनके मुर्झाए चेहरे पर बच्चों सी किलकारी खेल गयी| उन्हें लगा कि उनके हृदय ने सुचारू रूप से काम करना शुरू कर दिया है| सामने खड़ी देव-कन्या की अनुभूति सी देती उस बाला के चेहरे पर उभरी संतोष की रेखाओं में उन्हें अपने प्रश्न का उत्तर भी मिल गया| उन्होंने मन ही मन कहा, "एंजल्स कहीं और नहीं, इसी धरती पर रहते हैं|"
तभी उनकी छोटी बेटी ने उनके कक्ष में प्रवेश किया, "पापा! आज तो आप बहुत स्वस्थ लग रहे हैं..."
1 टिप्पणियाँ
little but impressive
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