आपसे जब दोस्ती होने लगी
हाँ गमों में अब कमी होने लगी
रोज की ये दौड़ रोटी के लिए
भूख के घर खलबली होने लगी
हाँ गमों में अब कमी होने लगी
रोज की ये दौड़ रोटी के लिए
भूख के घर खलबली होने लगी
नवीन विश्वकर्मा (गुमनाम पिथौरागढ़ी)
ज़िन्दगी मेरी भली होने होने लगी
रख दिए कागज़ में सारे ज़ख्म जब
सूख के वो शायरी होने लगी
शहर भर में ज़िक्र है इस बात का
पीर की चादर बड़ी होने लगी
फूल तितली चिड़िया बेटी के बिना
कैसे ये दुनिया भली होने लगी
सर्द दुपहर उम्र की है साथ में
याद स्वेटर ऊनी सी होने लगी
ज़ख्म अब कहने लगे 'गुमनाम' जी
आपसे अब दोस्ती होने लगी
2 टिप्पणियाँ
रख दिए कागज़ में सारे ज़ख्म जब
जवाब देंहटाएंसूख के वो शायरी होने लगी
अच्छी गज़ल...बधाई
आपसे जब दोस्ती होने लगी
जवाब देंहटाएंहाँ गमों में अब कमी होने लगी.......Kya baat Hai Navin Ji........Hamara bhi kuch aisa hi hai........ (h)
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.