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गमों में अब कमी होने लगी [ग़ज़ल] - गुमनाम पिथौरागढ़ी

Ishq-Faiz
आपसे जब दोस्ती होने लगी
हाँ गमों में अब कमी होने लगी

रोज की ये दौड़ रोटी के लिए
भूख के घर खलबली होने लगी

रचनाकार परिचय:-



नवीन विश्वकर्मा (गुमनाम पिथौरागढ़ी)
आप मेरे हम सफ़र जब से हुए
ज़िन्दगी मेरी भली होने होने लगी

रख दिए कागज़ में सारे ज़ख्म जब
सूख के वो शायरी होने लगी

शहर भर में ज़िक्र है इस बात का
पीर की चादर बड़ी होने लगी

फूल तितली चिड़िया बेटी के बिना
कैसे ये दुनिया भली होने लगी

सर्द दुपहर उम्र की है साथ में
याद स्वेटर ऊनी सी होने लगी

ज़ख्म अब कहने लगे 'गुमनाम' जी
आपसे अब दोस्ती होने लगी

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2 टिप्पणियाँ

  1. रख दिए कागज़ में सारे ज़ख्म जब
    सूख के वो शायरी होने लगी

    अच्छी गज़ल...बधाई

    जवाब देंहटाएं
  2. आपसे जब दोस्ती होने लगी
    हाँ गमों में अब कमी होने लगी.......Kya baat Hai Navin Ji........Hamara bhi kuch aisa hi hai........ (h)

    जवाब देंहटाएं

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