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राष्ट्र-वंदना [कविता] - पद्मा मिश्रा

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कोटि कोटि कंठों से मुखरित
मातु तुम्हारी चरण वन्दना
पद्मा मिश्रारचनाकार परिचय:-
पद्मा मिश्रा का०हि०वि०, वाराणसी में पात्रता प्राप्त व्याख्याता हैं। आप कई विधाओं में रचना करती हैं, यथा - कविता, कहानी, ललित निबन्ध, पुस्तक समीक्षा आदि। आपकी कई रचनाओं का प्रकाशन कादम्बिनी, परिकथा, वर्तमान साहित्य, स्वर मंजरी, मधुस्यंदी, पुष्पगंधा, हिंदी चेतना, सृजक, विश्वगाथा [नव्या] आदि पत्रिकाओं तथा हिंदुस्तान, दैनिक जागरण [कानपुर, जम्शेदपुर], प्रभात खबर, दैनिक भास्कर, न्यू इस्पात मेल आदि पत्रों में हुआ है। 
"साँझ का सूरज" [कहानी संग्रह] तथा ''सपनों के वातायन" [काव्य संग्रह] आपकी प्रकाशित कृतियाँ हैं। काव्य संकलन "जो दिल में है" तथा कहानी संकलन "पठार की खुशबू" में भी आपकी रचनायें प्रकाशित हैं। बहुभाषीय साहित्यिक संस्था ''सहयोग'' तथा ''अक्षर-कुम्भ'' की आप सक्रिय सदस्य हैं।
आपको ''अक्षर कुम्भ अभिनन्दन सम्मान", "किशोरी देवी साहित्य सम्मान" तथा बाल साहित्य परिषद की ओर से "जय प्रकाश भारती सम्मान" से सम्मानित किया जा चुका है।
राष्ट्रगान बन गुंजित नभ-तल,
देश प्रेम की मधुर भावना.
बनूँ जागरण-गीत, मातु ऐसा वर देना.
भूख, गरीबी, संघर्षों के विकट निशाचर,
घूम रहे चहुँ ओर, शश्य-श्यामला धरा पर
अपने हाथों में कलम थाम, अक्षर-योद्धा,
जब लिख देंगे श्रम गान, अभावों के पट पर,
मै सृजन सूर्य बन जगूं, मातु इतना वर देना.
शब्द शब्द बन ज्योति प्रखर जागे शिखरों पर,
शत शत दीप जले, भारत माँ के चरणों पर,
मै विरल दीप बन जलूं, मातु इतना वर  देना.

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