कवितायें लिखी नहीं जाती वे एक भिन्न मानसिक स्थिति में कवि के अवचेतन से अवतरित होती हैं। अमन दलाल की कविताओं में कुछ इसी तरह की अनुभूति, मौलिकता और ताजगी है। इन कविताओं को किसी सांचे में फिट कर के देखना मुश्किल है, नदी की तरह हैं ये कवितायें और आपको अपने साथ बहा ले जाने में सक्षम भी हैं।
सुप्रसिद्ध लेखक राजीव रंजन प्रसाद का जन्म बिहार के सुल्तानगंज में २७.०५.१९७२ में हुआ, किन्तु उनका बचपन व उनकी प्रारंभिक शिक्षा छत्तीसगढ़ राज्य के जिला बस्तर (बचेली-दंतेवाडा) में हुई। आप सूदूर संवेदन तकनीक में बरकतुल्ला विश्वविद्यालय भोपाल से एम. टेक हैं। विद्यालय के दिनों में ही आपनें एक पत्रिका "प्रतिध्वनि" का संपादन भी किया। ईप्टा से जुड कर उनकी नाटक के क्षेत्र में रुचि बढी और नाटक लेखन व निर्देशन उनके स्नातक काल से ही अभिरुचि व जीवन का हिस्सा बने। आकाशवाणी जगदलपुर से नियमित उनकी कवितायें प्रसारित होती रही थी तथा वे समय-समय पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हुईं। उनकी अब तक प्रकाशित पुस्तकों "आमचो बस्तर", "मौन मगध में", "ढोलकल", "बस्तर के जननायक", "तू मछली को नहीं जानती" आदि को पाठकों का अपार स्नेह प्राप्त हुआ है बस्तर पर आधारित आपकी कृति "बस्तरनामा" अभी हाल ही में प्रकाशित हुई है। आपकी "मौन मगध में" के लिये आपको महामहिम राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय राजभाषा पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है वर्तमान में आप सरकारी उपक्रम "राष्ट्रीय जलविद्युत निगम" में कार्यरत हैं। आप साहित्य शिल्पी के संचालक सदस्यों में हैं।
माना जाता है कि अमन की कविताओं को पढते हुए नये कवियों से बहुधा भाषा को ले कर होने वाली शिकायत नहीं होती, कवि के पास न तो शब्दों का अभाव है न ही शैली में लोचपना। इसका अर्थ यह नहीं कि कवितायें कठिन हैं अथवा बोझिल बिम्बों से भरी हुई हैं। अमन की कवितायें सुगठित हैं और मुकम्मल हैं। अधिकतम कवितायें नयी उम्र की प्रतिनिधि हैं और यह उचित भी है। छोटी छोटी कवितायें और मन की गहरी गहरी बात यह अमन की कविताओं की विशेषता है। बहुत सी कवितायें “क्या है?”, “क्यों हैं?” जैसे सवाल उठाती प्रतीत होती हैं तो कई कल्पनालोक से कोई रोशनी ले कर उतरती हुई ज्ञात होती हैं – “मिट्टी के तन काँच हृदय कौन कुम्हार लगाये? / जीवन तेरा/ जीवन मेरा/ इसका कौन चितेरा?” अथवा यह उदाहरण – “सखि मैं भी उतर कर डुबकी लगा लेता/ मन की नदिया का लेकिन घाट कहाँ पर है?” अथवा यह अंतर्व्यथा – “क्या बताऊ तुझसे/ कि क्या क्या चाहती दुनियाँ मुझसे?”। अमन की कवितायें वस्तुत: अपनी तलाश की ही अभिव्यक्ति हैं। इन कविताओं के भीतर आत्म भी है और आध्यात्म भी है। कुछ एक स्थानों पर तो कवि कृष्ण से प्रभावित प्रतीत होते हैं और यह उनकी कविता श्रंखला “कान्हा का हर रास अनय है” मे बखूबी पढा जा सकता है। यही नहीं अमूर्त से वे अपनी कई रचनाओं में बात करते प्रतीत होते हैं। एक उदाहरण देखें – “तेरी सदा से सम्पदा है/ जितना आकाश/ जितनी वसुधा है”। कवि प्रेम की अभिव्यक्ति में प्रयोगधर्मी न हो कर भावना की सरिता के साथ ही बहे हैं। यह प्रेम एसा भी नहीं कि परिणतियों पर खुद से सवाल नहीं पूछता। यह उदाहरण देखें कि – “मैं तुम पर जितना आसक्त हुआ हूँ/ भीतर उतना रिक्त हुआ हूँ”। यह सवाल आत्मविश्लेषण करने तक ही नहीं अपितु परिभाषित करने तक भी जाता है – “मेरे भीतर में जो अकेलापन है/ या मेरे अकेले में जो भीतरपन है/ वो सब भी तुम्हारा ही किया धरा है/ मैं जानता हूँ/ इतनी सीमाओं तक/ किसी का किसी में होना/ हमारे दौर में प्रेम कहलाता है”। प्रेम भी वह कि नज़्में लिखने के लिये कवि किस हद तक जाता है देखें – “खामोशियाँ ही लिखती हैं/ आँसू हँसने लगते हैं/ और नज़्म पूरी हो जाती है”। कविता में शिकायतें और मनुहार भी हैं तो नसीहतें भी – “ये तुम पर है करो अंधेरे का चयन/ सुबह ने तो खोल दिये हैं सूरज के अवगुण्ठन” यह उदाहरण भी देखें – “संधिनि इस संधि के/ टूट गये हैं सारे धागे”। जीवन है बहाव तक यह बात साधारण तो हर्गिज नहीं है और कवि आकर्षण को प्रेम भी नहीं मानता वह तो मन के जिस गाँव की बात कर रहा है यह आप भी समझें – “आकर्षण सारे रूप के हैं/ और जाना मन के गाँव तक/ पार लगा कर नाँव बोली/ जीवन है बस बहाव तक”। अमन दलाल की कवितायें उनके दिल की बात है। ये कवितायें अभी बहुत बोझ ढोती प्रतीत नहीं होती और अपनी ही तलाश से बाहर निकलने को छटपटा भी रही हैं – “नये आँगन के ढेल की/ जीवन के खेल की/ अब कैसे बहे धार/ अवांछित खड़ा हूँ इस पार!”। कवि देख रहा है हर ओर और उसे “एक तरफ़ तो मुहाने नज़र आते हैं/ एक तरफ़ ये कि गहरा जा रहा हूँ”। मन की गहरी बात ये पंक्तियाँ भी खूब कहती हैं कि “सधी धूप में सूख जाता है पानी/ इन आँखों ने भी ताल सा एक दिन देखा है” । कविता से उम्मीद होती है कि वह समाज को देती क्या है? यह बहस बहुत लम्बी चली है कि अपने मन की व्यथा और पीडा का समाज से क्या जुडा? मुझे लगता है कई बार यह तर्क कवि का सही विश्लेषण नहीं होते चूंकि वह प्रेम और प्रियतमे भी कहता है तो उसका संबोधन समाज ही होता है। कवि अगर अपने बंजारेपन की बात कर रहा है तो क्या यह बात केवल उसकी है और पाठक खुद से छुआ महसूस ही नहीं करेगा? अगर आप एसा मानते हैं तो यह उदाहरण देखें कि क्या यह आपसे भी जुडी पंक्तियाँ नहीं हैं – “हर पट अपनी चौखट है/ बूंद बूंद अपना पनघट है/ ये विड़म्बना किंतु बंधु है/ हर घट एक नया जमघट है/ अकिंचित सब पखेरु मन के/ कच्चे सारे रंग सुमन के/ उड़ चले हैं दूर गगन/ तोड़ कर सारे बंधन/ एक बंजारापन एक बंजारापन”। सामाजिक सरोकार अमन की कविता में भी चुपके हुए हैं उन्हें महसूस करने की आवश्यकता है, यह उदाहरण देखें – “लौट आया हूँ फिर/ उसी गुमनामी और गुलामी में/ जहाँ से मै निकल आया था/ कैद करके इसी कमरे को/ चार दीवारों के बीच”। बात समाधानों और संघर्षों की भी करती है कवितायें – “हल नहीं हैं, उलझन तो पता हैं/ उस पार तो जाने जैसी गिरह होगी” अथवा यह उदाहरण देखें कि “माझी तेरे देश में/ कश्तियाँ क्यों रोती हैं?”। बात यह भी बहुत सशक्त है – “तू ही बाँट देना सबमे मुझे/ सबकी ख़्वाहिशों के हिसाब से/ कम-से-कम मैं बच जाती/ नुमाईश होने से”। अमन दलाल का यह कविता संग्रह “हिन्द युग्म” प्रकाशन से शीघ्र प्रकाश्य है। मात्र सौ रुपये मूल्य की यह पुस्तक सार्थक, सुग्राह्य, प्रेमपगी, गहरी और भावना भरी कविताओं का संकलन है। अमन की कविताओं में उनकी उम्र अभिव्यक्त होती है और अभी उन्हें लम्बा रास्ता तय करना है, यह कहा जा सकता है। कवि को उनके पहले कविता संग्रह के लिये हार्दिक बधाई।
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