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आवारगी [लघुकथा]- सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा

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"अब तक सुना था कि आवारा किस्म की नसल या तो पशुओं में होती है या फिर कुछ आदमी ही आवारा होते हैं, यह नहीं पता था कि आवारा नसल औरतों में भी पाई जाती है." बेटे ने माँ से कहा तो माँ बिफर पड़ी, "कैसी बहकी - बहकी बातें कर रहा है. शर्म कर अपनी माँ के सामने ऐसी बातें करते हुए तुझे शर्म नहीं आती?"

 सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा रचनाकार परिचय:-

हरियाणा स्थित जगाधरी में जन्मे सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा 32 वर्ष तक दिल्ली में जीव-विज्ञान के प्रवक्ता के रूप में कार्यरत रहने के उपरांत सेवानिवृत हुए हैं तथा वर्तमान में स्वतंत्र रूप से लघुकथा, कहानी, बाल - साहित्य, कविता व सामयिक विषयों पर लेखन में संलग्न हैं।
आपकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, यथा “आज़ादी”, “विष-कन्या”, “तीसरा पैग” (सभी लघुकथा संग्रह), “बन्धन-मुक्त तथा अन्य कहानियाँ” (कहानी संग्रह), “मेरे देश की बात” (कविता संग्रह), “बर्थ-डे, नन्हे चाचा का” (बाल-कथा संग्रह) आदि। इसके अतिरिक्त कई पत्र-पत्रिकाओं में भी आपकी रचनाएं निरंतर प्रकाशित होती रही हैं तथा आपने कुछ पुस्तकों का सम्पादन भी किया है।
साहित्य-अकादमी (दिल्ली) सहित कई संस्थाओं द्वारा आपकी कई रचनाओं को पुरुस्कृत भी किया गया है।

बेटा बोला, "माँ तो बेटे का सब कुछ जानती है, उससे कैसी शर्म?” बेटे पर सच का भूत सवार था.
"अरे मुर्ख! तेरी माँ भी एक औरत है और तू उसी के सामने औरतों को गाली बक रहा है."
"मुझे मुर्ख नही, बदजात कहो माँ क्योंकि आवारगी मैंने कहीं बाहर नहीं देखी."
उस माँ को यह उम्मीद नहीं थी कि उसका बेटा इतना घिनौना सच इस तरह बोल जाएगा. उसके तन -बदन में आग लग गयी. उसने कहा, "तेरे बाप से बदला लेने का और कोई तरीका मेरे पास नहीं था."
बेटे को अपनी औकात से नफरत हो गयी और वह आवारा पशुओं के झुण्ड में शामिल हो गया.

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