क्या लाना है बाज़ार से
पूछते हो तुम
वह लिस्ट थमा देती है।
लो तुम्हारा सब सामान ले आया।
पूछते हो तुम
वह लिस्ट थमा देती है।
लो तुम्हारा सब सामान ले आया।
एक शिक्षाविद के रूप में कार्यरत व स्वेच्छा से एक सम्वेदनशील सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता होने के साथ ही सर्वोपरि एवं सर्वप्रथम डा0 छवि निगम एक उत्साही लेखिका हैं। राजनीति शास्त्र विषय में लिखे कई उच्च कोटि के शोध प्रपत्र उच्चस्तरीय राष्ट्रीय व् अंतर्राष्ट्रीय जनरलों में प्रकाशित हो चुके हैं। इनकी कई उत्कृष्ट रचनाओं को विशिष्ट पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। हिंदी व अंग्रेजी दोनों ही भाषाओं में महारत रखते हुये ये वर्तमान में अनेक विधाओं में सक्रिय लेखनरत हैं- जिनमें विचारोत्तेजक एवं व्यंगात्मक लेख, कहानियाँ एवं कविताएँ शामिल है, जिनका सतत प्रकाशन विभिन्न समाचारपत्रों पत्रिकाओं व संकलनों में होता आ रहा है।
वह अपना कुछ तलाशती है
तुम्हारा अहं उफनता है
वह एहसान ओढ लेती है।
ऊबने का ठाठ हासिल तुम्हें
वह फिर उधेड़ती है,
नया बुनती है
तुम्हारी बेचैनी जगहें बदलती है
बेतरतीब कर देते हो
उसके संजोये डिब्बे डिब्बियां
फाड़ डालते हो
अल्मारिओं में सहेजी उसकी कतरनें
ख्वाबों की किरचें बुहार कर डाल आती है
वह डस्टबिन में चुपचाप
ढूँढ लाती है खोई हुई एक जुराब
चश्मा घड़ी रुमाल चाभियाँ..
सिकुड़ती चली जाती है
कम होता जाता है
बिजली और फोन का बिल
जिंदादिल ठहाके लगाते हो तुम
उसके होंठ भी फ़ैल जाते है
सेमिसरकल में
उसका भी तो रिमोट कण्ट्रोल बन चुका है न
तुम्हारा ध्यान ही नहीं जाता
कि
वह अब नहीं रूठा करती
सिलवटें तक नहीं छोड़ती बिस्तर में तुम्हारे
तुम्हारा हर फ्रेम चौकोर था
उसके चाँद ने भी बदल लिया आकार
तुम चूस लेते हो उसकी गर्माहट
वह फिर अपना कोई कोना जला लेती है।
रफू नहीं करती सूराख अपने
हवा सी बहती है
आवाज़ नहीं करती।
बावरी है
तुम्हारे मकान में अपना घर तलाशा करती है।
लेकिन बताना है तुम्हें
वह तुम्हारे न होने से भरपूर है
पर तुम उसके होने से बिलकुल खाली।
0 टिप्पणियाँ
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.