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ड्राइंगरूम [लघुकथा] - रचना व्यास

DushyantKumar
शादी से पहले भी वह बहुत सफाई-पसन्द थी| विशेषकर ड्राइंगरूम को वह हमेशा सजा-संवरा देखना चाहती थी| उसे बहुत कोफ़्त होती थी जब उसकी सास दीवान पर बैठकर बत्तियां बनाती, मेथी की पत्तियाँ तोड़ती| चादर तो गंदी होती ही मगर अपने तेल से भीगे बालों को दीवार से सटाकर वह अपनी उपस्थिति के चिन्ह दर्शाती| सीमित कमरे होने से पोते उसके कमरे में ही देर रात तक पढ़ते| रात को बूढी सास का ड्राईंगरूम में सोना उसे नागवार गुजरा| उपेक्षावश सीढ़ियों के मध्य के चार बाई चार के स्थान में उसके बिस्तर लगा दिए गए|
दुर्भाग्यवश एक रात वह लुढ़क कर हॉल में आ गिरि| रीढ़ की हड्डी में चोट के अतिरिक्त सिर का घाव भरने का नाम न लेता| पड़ोसी, रिश्तेदार तबियत पूछने आते इसलिए रोगी का आसन ड्राईंगरूम में ही जमा| बीस दिन तक गृहिणी ड्राईंगरूम की दुर्दशा पर मन ही मन दुखी होती रही|
अचानक इक्कीसवें दिन बुढ़िया की अर्थी वहीं से उठी| बारह दिन के क्रियाकर्म तक घर में रौनक थी| अगले दिन से ड्राईंगरूम अपनी वीरानी पर आँसू बहा रहा था|
रचना व्यासरचनाकार परिचय:-

रचना व्यास मूलत: राजस्थान की निवासी हैं। आपने साहित्य और दर्शनशास्त्र में परास्नातक करने के साथ साथ कानून से स्नातक और व्यासायिक प्रबंधन में परास्नातक की उपाधि भी प्राप्त की है। 

आप अंतर्जाल पर सक्रिय हैं।





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