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कलियुग में भी [कहानी] - डॉ० कौशलेन्द्र मिश्र



आगरा से जयपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर है भरतपुर। हाँ, वही .... पक्षियों वाला भरतपुर। कभी मथुरा से दिल्ली जाते समय ट्रेन में लोकल लड़कों के मुँह से यह गाना सुना था - भरतपुर लुट गओ रात मोरी अम्मा ....। लड़कों का समूह मज़ा ले-लेकर गाना गा रहा था।

उसी राष्ट्रीय राजमार्ग पर लड़के की कार भागी चली जा रही थी। लड़के को जयपुर जाना था लेकिन भरतपुर रुकते हुये। अचानक लड़के को लगा कि शायद वह आगे निकल गया है। सामने थोड़ी दूर पर एक गाँव था, उसने रास्ता पूछने की ग़रज़ से गाड़ी धीमी की। गाड़ी धीमी करते ही एक लड़की सड़क के किनारे आ गयी, लगा जैसे कि वह लिफ़्ट  चाहती हो। लड़की ने, जो कि अभी पूरी तरह लड़की भी नहीं बन पायी थी, गहरा मेकअप किया हुआ था जिससे उसका प्राकृतिक सौन्दर्य बुरी तरह नाराज़ था। पता नहीं उसने मेकअप किया ही क्यों था जबकि वह बला की ख़ूबसूरत थी।
गाड़ी के धीमी होते ही लगभग तीस की उम्र का एक युवक भी सड़क पर सामने आ गया। युवक ने लड़के को सलाम करते हुये आमंत्रित किया – आइये सर !
लड़के ने पूछा – भरतपुर आगे है क्या ?
युवक ने बड़ी विनम्रता से कहा – नहीं सर! वह तो आप पीछे छोड़ आये हैं ....तीन-चार किलोमीटर पीछे। जहाँ  से आप मुड़े हैं वहीं से सीधे जाकर बस ...भरतपुर ही है । ......एक बार उतर कर आइये न सर ! – युवक ने फिर आमंत्रित किया ।
अब तक बला की ख़ूबसूरत लड़की भी गाड़ी के पास आ गयी थी। उसने आधुनिक कपड़े पहन रखे थे ....यानी तंग और छोटे। लड़की के कपड़े इतने छोटे थे कि कारपोरल स्क्रिप्ट के बेहतरीन नज़ारे के प्रदर्शन के लिये उसे तनिक भी झुकने की आवश्यकता नहीं थी। लड़की ने अनारकली स्टाइल में मुस्कराते हुये आदाब किया, फिर एक शोख़ अदा के साथ हाथ के इशारे से लड़के को आमंत्रित किया।
सड़क के किनारे एक झोपड़ीनुमा चाय की दुकान पर खड़ी दो युवा और एक अधेड़ होने की ढलान पर उन्मुख स्त्री ने हाथ के इशारे से लड़के को इशारा किया । लड़के के, जो कि वाकई किसी लड़के की उम्र से आगे एक गबरू मर्द की श्रेणी का मानुष हो चुका था, विशेष ज्ञानचक्षु उन्मीलित हो चुके थे । उसने अपनी गाड़ी मोड़ी और भरतपुर की ओर भाग गया । उसने बेड़िया जैसी कुछ जातियों के पुश्तैनी धन्धे के बारे में पढ़ रखा था, अंदाज़ लगाया कि शायद उन्हीं लोगों का गाँव रहा होगा ।
भरतपुर पहुँचकर लड़के ने सबसे पहले एक होटल की शरण ली और एक ब्लेक कॉफ़ी का ऑर्डर दिया । काली पेण्ट, सफ़ेद बुर्राक शर्ट और गले में लाल टाई पहने एक सुन्दर सी लड़की कॉफ़ी लेकर आयी तो गबरू मर्द की उम्र वाले लड़के को फिर एक झटका लगा – अयं ....यहाँ भी बेड़िनी !
लड़की ने टेबल पर कॉफ़ी रखी और एक एथिकल मुस्कुराहट फेक कर चली गयी । लड़का अब तक पूरी तरह एक तूफ़ान की ज़द में आ चुका था। उसके सामने दो लड़कियों के चेहरे थे – एक बला की ख़ूबसूरत और दूसरी केवल ख़ूबसूरत। एक जो अभी तक लड़की भी नहीं बन पायी थी और दूसरी जो अच्छी तरह लड़की बन चुकी थी। एक जो कारपोरल बिज़नेस में उतर चुकी थी और दूसरी जो एक मध्यम श्रेणी के होटल में वेट्रेस बन चुकी थी। एक लड़की सवाल थी जबकि दूसरी लड़की उसी सवाल का ज़वाब थी । तूफ़ान तेज़ होता गया तो लड़के को लगा कि अब उसे कुछ करना होगा ।
थोड़ी देर बाद तूफ़ान की ग़िरफ़्त में आ चुका लड़का मात्र बीस की स्पीड में गाड़ी चलाता हुआ उस बला की ख़ूबसूरत लड़की के गाँव में पहुँच गया। बीस की स्पीड ने उसे कुछ और सोचने-समझने का मौका दे दिया था।
लड़का गाँव पहुँचा तो वहाँ कुछ और चेहरे थे ...नयी बेड़िनियाँ। तो क्या पहले वाली बेड़िनियों की बुकिंग हो चुकी थी! लड़के की निगाहों ने इधर-उधर टटोलने की कोशिश की लेकिन वह बला की ख़ूबसूरत लड़की उसे कहीं नज़र नहीं आयी।
लड़के के भीतर का तूफ़ान कुछ और तेज़ हो गया। लड़का गाड़ी से उतरा तो लिपे-पुते चेहरे वालियों से घिर गया  उसने पहले वाली लड़की के बारे में पूछा तो सब खिलखिला उठीं, बोलीं – हम भी तो हैं .......। लड़कियों से घिरा लड़का मकड़ी के जाल में फस चुका था ...मुक्ति का कोई उपाय नहीं बचा। एक लड़की उसे अपने साथ ले जाने में सफल हो ही गयी।
कमरे में जाकर लड़की ने एक लीथल अंगड़ायी लेते हुये पूछा – सर चाय लेंगे या कॉफ़ी ?
लड़के ने कहा, अभी-अभी कॉफ़ी पी है, मुझे कुछ नहीं चाहिये।
लड़की एक तरह से खींचती हुयी सी लड़के को पलंग तक ले गयी और लगभग उसके ऊपर गिरते-गिरते बोली – ऐसे-कैसे सर ! कुछ तो चाहिये ........।
लड़के ने स्पष्ट महसूस किया जैसे उसके शरीर में बिजली दौड़ने लगी हो । लड़का फ़िज़िक्स वाला था, सोचने लगा – कितने वोल्ट का करेण्ट होगा यह?
लड़का शून्य जैसा होता जा रहा था, उसने आर्त स्वर में विनती की- क्या आप मेरे साथ बाहर चलेंगीं ...मेरा मतलब है खेतों की तरफ़ ...?
लड़की को यह कस्टमर कुछ अज़ीब सा लगा, पूछा – क्यों ? यहाँ ठीक नहीं लग रहा क्या ? कोई परेशानी है?
लड़के ने कहा – मैं शहर से आया हूँ, आपका गाँव देखना चाहता हूँ ....और खेत भी।
लड़की को अब पक्का विश्वास हो गया कि लड़का बड़े बाप का सिरफिरा बेटा है। उसने व्यापारिक चतुरता का दाँव चलते हुये कहा- देखिये मैं जितना अधिक समय आपको दूँगी मेरा उतना ही नुकसान होगा .....आप समझ रहे हैं न! आप मेरे साथ अधिक समय गुज़ारना चाहते हैं तो उस नुकसान की भरपायी तो करनी होगी न!
लड़के ने तुरंत ज़वाब दिया – ठीक है, भरपायी हो जायेगी । चलो मेरे साथ ......।
लड़की अब सीरियस हो गयी, कुछ सोचकर बोली – ठीक है आप काका जी से बात कर लीजिये ।

काका जी ने पहले तो साफ मना कर दिया लेकिन फिर बड़ी ना-नुकुर के बाद ऊँचे दाम पर सौदा तय कर लिया। पूरे एक दिन और एक रात का सौदा हुआ।
लड़की आज खूब ख़ुश थी ...दस कस्टमर बराबर एक कस्टमर और साथ में घूमना-फिरना भी। लड़के ने भी चैन की सांस ली।
लड़के ने उस छोटे से गाँव की गलियों में घूम-घूम कर जायज़ा लिया ...फिर खेतों की मेड़ों से होता हुआ दिन भर घूमता रहा। उसने लड़की से बहुत सारी बातें कीं, पूछा कि - वह कहाँ तक पढ़ी है? पाँचवीं के बाद आगे पढायी क्यों नहीं की? उसके कितने भाई बहन हैं? पूरा परिवार इस धन्धे में है ....फिर भी किसी को कोई संकोच क्यों नहीं होता? वह कुछ और काम क्यों नहीं करती  खाने में उसे क्या-क्या अच्छा लगता है ? कौन-कौन से शहर देखे हैं? बुढ़ापे की योजनायें ........

रात हुयी तो लड़की ने किंचित संकोच से पूछा – खाना बाहर खायेंगे .....या ......?
लड़के ने कहा – आप ख़ुद बनायेंगी तो यहीं ...वरना बाहर
लड़की का संकोच और भी बढ़ गया, बोली – घर का खाना ...... खा लेंगें आप?
- हाँ ! क्यों नहीं .......हम तो रोज ही घर का बना खाना खाते हैं ।
उत्तर सुनकर लड़की हँस दी। भोजन को लेकर अब वह सहज हो गयी थी। उसे यह सिरफिरा कस्टमर अच्छा लगने लगा था। उसने पूछा – क्या बनाऊँ आपके लिये?
लड़के ने कहा – कुछ भी ....जो आपको अच्छा लगता हो।
अचानक लड़की को लगा कि जैसे उस सिरफिरे कस्टमर ने लड़की के भीतर एक आँधी चला दी थी। वह उस आँधी में उड़ने लगी .....सूखे पत्ते जैसी।
भोजन बनकर तैयार हुआ तो लड़की थाली ले कर आयी। लड़के ने कहा – सब लोग एक साथ खायेंगे ......आपके काका जी, माँ, दादी और भाई ...सब लोग।
लड़की असमंजस में पड़ गयी, यहाँ तो ऐसा कभी नहीं होता, जब जिसको समय मिला खा लिया । वह बोली- पहले आप खा लीजिये, घर के लोग बाद में खा लेंगे ।
लड़का मानने को तैयार नहीं । आख़िर में काका जी और लड़की को उसके साथ बैठना ही पड़ा । भोजन के बाद काका जी जाने लगे तो लड़के को याद दिलाया कि कल दोपहर को उसके चौबीस घण्टे पूरे हो रहे हैं ।

लड़की ने आज पलंग पर नयी बेडशीट बिछायी और तकिया पर धुले हुये कवर चढ़ा दिये। जब सोने का समय आया तो भीतर चल रही आँधी से लड़की थरथरा उठी। लड़के ने लड़की से कहा कि वह माँ के पास जाकर सो जाय। लड़के का प्रस्ताव सुनकर लड़की के भीतर की आँधी और तेज़ हो गयी। उसे लगा जैसे कि वह पूरे दाम लेकर भी कस्टमर को खाली हाथ वापस भेजे दे रही है।
उसकी व्यावसायिक हुलस और धार कुन्द होने लगी थी फिर भी उसने धीर से कहा – आपने काका जी को पूरे पैसे दिये हैं ....वह भी चौबीस घण्टे के लिये ।

अंततः दोनो एक साथ सोये तो लड़के के दिमाग़ में फ़िज़िक्स लहरा उठी। पहली बार उसे पता चला कि फ़िज़िक्स और फ़िज़ियोलॉजी में कितना घनिष्ठ सम्बन्ध है। अपने शरीर में प्रवाहित हो रहे हज़ारों वोल्ट के करेण्ट का प्रतिरोध करने में लड़के को बड़ी मानसिक मशक्कत करनी पड़ी। लड़के ने तो करेण्ट का प्रतिरोध करने में ऐन-केन प्रकारेण सफलता पा ली लेकिन लड़की के भीतर की आँधी अब तक तूफ़ान में बदल चुकी थी। यह तूफ़ान सतरंगा था ......सतरंगे तूफान पर सवार होकर वह किसी और ही लोक में पहुँच चुकी थी।

सुबह हुयी तो चाय पीते-पीते सिरफिरे लड़के ने लड़की से कल वाली बला की ख़ूबसूरत लड़की के बारे में पूछा। लड़की को जैसे झटका लगा, अच्छा तो इस ब्रह्मचर्य के पीछे का राज यह है। एक झटके में लड़की का तूफ़ान थम गया। उसे बला की ख़ूबसूरत लड़की से ईर्ष्या हुयी और सिरफिरे लड़के पर रोष। उसने ज़वाब दिया – काका जी से पूछ लेना उसका घर ।
लेकिन लड़के ने काका जी के साथ जाने से मना कर दिया। लड़की को जाना ही पड़ा।

अभी-अभी तेरह पूरी करके मात्र चौदहवें साल में पड़ी वह बला की ख़ूबसूरत लड़की अभी-अभी स्नान करके आयी थी। आज बिना मेकअप के वह और भी बला की लग रही थी। रात वाली लड़की लड़के को वहीं छोड़कर जाने लगी तो लड़के ने उसे भी रोक लिया। उसने हंसते हुये चिढ़ाया – अभी चौबीस घण्टे पूरे नहीं हुये हैं।
रात वाली लड़की को पहली बार लज्जा की अनुभूति हुयी। उसके कान के लोब्स लाल हो गये। बहुत मन हुआ कि कह दे – ऐसे कस्टमर के साथ तो कोई जीवन भर भी रहे तो भी चौबीस घण्टे पूरे नहीं हो पायेंगे।
लड़की कुछ नहीं बोली।

आगरा से जयपुर को निकला लड़का भरतपुर के पास एक छोटे से गाँव में तीन दिन से हिलगा हुआ था । इस बीच गाँव के लोगों के साथ उसकी चार बार मीटिंग्स हुयीं । मीटिंग्स में बहसें हुयीं । बहसों में कभी उत्तेजना हुयी कभी निराशा हुयी, कभी असहयोग की आँधी तो कभी सहयोग की बयार बही ...और अंततः लड़के की जीत हुयी। तय हुआ कि गाँव में शिक्षा और चिकित्सा की व्यवस्था में लड़का जो कुछ भी करेगा उसमें गाँव के सभी लोग उसे सहयोग करेंगे।

चौथे दिन जब लड़का पुनः ज़ल्दी ही वापस आने का वादा करके वहाँ से जाने लगा तो उसके पैर छूने के लिये लोगों में होड़ सी लग गयी। लड़की की माँ ने पास आ कर लड़के के हाथों में वे सारे नोट थमा दिये जो उसने तीन दिन के लिये काका जी को दिये थे। लड़का मना करता रहा पर लड़की की माँ नहीं मानी। काका जी ने आकर कहा – ले लो बेटा ! तब लड़के ने यह कहते हुये नोट ले लिये कि यह रकम लड़की की अमानत के रूप में उसके पास रहेगी।
बला की ख़ूबसूरत लड़की ने आज पूरे कपड़े पहने हुये थे, यानी  सलवार सूट .....और मेकअप भी नहीं किया था। सिरफिरे लड़के ने तीन ही दिन में ने न जाने कितनों पर जादू कर दिया था। लड़की पास आकर सिरफिरे के पैर छूने के लिये झुकी ही थी कि उसने उसे उठाकर अपनी छाती से लगा लिया। लड़की की आँख़ें नम हो आयीं तो सिरफिरा बोला – तुम मेरे स्कूल की पहली स्टूडेण्ट बनोगी।
रात वाली लड़की पास तक नहीं आयी, दूर ही खड़ी रही। उसकी आँखें पहली बार किसी कस्टमर के लिये बादल की भूमिका में पूरी ईमानदारी के साथ न्याय कर रही थीं।
गाड़ी में बैठने से पहले सिरफिरे लड़के की आँखों ने रात वाली लड़की को खोज ही लिया। वह लड़की के पास आया तो उसने अपना चेहरा आँचल से ढक लिया। सिरफिरे लड़के ने उसके सिर पर जैसे ही हाथ रखा तो वह उसके पैरों पर भरभरा कर ढेर हो गयी।

ऊपर से ईश्वर ने आश्चर्य से देखा कि कलियुग में भी एक गन्दी लड़की पवित्र हो रही थी।  ठीक उसी समय सिरफिरे लड़के के मोबाइल फ़ोन की रिंग टोन बज उठी – तमसोमा ज्योतिर्गमय ...मृत्योन्मा अमृतं गमय ......


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