तुलसीदास जी ने रामचरित मानस के बालकाण्ड में स्वयं लिखा है कि उन्होंने रामचरित मानस की रचना का आरंभ अयोध्यापुरी में विक्रम संवत १६३१ (१५७४ ईस्वी) के रामनवमी, जो कि मंगलवार था, को किया था। गीताप्रेस गोरखपुर के श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार के अनुसार रामचरितमानस को लिखने में गोस्वामी तुलसीदास जी को २ वर्ष ७ माह २६ दिन का समय लगा था और संवत् १६३३ (१५७६ ईस्वी) के मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष में रामविवाह के दिन उसे पूर्ण किया था। रामनवमी के पावन अवसर पर गोस्वामी तुलसीदास के रामजन्म व उनके बालपन से जुडे कुछ पद प्रस्तुत हैं -
भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी।
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी।।
लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी।
भूषन वनमाला नयन बिसाला सोभासिन्धु खरारी।।
कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता।
माया गुन ग्यानातीत अमाना वेद पुरान भनंता॥
करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता।
सो मम हित लागी जन अनुरागी भयउ प्रकट श्रीकंता।।
बिप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार।
निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार॥
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सुभग सेज सोभित कौसल्या रुचिर राम सिसु गोद लिये।
बाललीला गावत हुलरावत पुलकित प्रेम पीयुष पिये॥१॥
कबहू पौढि पय पान करावत कबहूं राखत लाय हिये।
बार बार बिधु बदन बिलोकत लोचन चारु चकोर पिये॥२॥
सिव विरंच मुनि सब सिहात हैं चितवत अंबुज ओट दिये।
तुलसीदास यह सुख रघुपति को पायो तो काहू न बिये॥३॥
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कौसल्या रघुनाथ कों लिये गोद खिलावे।
सुंदर बदन निहारकें हँसि कंठ लगावे॥१॥
पीत झगुलिया तन लसे पग नूपुर बाजे।
चलन सिखावे राम कों कोटिक छबि लाजे॥२॥
सीस सुभग कुलही बनी माथे बिंदु बिराजे।
नील कंठ नख केहरी कर कंकन बाजे॥३॥
बाल लीला रघुनाथ की यह सुने और गावे।
तुलसीदास कों यह कृपा नित्य दरसन पावे॥४॥
1 टिप्पणियाँ
स्तरीय रचनाओं के लिए धन्यवाद ।लोककथाओं को भी प्रमुखता दें । साहित्य शिल्पी परिवार को निरन्तर प्रगति की शुभकामनाएँ ।
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