गतांक (संविधान-सभा में राजभाषा विचार [लेख] - भाग 3, संविधान-सभा में राजभाषा विचार [लेख] - भाग 2) व संविधान-सभा में राजभाषा विचार [लेख] - भाग 1 से आगे...
पन्द्रह वर्ष की कालावधि के बाद अंग्रेज़ी भाषा का प्रयोग समाप्त होना चाहिए था। पन्द्रह वर्ष की अवधि सन् 1965 में समाप्त होने वाली थी। उससे पूर्व ही संसद में उस अवधि को अनिश्चित काल तक बढ़ाने का प्रस्ताव पेश हुआ और वह पारित हो गया। अब संविधानिक स्थिति यह है कि नाम के वास्ते तो संघ की राजभाषा हिंदी है और अंग्रेज़ी सह भाषा है, जबकि वास्तव में अंग्रेज़ी राजभाषा है और हिंदी केवल सह भाषा।
राजभाषा नियावली
(1) संविधान के अनुच्छेद 120 में यह प्रावधान है कि संसद का कार्य हिन्दी में अथवा अंग्रेजी में किया जा सकता है परन्तु राज्यसभा के सभापति महोदय या लोकसभा के अध्यक्ष महोदय विशेष परिस्थिति में सदन के किसी सदस्य को अपनी मातृभाषा में सदन को संबोधित करने की अनुमति दे सकते हैं।
(2) संविधान के अनुच्छेद 343 इस प्रकार है-
अनुच्छेद 343 (1): संघ की राजभाषा:
(1)संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अन्तरराष्ट्रीय रूप होगा।
(2) खंड (1) में से किसी बात के होते हुए भी इस संविधान के प्रारम्भ से पन्द्रह वर्ष की कालावधि के लिए संघ के उन सब राजकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा, जिनके लिए ऐसे प्रारम्भ के ठीक पहले से प्रयोग किया जाता था। परन्तु राष्ट्रपति उक्त कालावधि में, राजकीय प्रयोजनों में से किसी के लिए अंग्रेजी भाषा के साथ-साथ हिन्दी भाषा का तथा भारतीय अंकों के अन्तरराष्ट्रीय रूप के साथ-साथ देवनागरी रूप का प्रयोग प्राधिकृत कर सकेगा।
(3) इस अनुच्छेद में किसी बात के होते हुए भी संसद पन्द्रह साल की कालावधि के पश्चात् विधि द्वारा (क) अंग्रेजी भाषा का, अथवा (ख) अंकों के देवनागरी रूप का, ऐसे प्रयोजनों के लिए उपबंधित कर सकेगी जैसे कि ऐसे विधि में उल्लिखित हो।
(3)संविधान का अनुच्छेद 351 हिन्दी भाषा के विकास एवं उसके स्वरूप निर्धारण से सम्बंधित है।
अनुच्छेद 351. हिंदी भाषा के विकास के लिए निर्देश:
“हिन्दी भाषा की प्रसार वृद्धि करना, उसका विकास करना ताकि वह भारत की सामासिक के सब की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके और उसकी प्रकृति में हस्तक्षेप किए बिना हिंदुस्तानी में और आठवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट भारत की अन्य भाषाओं में प्रयुक्त रूप, शैली और पदों को आत्मसात करते हुए और जहाँ आवश्यक या वांछनीय हो, वहाँ उसके शब्द-भंडार के लिए मुख्यतः संस्कृत से और गौणतः वैसी उल्लिखित भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समृद्धि सुनिश्चित करना संघ का कर्तव्य होगा”।
राजभाषा सम्बंधित संवैधानिक उपबंध (Constitutional Provisions)
राजभाषा सम्बंधी संवैधानिक उपबंधों (भारत का संविधान- भाग 3, अनुच्छेद 29 एवं अनुच्छेद 30), (भारत का संविधान- भाग 5, संघ की राजभाषा नीति अनुच्छेद 120), (भारत का संविधान- भाग 17, अनुच्छेद 343, अनुच्छेद 344, अनुच्छेद 350, अनुच्छेद 350 –क, अनुच्छेद 351) के लिए देखें – http://rajbhasha.gov.in/GOLPContent.aspx?t=enconst
प्रोफेसर महावीर सरन जैन ने भारत सरकार के केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के निदेशक, रोमानिया के बुकारेस्त विश्वविद्यालय के विजिटिंग प्रोफेसर (हिन्दी) तथा जबलपुर के विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर हिन्दी एवं भाषा-विज्ञान विभाग के प्रोफेसर एवं अध्यक्ष के रूप में हिन्दी के अध्ययन, अध्यापन एवं अनुसंधान के क्षेत्रों में भारत एवं विश्व के स्तर पर कार्य किया है।
आपने 45 से अधिक ग्रंथों का प्रणयन किया है जिनमें हिन्दी भाषा एवं भाषा विज्ञान से सम्बन्धित ग्रंथों के अतिरिक्त एक निबन्ध संकलन “विचार, दृष्टिकोण एवं संकेत”, “सूरदास एवं सूर सागर की भाव योजना”, “विश्व शान्ति एवं अहिंसा”, “विश्व चेतना तथा सर्वधर्म समभाव” तथा “भगवान महावीर एवं जैन दर्शन” आदि ग्रंथ सम्मिलित हैं।
प्रो० जैन विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। इनमें भारतीय संस्कृति संस्थान, विभिन्न राज्यों की हिन्दी समितियों एवं विश्व हिन्दी न्यास (अमेरिका) के नाम उल्लेखनीय हैं। प्रोफेसर जैन को द अमेरिकन बॉयोग्राफिकल इंस्टीट्यूट द्वारा 'International Cultural diploma of Honor’ से, डॉ भीमराव अम्बेदकर विश्वविद्यालय, आगरा द्वारा भाषा एवं संस्कृति के क्षेत्र में योगदान के लिए आगरा में 'ब्रज विभूति सम्मान' से तथा भारतीय राजदूतावास, बुकारेस्त (रोमानिया) द्वारा बुकारेस्त विश्वविद्यालय में हिन्दी शिक्षण में योगदान के लिए 'स्वर्ण-पदक' से अलंकृत किया गया है।
आपने 45 से अधिक ग्रंथों का प्रणयन किया है जिनमें हिन्दी भाषा एवं भाषा विज्ञान से सम्बन्धित ग्रंथों के अतिरिक्त एक निबन्ध संकलन “विचार, दृष्टिकोण एवं संकेत”, “सूरदास एवं सूर सागर की भाव योजना”, “विश्व शान्ति एवं अहिंसा”, “विश्व चेतना तथा सर्वधर्म समभाव” तथा “भगवान महावीर एवं जैन दर्शन” आदि ग्रंथ सम्मिलित हैं।
प्रो० जैन विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। इनमें भारतीय संस्कृति संस्थान, विभिन्न राज्यों की हिन्दी समितियों एवं विश्व हिन्दी न्यास (अमेरिका) के नाम उल्लेखनीय हैं। प्रोफेसर जैन को द अमेरिकन बॉयोग्राफिकल इंस्टीट्यूट द्वारा 'International Cultural diploma of Honor’ से, डॉ भीमराव अम्बेदकर विश्वविद्यालय, आगरा द्वारा भाषा एवं संस्कृति के क्षेत्र में योगदान के लिए आगरा में 'ब्रज विभूति सम्मान' से तथा भारतीय राजदूतावास, बुकारेस्त (रोमानिया) द्वारा बुकारेस्त विश्वविद्यालय में हिन्दी शिक्षण में योगदान के लिए 'स्वर्ण-पदक' से अलंकृत किया गया है।
राजभाषा नीति का क्रमिक विकास: Evolution of Official Language Policyहिन्दी के प्रयोग के बढ़ावा देने के लिए विभिन्न प्रावधान किए गए हैं और जब केन्द्र के किसी मंत्रालय की राजभाषा सलाहकार समिति की बैठक होती है तो मंत्रालय की रिपोर्ट उस मंत्रालय के हिन्दी अधिकारी से बनवाकर समिति के सदस्यों को वितरित कर दी जाती है किन्तु यथार्थ में फाइलों पर अधिकांश कार्रवाई अंग्रेजी में होती है। इस निराशा में आशा की कुछ किरणें भी हैं। मेरा अनुभव यह है कि अधिकांश सरकारी अफसरों की हिन्दी के प्रति उदासीनता तथा मंत्रालयों के अवर सचिव स्तर के अधिकारियों की अंग्रेजी के पूर्वलिखित टिप्पणों के आधार पर फाइलों में टिप्पण लिखने की प्रवृत्ति के बावजूद राजभाषा विभाग के कार्य की प्रगति उसके संयुक्त सचिव की हिन्दी के प्रति मनोभाव पर निर्भर करती है। मैं जानता हूँ कि बीसवीं सदी के अन्तिम दशक में राजभाषा विभाग के संयुक्त सचिव देव स्वरूप एवं मदन लाल गुप्त ने निष्ठा पूर्वक हिन्दी की प्रगति के लिए कार्य किया तथा इनके प्रयासों के कारण इसी का परिणाम यह हुआ कि प्रबोध, प्रवीण तथा प्राज्ञ स्तर की परीक्षाओं के लिए कम्प्यूटर की सहायता से मल्टी मीडिया पद्धति से प्रशिक्षण सामग्री तैयार करवाने की दिशा में पुणें की सी-डेक के सहयोग से काम होना आरम्भ हुआ। इसका परिणाम सन् 2003 में सबके सामने आया। प्रशिक्षण सामग्री का नाम लीला हिन्दी प्रबोध, लीला हिन्दी प्रवीण, लीला हिन्दी प्राज्ञ रखा गया। यह सामग्री विभाग की वेबसाइट पर सर्व साधारण के उपयोग के लिए उपलब्ध हो गया। इस समय वेबसाइट पर जाकर विभिन्न स्तरों का हिन्दी प्रशिक्षण निम्न भाषाओं के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता हैं –
संवैधानिक प्रावधान: Constitutional Provisions
राष्ट्रपति का आदेश: 1960President's Order - 1960
राजभाषा अधिनियम: 1963The Official Languages Act 1963
राजभाषा संकल्प 1968: The Official Language Resolution 1968
राजभाषा नियम 1976: The Official Languages Rules 1976
संघ की राजभाषा नीति: The Official Language Policy
संसदीय राजभाषा समिति की सिफारिशों पर जारी राष्ट्रपति आदेश: President's Orders on the recommendations of the Committee of Parliament on O.L.
वार्षिक कार्यक्रम/रिपोर्ट: Annual Programme/Reports
राजभाषा हिंदी के प्रयोग संबंधी आदेशों का संकलन: Compilation of Orders regarding the use of Hindi as O.L.
(देखें -http://rajbhasha.gov.in/)
1. अंग्रेजी 2. असमिया 3. बांग्ला 4. बोडो 5. गुजराती 6. कन्नड़ 7. काश्मीरी 8. मलयालम 9. मणिपुरी 10. मराठी 11. नेपाली 12. ओड़िया 13. पंजाबी 14. तेलुगु 15. तमिल।
यह कार्य प्रशंसनीय है। अब उपर्युक्त भाषाओं के माध्यम से हिन्दी का प्रशिक्षण विभिन्न स्तरों पर मल्टी-मीडिया पद्धति से निशुल्क घर बैठे कम्प्यूटर पर प्राप्त किया जा सकता है। इसी प्रकार सन् 2005 से हिंदी फोंट, फोंट कोड कनवर्टर, अंग्रेजी - हिंदी शब्दकोश, हिंदी स्पेल चेकर को निशुल्क प्रयोग के लिए वेब साइट पर उपलब्ध करा दिया गया है। इन्हें http:ildc.gov.in से डाउनलोड किया जा सकता है।
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