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ट्रांसफर [लघुकथा] - संजय जनागल

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“भाई साहब टाइप करवाना है, कर दोगे क्या?”

“जी हाँ” मैंने कहा।

एक पेज पकड़ाते हुए युवक ने कहा, “बाकी तो सब आपको ऐसा ही टाइप करना है जैसा इस पेज में लिखा है; बस ट्रांसफर के कारण मैं अलग लिखवाऊँगा।“

“क्यों ? ट्रांसफर के कारण तो ठीक ही लग रहे हैं। मैंने पढ़े हैं।” युवक के साथ आए एक दोस्त ने पूछा।

“अरे यार क्या बताऊँ? इस एप्लीकेशन को मैं इससे पहले तीन बार भेज चुका हूँ। आज तक ट्रांसफर नहीं हुआ। राजीव का ट्रांसफर एक बार में हो गया। मैंने उससे पूछा कि ऐसा क्या लिखा जिससे ट्रांसफर एक बार में हो गया? राजीव ने बताया कि उसने लिखा - माताजी सख्त बीमार रहती है, पिताजी के सिर का ऑपरेशन तीन बार हो चुका है, माता-पिता की सेवा करने वाला कोई और नहीं है। .....मैंने सोचा है कि मैं भी यही कारण लिख दूँगा।“

मैंने एप्लीकेशन में जो कारण उन्होंने बताये वो टाइप किये और प्रिन्ट निकाल कर दे दिया।

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