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अहसास [लघुकथा] - मनोज चौहान

DushyantKumar
सुधीर की पत्नी मालती की डिलीवरी हुए आज पांच दिन हो गए थे| उसने एक बच्ची को जन्म दिया था और वह शहर के सिविल हॉस्पिटल में एडमिट थी| सुधीर और उसके घर वालों ने बहुत आस लगा रखी थी की उनके यहाँ लड़का ही पैदा होगा| सुधीर की माँ मालती का गर्भ ठहरने के बाद अब तक कितनी सेवा और देखभाल करती आई थी| मगर नियति के आगे किसका वश चलता है| आखिर लड़की पैदा हुई और उनके खिले हुए चेहरे मायूस हो गए| सुधीर तो इतना निराश हो गया था कि डिलीवरी के दिन के बाद, वो दोबारा कभी अपनी पत्नी और बच्ची से मिलने हॉस्पिटल नहीं गया था|

Manoj Chauhanरचनाकार परिचय:-

हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले के गाँव महादेव (सुंदर नगर) में एक किसान परिवार में जन्मे मनोज चौहान भारत सरकार के विद्युत् मंत्रालय के अधीन सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम में अभियंता के पद पर कार्यरत हैं।
पिछले दशाधिक वर्षों से विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी कई रचनाएं यथा कविता, फीचर, साक्षात्कार, व्यंग्य, क्षणिकाएं, लघुकथा, परिचर्चा, निबंध आदि प्रकाशित होती रही हैं। आकाशवाणी, शिमला (हि.प्र.) से भी आपकी कविताएं प्रसारित हो चुकी हैं।
सुधीर आई.पी.एच. विभाग में सहायक अभियन्ता के पद पर कार्यरत था| उस रोज वह दफ्तर में बैठा था| उसके ऑफिस में काम करने वाला चपरासी रामदीन छुट्टी की अर्जी लेकर आया| कारण पढ़ा तो देखा की पत्नी बीमार है और देखभाल करने वाला कोई नहीं है| डॉक्टरों ने भी जवाब दे दिया था| इसीलिए रामदीन 15 दिन की छुट्टी ले रहा था| सुधीर ने पूछा – “तुम्हारा बेटा और बहू तुम्हारी पत्नी की देखभाल नहीं करते?” यह सुनकर रामदीन खुद को रोक ना सका और फफक-2 कर रोने लग गया| सुधीर ने उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया था| उसकी आँखों से निकलने वाली अश्रुधारा ने सुधीर को एक पल के लिए बिचलित कर दिया|

रामदीन बोला, ‘’साहब,अपने जीवन की सारी जमा पूंजी मैंने बेटे की पढाई पर खर्च कर दी| सोचा था कि पढ़–लिख कर कुछ बन जाएगा तो बुढ़ापे की लाठी बनेगा| मगर शादी के छः महीने बाद ही वह अलग रहता है| उसे तो यह भी नहीं मालूम की हम लोग जिन्दा हैं या मर गए| ऐसा तो कोई बेगाना भी नहीं करता, साहब| काश! मेरी लड़की पैदा हुई होती तो आज हमारे बुदापे का सहारा तो बनती|” रामदीन चला गया| सुधीर ने उसकी अर्जी तो मंजूर कर ली मगर उसके ये शब्द कि "काश! मेरी लड़की पैदा हुई होती", उसे अन्दर तक झकझोरते चले गए| एक वह था जो लड़की के पैदा होने पर खुश नहीं था और दूसरी ओर रामदीन लड़की के ना होने पर पछता रहा था|

सुधीर सारा दिन इसी कशमकश में रहा| कब पांच बज गए उसे पता ही नहीं चला| छुटी होते ही वह ऑफिस से बाहर निकला और उसके कदम अपने आप ही सिविल हॉस्पिटल की तरफ बढ़ने लगे|

मैटरनिटी वार्ड में दाखिल होते ही उसने अपनी पांच दिन की नन्ही बच्ची को प्यार से पुचकारना और सहलाना शुरू कर दिया| मालती सुधीर में आये इस अचानक परिवर्तन से हैरान थी| अपनी बच्ची के लिए सुधीर के दिल में प्यार उमड़ आया था| वह आत्ममंथित हो चुका था और उसे अहसास हो गया था की एक लड़की जो माँ-बाप के लिए कर सकती है, एक लड़का वो कभी नहीं कर सकता| उसे रामदीन के वो शब्द अब भी याद आ रहे थे कि काश! मेरी लड़की ......!
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