बचा है अब यही इक रास्ता क्या
मुझे भी भेज दोगे करबला क्या
तराजू ले के कल आया था बन्दर
तुम्हारा मस्अला हल हो गया क्या
मुझे भी भेज दोगे करबला क्या
तराजू ले के कल आया था बन्दर
तुम्हारा मस्अला हल हो गया क्या
पेशे से पुस्तक व्यवसायी तथा इलाहाबाद से प्रकाशित त्रैमासिक ’गुफ़्तगू’ के उप-संपादक वीनस केसरी की कई रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। आकाशवाणी इलाहाबाद से आपकी ग़ज़लों का प्रसारण भी हुआ है। आपकी एक पुस्तक “इल्म-ए-अरूज़” प्रकाशनाधीन है।
अचानक क्यों हुए हैं पानी पानी
हवा ने बादलों से कुछ कहा क्या
यहाँ पत्थर भी शीशा हो गया है
यहाँ से बन्द है हर रास्ता क्या
उदू से दफ्अतन मैं पूछ बैठा
हमारे दरमियाँ है मस्अला क्या
ग़ज़ल में रंग भरना है जरूरी
मगर सादा न हो तो फ़ायदा क्या
ग़ज़ल कह कर हुआ दीवाना मैं तो
ग़ज़ल सुन कर तुम्हें भी कुछ हुआ क्या
ए 'वीनस' काश मैं यह जान पाता
था रखना याद क्या, था भूलना क्या
2 टिप्पणियाँ
बेहतरीन
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.