सलवटों के सवंरने का जरिया होतीं हैं भीगी पलकें
रुके हुए पानी को तीव्र धारा में बदल देतीं हैं भीगी पलकें
अमावस की रात में पूनम का चाँद बनतीं हैं भीगी पलकें
उतर आई उदासी को , निकल जाने देती हैं भीगी पलकें
बिखरी हुई घटाओं को घने बादलों में बदलती हैं भीगी पलकें
रुकी हुई हवाओं को समीर की गति देती हैं भीगी पलकें
पत्थर में शिव के दर्शन करवाती हैं भीगी पलकें
मनुष्य को मानवता के करीब ले आती हैं भीगी पलकें
दर्द में जब दवा का रूप पा जातीं हैं भीगी पलकें
तो गंगा की निर्मल धारा में बदल जातीं हैं भीगी पलकें
पलकों को भीगने से पहले जो भांप लेती हैं भीगी पलकें
आदमी को भगवान का दर्जा दे जातीं हैं भीगी पलकें
डी - 184 , श्याम पार्क एक्स्टेनशन साहिबाबाद - 201005 ( ऊ . प्र . )
(arorask1951@yahoo.com)
1 टिप्पणियाँ
जय सिया राम ,मेरा तहेदिल से शुक्रिया ,
जवाब देंहटाएंअंतमन मन की भावना कोसंजोकर लिखी हुई कविता अति सुन्दर
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.