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कब अपने अधिकारों को, अधिकारी-सा मांगोगी [कविता]- पीयूष द्विवेदी

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जिस गोदी में हरकोई,
प्रथम नींद से जगता है !
जिस पयधारा को पीकर,
हष्ट-पुष्ट सा लगता है !
उस गोदी, उस धारा की, स्वामिन तुम कब जागोगी ?
कब अपने अधिकारों को, अधिकारी-सा मांगोगी ?


पियुष द्विवेदी ‘भारत’रचनाकार परिचय:-

वर्त्तमान में कक्षा बारहवीं के छात्र पियुष द्विवेदी ‘भारत’ उत्तर प्रदेश के जिला देवरिया के निवासी हैं। इतिहास के अध्ययन के साथ ही साहित्य लेखन का शौक रखने वाले पीयूष अब तक सौ से अधिक कविताएँ तथा कुछ कहानियाँ व आलेख आदि लिख चुके हैं।

आदिकाल से क्यों देवी,
तुम दुःख सहती आई हो ?
नर की जननी क्यों नर से,
नीचे रहती आई हो ?
इन प्रश्नों के उत्तर से, आखिर कबतक भागोगी ?
कब अपने अधिकारों को, अधिकारी-सा मांगोगी ?

मोहमयी जंजीरें ही,
कायर तुमको करती हैं !
तुम आदर करती, जग को
लगता नारी डरती है !
कब अपने सम्मान हेतु, मोहपाश ये त्यागोगी ?
कब अपने अधिकारों को, अधिकारी-सा मांगोगी ?

याद करो लक्ष्मीबाई,
वो भी तो इक नारी थी !
सबकुछ उसमे तुमसा ही,
बिलकुल बहन तुम्हारी थी !

पर अन्याय विरोधों में,
वो तलवार उठाई थी !
तुमसा सहकर मरी नही,
लड़कर जान गवाई थी !
कब मन में उस देवी की, वीराकृति को टांगोगी ?
कब अपने अधिकारों को, अधिकारी-सा मांगोगी ?

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1 टिप्पणियाँ

  1. तुम अंकुरित कोख में मेरे
    भू पर आ आँखे खोले
    यह दुनिया तेरी है बेटे
    तुम ही जीयो इसे भले.
    मुझे नहीं माँगना कुछ भी
    मत मँगवाओ कुछ मुझसे
    बनना भी है नहीं मुझे कुछ
    स्वाभिमान तू अपना ले ।।

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