उसे देखकर
मेरा दिल पसीज जाता है
कई घंटे
मिट्टी और कंकड़-पत्थर से
जूझने के बाद
मेरा दिल पसीज जाता है
कई घंटे
मिट्टी और कंकड़-पत्थर से
जूझने के बाद
नाम : सुशांत सुप्रिय ( कवि , कथाकार व अनुवादक )
जन्म : २८ मार्च , १९६८
प्रकाशित कृतियाँ : # कथा-संग्रह -- हत्यारे ( २०१० )
हे राम ( २०१२ )
# काव्य-संग्रह -- एक बूँद यह भी ( २०१४ )
( सभी पुस्तकें नेशनल पब्लिशिंग हाउस , जयपुर से )
कविताएँ व कहानियाँ कई भाषाओं में अनूदित व पुरस्कृत ।
संपर्क : मो -- 8512070086
ई-मेल : sushant1968@gmail.com
इस समय वह हाँफता हुआ
ज़मीन पर वैसे ही पस्त पड़ा हुआ है
जैसे दिन भर की कड़ी मेहनत के बाद
शाम को निढाल हो कर पसर जाते हैं
कामगार और मज़दूर
मैं उसे
प्यार से देखता हूँ
और अचानक वह निस्तेज लोहा
मुझे लगने लगता है
किसी खिले हुए सुंदर फूल-सा
मुलायम और मासूम
उसके भीतर से झाँकने लगती हैं
पके हुए फ़सलों की बालियाँ
और उसके प्रति मेरा स्नेह
और भी बढ़ जाता है
मेहनत की धूल-मिट्टी से सनी हुई
उसकी धारदार देह
मुझे जीवन देती है
लेकिन उसकी पीड़ा
मुझे दोफाड़ कर देती है
उसे देखकर ही मैंने जाना
कभी-कभी ऐसा भी होता है
लोहा भी रोता है
1 टिप्पणियाँ
Ati sundar
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.