आखिर हम कैसे भूल गये, मेहनत किसान की,
दिन हो या रात उसने, परिश्रम तमाम की।
लेखक, कवि, व्यंगकार, कहानीकार,
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जाड़े की मौसम वो, ठंड से लड़े, तब जाके भरते, देश में फसल के घड़े। गर्मी की तेज धूप से, पैर उसका जले, मेहनत से उनकी देश में, भुखमरी टले। बरसात के मौसम में, न है भीगने का डर, कंधों पर रखकर फावड़ा, चल दिये खेत पर। जिनकी कृपा से आज भी,चलता है सारा देश, सरकार उनके बीच में, पैदा होता मतभेद। मेहनत किसान की, कैसे भूल वो रहे, कर्ज़, ग़रीबी, भुखमरी से, तंग हो किसान मरे। दूसरों का पेट भर, अपनी जान तो दी, आखिर हम कैसे भूल गये , मेहनत किसान की।
3 टिप्पणियाँ
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जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंJey kissan jey jawan
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.