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लकीरों का कोलाहल [कविता ]- मनु कंचन

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हथेली में एक कोलाहल मचा हुआ है,
मुझसे हर लकीर अपना हिस्सा मांग रही,


मनु कंचन रचनाकार परिचय:-



नाम मनु कंचन है। मैं Ph.D. कर रहा हूँ IIT Kanpur से और साथ ही मैं कभी कभी कविताएं, कहानियां भी लिख लेता हूँ। ब्लॉग पता : http://manukanchan.blogspot.in/

मानो हथेली मेरी नहीं
उनकी निजी संपत्ति हो,

हर रोज़ नींद की आगोश में जाने से पहले,
कुछ को मिटाता हूँ, तो कुछ को हिस्सा अलॉट करता हूँ ,

और फिर सो जाता हूँ,
ये सोचकर के चलो आज कुछ तो काम किया,

पर सवेरे उठता हूँ,
तो फिर कुछ नई लकीरों से मुलाक़ात होती है,

अब हर सुबह यही सोचता हूँ,
आज नहीं सोऊंगा,

ये लकीरें मेरी पलकों को गिरा देख,
हथेली में दबे पाँव चली आती हैं,

पर ये कमबख्त आखें अँधेरे को सहार ही नहीं पातीं,
और मैं फिर सो जाता हूँ,

ज़िन्दगी इसी सोने और जागने के सिलसिले में
बांधकर रह गई है,

अब ये सिलसिला लगता है शायद
साँसों के साथ ही खत्म होगा

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