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जेठ का एक दिन [कविता]- सुशांत सुप्रिय

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जेठ का कोई तपता दिन
रहा होगा वह
जब


 सुशान्त सुप्रियरचनाकार परिचय:-



नाम : सुशांत सुप्रिय ( कवि , कथाकार व अनुवादक ) जन्म : २८ मार्च , १९६८ प्रकाशित कृतियाँ : # कथा-संग्रह -- हत्यारे ( २०१० ) हे राम ( २०१२ ) # काव्य-संग्रह -- एक बूँद यह भी ( २०१४ ) ( सभी पुस्तकें नेशनल पब्लिशिंग हाउस , जयपुर से ) कविताएँ व कहानियाँ कई भाषाओं में अनूदित व पुरस्कृत । संपर्क : मो -- 8512070086 ई-मेल : sushant1968@gmail.com

इराक़ अपने ज़ख़्मों पर
मरहम लगा रहा था
घायल अफ़ग़ानिस्तान
लड़खड़ाते हुए चलना चाह रहा था

जेठ का कोई तपता दिन
रहा होगा वह
जब

वर्तमान की कड़कती धूप में
मेरे पाँव जल रहे थे
किंतु मैंने देखा कि
धधकती गर्मी को भी
हरियाली में बदल देना
चाहते थे पेड़
नीले आकाश की
तपिश में भी
तैर रहे थे दो-चार बादल

उसी विश्वास की छाँह में
पार कर लिया मैंने
जेठ का वह तपता दिन

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1 टिप्पणियाँ

  1. सुन्दर और प्रेरक रचना ..........सुशांत जी को बधाई ...! मैंने भी अपनी एक "कविता" में बादलों को प्रेरणास्त्रोत बनाया है l

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