वो किसकी माँ थी ?
देखा था मैने जिसे ,
हाथ में कटोरा लिए, सड़क पे भीख माँगते !
भूंख की अकड़न से , छटपटाती पीड़ा थामते।
नाम : सुशील कुमार 'मानव' आजीविका :अनुवादक साहित्यिक कार्य: कविता,कहानी, गजल लिखना आयु 32 वर्ष, निवास: इलाहाबाद शिक्षा : हिंदी, समाज शास्त्र, और जैव-रसायन से परास्नातक मोबाइल नं. 8743051497
वो किसकी माँ थी ? देखा था मैंने जिसे , बेटों से कुछ रहम की खातिर पथराई आँखें टकटकाते।! फिर अपने हक़ के ख़ातिर क़ानून का दरवाज़ा खटखटाते। वो किसकी माँ थी ? देखा था मैने जिसे , जौहरी की दुकान पे, स्त्रीधन गिरवीं रखते-रखाते। फिर प्रवासी बेटे के इंतज़ार में , एकाकी एक उम्र बिताते। वो किसकी माँ थी ? देखा था मैने जिसे कोठी में , बुढ़ापे की असाध्य बीमारी में, लाचारी से कराह उठाते। फिर उसकी तन्हा मौत की खबर , बेटों को फ़ोन पे पातें। वो किसकी माँ थी ? देखा था मैने जिसे , अपनी निचुड़ी छातियों का पल-पल मातम मनाते। अस्थियों के खोखल को, कैल्शियम बिना टूट मचाते। वो किसकी माँ थी , जो भूखी थी। वो किसकी माँ थी जो बेघर थी। वो किसकी माँ थी, जो ठुकराये जाने पे भी दुआएं देती थी। वो किसकी माँ थी , जो अपनी खुशियाँ आप लुटा सदाएं लेती थी। वो किसकी माँ थी ? देखा था मैंने जिसें अपने तन की मिट्टी से ,इंसान को फौलाद बनातें। रेशा -रेशा टूटकर ,अपनी चमड़ी से औलाद बनाते
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