एक अख़बार में निविदा विज्ञापन
दहेज़ के दानव के विनाश हेतु
चाहिए एक बाण
ऐसी निविदा पढने के बाद
दिल को हुआ आराम ।
संजय वर्मा "दृष्टि" २-५-१९६२ को उज्जैन में जन्मे लेखक है। कई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में इनके पत्र और रचनाएँ नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। आप आकाशवाणी से भी काव्य पाठ कर चुके हैं। इन्हें कई सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है
वर्तमान परिदृश्य में
बहुए जली /जलाई जा रही
ऐसे हादसों के कारण गावों के
कुएं की चरखियां ,घट्टीयों की आवाजें
ख़त्म होती जा रही ।
बाजारों में फ्रेमों के और कब्र के पत्थरों के
दाम यकायक बढ़ते जा रहे
सुने घर और आँचल में केसे छुपे बच्चे
छुपा- छाई का खेल वो खोते जा रहे
रिश्तों में कड़वाहट /लालची युग का
विष घुलता जा रहा ।
लगने लगा जेसे दहेज़ के लालची
दानवों का दायरा बढ़ता जा रहा
बढ़ते हुए दायरों को न रोक पाने का
कारण यह भी हो सकता है
कलयुग में बाण चलाना आता नहीं
या लोग डरपोक बन भागते जा रहे ।
निविदा की तिथिया बढती जा रही
अब संशोधनों के साथ
दहेज़ के दानवों के विनाश हेतु
चाहिए अब तरकशो से भरे बाण
इंतजार है ,कोई तो आएगा खरीदने
तभी ख़त्म हो सकेगी
दहेज़ के दानवों की विनाशलीला
और बेटियां होगी हर घरों में
सुरक्षित ।
1 टिप्पणियाँ
सुंदर रचना .....संजय वर्मा जी को बधाई ...!
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