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साथ- साथ [कविता] - सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा

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तुम सामने होती हो तो
शब्द रुक जाते हैं
तुम औझल होती हो तो
वही शब्द प्रवाह बन जाते हैं


WRITER NAMEरचनाकार परिचय:-



सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा
डी - 184 , श्याम पार्क एक्स्टेनशन साहिबाबाद - 201005 ( ऊ . प्र . )
मो. न.09911127277 (arorask1951@yahoo.com )

तुम बोलती हो तो
प्रश्न उठते हैं कि क्या बोलूं
तुम बोलते हुए रूक जाती हो तो
अनसुलझे सवाल मेरी उलझन में समा जाते हैं

तुम चहकती हो तो
पूनमी रात का चाँद धवल चांदनी सा फ़ैल जाता है
तुम उदास होती हो तो
सारा उपवन अमावस सा सहम जाता है

तुम खिलखिलाती हो तो कोई मासूम परिंदा
मिट्टू की तरह ऊंचीं उड़ान भरता है
तुम मौन हो जाती हो तो वही परिंदा
अपनी ही कैद में अपनी हर उड़ान भूल जाता है

तुम साथ होती हो तो
हर सफर की दूरियां , नजदीकियों का एहसास देती हैं
तुम दूर हटती हो तो
दिख रही मंजिलें भी आँखों से ओझल हो जाती हैं

तुम रहो साथ मेरे ,
बस यही दुआ है मेरी
जो कभी जाने की बात हो
तो वह भी साथ- साथ हो

.

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