इस दुनिया-ऐ-फानी में जीने लायक ‘हुनर’ जानने के बाद हमें लगता था’,हमने सब कुछ सीख लिया है |ये वो ज़माना था, जब चार, चोटी के गायक हुआ करते थे ,जिनके गीत दिन भर गा-गुनगुना के समय कट जाया करता था |अपने शहर में चार टाकिज हुआ करती थी ,आदमकद पोस्टर जब लगते थे, तब जी बहल-मचल जाता था |आने वाली फिल्मो के नाम जानने के बाद, पिक्चर रिलीज होने का बेसब्री से इंतिजार होने लगा था |हीरो माफिक दिखने-संवरने के उन दिनों के अंदाज ही जुदा से थे |
यत्रतत्र रचनाएं ,कविता व्यंग गजल प्रकाशित |
दिसंबर १४ में कादम्बिनी में व्यंग |
संप्रति ,रिटायर्ड लाइफ ,Deputy Commissioner ,Customs & Central Excise ,के पद से सेवा निवृत, वडोदरा गुजरात २०१२ में
सुशील यादव
New Adarsh Nagar Durg (C.G.)
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‘परीक्षा’ उस जमाने में केवल पास होने लायक मार्क्स पाने का नाम था |गलाकाट प्रतियोगिता नहीं थी |सब चलता है, के अंदाज में, सब चला लिया करते थे |
उतने उथले ज्ञान पर भी लोग, फिदा हो लेते थे ,कन्या का पिता क्लर्की में ही गदगद हो के अपनी बेटी को साजो-सामान सहित बिदा कर दिया करता था |न कन्या की, न श्वसुर की ख्वाहिशे आसमान छूती दिखती थी|
बेलबाटम वाले दौर के ,फ्लेशबेक में आपको ज्यादा घसीटने से बेहतर है आज के जमाने में लौट लिया जाए|
ज्यो ही चेनल दबाते हैं ,’आप’ वाले छाये मिलते हैं |फर्जी डिग्री के सिलसिले में मंत्री गिरफ्तार .....|एक पल को लगा, क्या ज़माना आ गया......?डेमोक्रसी का चेहरा कितना विद्रूप हो गया है |रक्षक –भक्षक के रोल में ,हीरो-विलेन के नकाब में ,या किसी सस्पेंस स्टोरी में जो सबसे सहज-सीधा व विश्वसनीय नजर आता है वही कातिल ठहराया जाता है |
जो कूद-कूद कर अपनी पार्टी का ढिढोरा पीटते रहे कि, वे ही स्वच्छ छवि वाले लोग हैं दूसरा उनके पासंग नहीं |उनकी पार्टी में खराब किसम के ‘सड़े आम’ बिलकुल नहीं हैं |दूसरी पार्टी में जहाँ भी थोड़ा नुक्श वाले लोग दीखते, उनसे स्तीफा दिलवाने की मांग में जुट जाते | वे सबूतों के कागज़ हवा में लहराते ,ये है वो दस्तावेज जिसमे अमुक का काला-कारनामा जाहिर दिखता है|
इस केस में सबूत के दस्तावेज कहाँ हवा हो गए ...?
इससे पहले के दीगर कानून मंत्री की पत्नी, उन पर घरेलू अत्याचार के लिए, शिकायत लिए घूम रही हैं |
‘कानून’ की अपनी मर्यादा होती है ,’कानून’ जैसे संवेदनशील मंत्रालय में ऐसे फर्जी डिग्री वाले का चुनाव या घरलू हिसा में लिप्त आदमी का चयन, साफ जाहिर करता है कि इंनके चयन में जो लापरवाही की गई ,या स्क्रीनिग में जो गलतियाँ हुई, उसकी समूची जिम्मेदारी सी एम् के अलावा और किस पर डाली जा सकती है......?
एक अन्य, जिसे अब नए कानून मंत्री का ओहदा नवाजा गया है ,वे आते ही अपने पूर्व वर्ती मिनिस्टर के हक़ में बोले जाते हैं |वे अच्छे आदमी थे |
जिस शख्श को , इतने हो हल्ले के बीच भी ‘माजरा क्या है’ का अंदाजा नहीं हो पाता उसकी काबलियत पर आगे भरोसा किया जाना चाहिए ..... या जो केवल अपने मुखिया के प्रति, प्रतिबद्धता दिखाने की कोशिश ,जी हुजूरी अंदाज में करता दिख रहा हो ,इतने बड़े मंत्रालय के प्रति ‘गंभीरता’ दिखा पायेंगे |’न्याय’ की बात तो बाद में सोच लेंगे अपन .....|
अपना हिन्दुस्तान भी कैसा है .....?टी व्ही चेनल जब बात बात में पंचायत बिठाने लग गई हैं |ये मीडिया वाले ‘कुतर्कों’ को ‘तर्क’ के दायरे में दिखा-दिखा के लोगों का दिमाग खराब किये दे रही हैं|मेंटर जहाँ ,कोर्ट अदालत में लंबित हो, ये जनमानस का मूड यूँ बना देते हैं, कि जो मीडिया-मालिक की सोच है, कमोबेश वही सोच जनता की हो जावे |
पेड़ न्यूज का कारोबार होने लगा है|पिछ्ला इलेक्शन इनका सबूत गवाह है|बस दिल्ली की अटकल-बाजी में ज़रा सा फेल हुए,मगर उसकी कसर पोस्ट इलेक्शन छि- छा-लेदर में व्यक्त होने लगा |एल जी और मफलर-मेन को भिडाये रखते हैं |जनता की किसी को जैसे परवाह नहीं ....?
एक जनाब , विदेशो में जनमत बटोरने लगे हैं ,लगता है अगला इलेक्शन उधर लड़ेंगे |
वे सोते मतदाताओं में जान फुकने कभी स्वयं जाग जाते हैं |अब की बार योग को लेके आये हैं |सब को योग सिखलायेगे, ये अच्छी सोच है|इसमे अगर ‘सब्सीडी’ वगैरा मिल जाती तो सोने में सुहागा जैसी चीज हो जाती | यूँ मानिए सब्सीडी का तडका जिस किसी तरकारी में पड जाए, उसका स्वाद दुगना हो जाता है|
एक सांसद ने बढ़ के बयान दे डाला है, जिस ‘ख़ास-मजहब’ के लोग सूर्य को लेकर पशोपश में हैं, वे समुद्र की दुबकी लगावे ,दिन में प्रकाश और उजाले से दूर रहें |
हमारी बुनियादी सीख ये कहती है कि आप अपने मकसद की चीज देखो ,आपके कार्यक्रम में सब का सहयोग हो, या मिले, ये जरुरी नहीं |’योग’ जिसके काम की चीज नहीं वो आपका प्रोडक्ट क्यों वापरेगा ....?
आप फकत इसे यूँ समझिये कि मजमा लगा के चौराहे में गंडा-ताबीज बेच रहे हैं|जिसे लेना है वो लेगा नहीं लेने वाला ताली बजा के ,घर जाएगा |....खेल खतम ...पैसा हजम के जमाने में, खेल का पर्दा ही गिरने नहीं देना चाहो,तो आपकी मर्जी |मगर याद रहे ,लोगो में तमाशा का क्रेज धीरे धीरे कम होता जाएगा , वे आपसे किनारा करने की भी सोचने लग सकते हैं |
वैसे अपने देश में, राजनीतिग्य लोग भ्रामक और बेहूदा बयान आये दिन दिए रहते हैं|
किसी दिन, किसी के श्रीमुख से ये सुन लें कि “कम से कम दस साल तक सरकारी स्कूल में पढ़े बच्चो को सरकारी सेवा में लिया जाएगा” तो आश्चर्य ना करे |
इसका ‘हिडन एजेंडा’ यह होगा कि पब्लिक प्रायवेट स्कूलों की मोनोपोली खत्म होगी ,इनकी वाट लगाने का हथियार राजनीतिज्ञों के हाथ होगा |
धर्म-निरपेक्ष देश में, `धर्म-सापेक्ष’ चल रही शिक्षण संस्थाओं पर अंकुश लगाने की गुजाइश पैदा हो जायेगी |
टी-व्ही के सामने बैठकर, ज्ञान का रोज राजनैतिक ज्ञान में इजाफा होते महसूस करना अलग बात है मगर इसका इकानामिक तत्काल प्रभाव भी होते देखा गया है|
अपने शहर में भिड़ी-टमाटर जो न्यनतम दरों में बिका करते थे अचानक दिली का भाव सुन कर आसमा छू लेते हैं |प्याज ,जब अपने शहर में पच्चीस रुपये किलो बिकते थे दिली में अस्सी सौ होते सुन के यकायक बढ़ जाते हैं |
उधर दिल्ली में बारिश गिरने की आशंका जताई जाती है ,इधर लोग घरों से बाकायदा छाता ले कर निकलने लग जाते हैं |
आप बाजार के भाव बेशक बताओ मगर जब कमी आये तभी, बताया जाना चाहिए| वो भी ये सर्वे करके कि शेष शहर में दाम कितने हैं .....?आज अन्य जींस दाल आदि के भावों के बढने का एकमात्र कारण यही है,इन्ही खबरची चेनल के चलते है |
आप कम मानसून की चिंता बता के,फसलों की पैदावार आंकने का गणित भी बंद करें तो बेहतर हो|जो बात बंद कमरे ने नीती निर्णायक होने की प्रक्रिया में होनी चाहिए उसे सरे आम बहस में उछालने से, इकानामी कंट्रोल कहाँ से होगी ...सोचिये.....?
इन समाचारों से कभी ये भी लगता है, सरकार अपनी नाकामियों पर छीटे –बौछार से बचने के लिए , मानसून की आड़ में, अपने बचाव का छाता तान रही है |
मुझे लगता था, मैंने धूप बाल सफेद नहीं किये, मैंने अपने तजुर्बे से बहुत कुछ सीखा है ,मगर लगता है, अभी तो बहुत सीखना बाकी है .....|
हरी अनंत, हरी कथा अनंता, जैसी राजनीति हो गई है |
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