भारत है वीरों की धरती, अगणित हुए नरेश।
मीरा, तुलसी, सूर, कबीरा, योगी और दरवेश।
एक हमारी राष्ट्र की भाषा, एक रहेगा देश।
कागा! ले जा यह संदेश, घर-घर दे जा यह संदेश।।
सोच की धरती भले अलग हों, राष्ट्र की धारा एक।
जैसे गंगा में मिल नदियाँ, हो जातीं हैं नेक।
रीति-नीति का भेद मिटाना, नूतन हो परिवेश।
कागा! ले जा यह संदेश, घर-घर दे जा यह संदेश।।
शासन का मन्दिर संसद है, लगता अब लाचार।
कुछ जनहित पर भाषण दे कर, करते हैं व्यापार।
रंगे सियारों को पहचाने, बदला जिसने वेष।
कागा! ले जा यह संदेश, घर-घर दे जा यह संदेश।।
वीर शहीदों के भारत का, सपने आज उदास।
कर्ज चुकाना है धरती का, मिल सब करें प्रयास।
घर-घर सुमन खिले खुशियों की, कहना नहीं बिशेष।
कागा! ले जा यह संदेश, घर-घर दे जा यह संदेश।।
1 टिप्पणियाँ
सुंदर कविता ...बधाई ...!
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