
अगर दम है तुम्हारे पास, सब स्वीकार दुनियां में
कभी मांगे नहीं मिलते, यहाँ अधिकार, दुनिया में
फैसले जब कभी लेना, तो अपनी समझ से लेना
मदारी रोज लगवाते हैं, जय जयकार दुनिया में
किताबे सब पढ़ीं थीं मगर, यह कोई न लिख पाया
पर्वत भी लिया करते हैं, अब प्रतिकार, दुनिया में
इसी बस्ती में, मानव रूप , कुछ शैतान रहते हैं
बड़े सजधज सुशोभित रूप में, मक्कार दुनियां में
हमेशा गिरने वाले घर के, अन्दर ही फिसलते हैं
तुम्हारे हर कदम पर, ध्यान की दरकार, दुनियां में
कभी मांगे नहीं मिलते, यहाँ अधिकार, दुनिया में
फैसले जब कभी लेना, तो अपनी समझ से लेना
मदारी रोज लगवाते हैं, जय जयकार दुनिया में
किताबे सब पढ़ीं थीं मगर, यह कोई न लिख पाया
पर्वत भी लिया करते हैं, अब प्रतिकार, दुनिया में
इसी बस्ती में, मानव रूप , कुछ शैतान रहते हैं
बड़े सजधज सुशोभित रूप में, मक्कार दुनियां में
हमेशा गिरने वाले घर के, अन्दर ही फिसलते हैं
तुम्हारे हर कदम पर, ध्यान की दरकार, दुनियां में
रचनाकार परिचय:-
नाम : सतीश सक्सेना
जन्मतिथि : १५ -१२-१९५४
जन्मस्थान : बदायूं
जीवनी : जब से होश संभाला, दुनिया में अपने आपको अकेला पाया, शायद इसीलिये दुनिया के लिए अधिक संवेदनशील हूँ ! कोई भी व्यक्ति अपने आपको अकेला महसूस न करे इस ध्येय की पूर्ति के लिए कुछ भी ,करने के लिए तैयार रहता हूँ ! मरने के बाद किसी के काम आ जाऊं अतः बरसों पहले अपोलो हॉस्पिटल में देहदान कर चुका हूँ ! विद्रोही स्वभाव,अन्याय से लड़ने की इच्छा, लोगों की मदद करने में सुख मिलता है ! निरीहता, किसी से कुछ मांगना, झूठ बोलना और डर कर किसी के आगे सिर झुकाना बिलकुल पसंद नहीं ! ईश्वर से प्रार्थना है कि अन्तिम समय तक इतनी शक्ति एवं सामर्थ्य अवश्य बनाये रखे कि जरूरतमंदो के काम आता रहूँ , भूल से भी किसी का दिल न दुखाऊँ और अंतिम समय किसी की आँख में एक आंसू देख, मुस्कराते हुए प्राण त्याग कर सकूं !
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