मैं और मेरा साथी
हम दोनों गए थे
सुशील कुमार शैली
जन्म तिथि-02-02-1986
शिक्षा-एम्.ए(हिंदी साहित्य),एम्.फिल्,नेट|
रचनात्मक कार्य-तल्खियाँ(पंजाबी कविता संग्रह),
सारांश समय का,कविता अनवरत-1(सांझा संकलन)|
कुम्भ,कलाकार,पंजाब सौरभ,शब्द सरोकार,परिकथा पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित
सम्प्रति-सहायक प्राध्यापक,हिन्दी विभाग,एस.डी.कॅालेज,बरनाला
पता-एफ.सी.आई.कॅालोनी,नया बस स्टैंड,करियाना
भवन,नाभा,जिला-पटियाला(पंजाब)147201
मो.-9914418289
ई.मेल-shellynabha01@gmail.com
उस प्राचीन भवन में गीरवी रखे गए, अपने पूर्वजों के अवशेष ढूँढ़ने जिन्हें गाड़ दिया था उसने भूमि के गहरे बहुत गहरे अंत: स्थल में समझौते से पहले जिनके मोह में बांधकर कुशल सांस्कृतक शिल्पकारों ने सदियों-सदियों हमें ठगा, पुरानी लक्ड़ी के बने गगन को छूते प्रवेश द्वार पर बडी-बडी जंगाल लगी कीलों के किऩारे पर रक़्त के काले धब्बों ने बताया आदमी की हत्या के लिए प्रयोग में लाया जाता था इन्हें डाल दिया जाता था भव्य साम्राज्य के लिए बलिदानों की वीर कथाओं में, आगे शुरू होते ठहरे पुरुषों की मनोदशाओं के सुदृड तिलिस्म प्रत्येक कदम पर थी दलदल अँधेरे में तैरती बेजान कवदंतियाँ सूख कर चूरा हुए पत्तों की राख़ ऐसे में किसी भी शब्द पर किसी भी कथा पर ठहरना उचित न था हमारे लिए सामने था तो सिर्फ़ सघन अँधेरे का खला दीवार पर उभरती रक़्त सन्नित शस्त्रों की आकृति प्रत्येक कदम पर फिसलन थी ज़रा सा भी झुक जाना फिसल जाना हत्या अदृश्य छेद्र से गिरते काला जल में मरे हुए प्रेत कुत्तों की भयावह आवाजें चमगादडों का सतर्कता से निश्चित दिशा में पहरा प्रत्येक कोने में पत्थरों की जड़ता सामने के खुले मैदान में जड़ता से बच के पहुँचे, जले हुये रहे घास पर सूर्य की कोई भी किरण न थी आधी खाई हुई खोपडी के साथ हड्डियों के ढाचे में इतिहास के भव्य मक्कोडों ने स्थान बना लिया था अव्यवस्थित दीवारों और जले हुये चेहरों के बीच,मुझे व्यवस्था का कोई चिह्न ऩहीं मिला जिसका बाहर की सभाओं में बखान हो रहा था तक कहीं हमने पूरे साहस के साथ नागरिकों को उनकी सौम्यता से बाहर खिचने का प्रयत्न किया और हम सभ्यता से बाहर उस हाशिये पर धकेल दिए गये जहाँ हम दुश्मन हैं सभ्यता, सौम्यता के|
2 टिप्पणियाँ
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जवाब देंहटाएंअच्छी कविता बधाई
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.