है कुदाल सी नीयत प्रायः, बदल रहा परिवेश।
कैसे बचेगा भारत देश?
बड़े हुए लिख, पढ़ते, सुनते, यह धरती है पावन।
जहां पे कचड़े चुन चुन करके, चलता लाखों जीवन।
दिल्ली में नित होली दिवाली, नहीं गाँव का क्लेश।
कैसे बचेगा भारत देश?
है रक्षक से डर ऐसा कि, जन जन चौंक रहे हैं।
बहस कहाँ संसद में होती, लगता भौंक रहे हैं।
लोकतंत्र के इस मंदिर से, यह कैसा सन्देश?
कैसे बचेगा भारत देश?
बूढा एक तपस्वी आकर, बहुत दिनों पर बोला।
सत्ता-दल संग सभी विपक्षी, का सिंहासन डोला।
है गरीब भारत फिर कैसे, पैसा गया विदेश?
कैसे बचेगा भारत देश?
सजग सुमन हों अगर चमन के, होगा तभी निदान।
भाई भी हो भ्रष्ट अगर तो, क्यों उसका सम्मान?
आजादी के नव-विहान का, निकले तभी दिनेश।
ऐसे बचेगा भारत देश।।
2 टिप्पणियाँ
Pandit Vinay kumar ( Patna): yah geet best laga ,aapaki anya rachanaye anya jagaho par chhapi ho to jankari dein. Thanks.
जवाब देंहटाएंअच्छी गीत बधाई
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.