जब गहन निस्तब्धता में,
दर्द की लौ टिमटिमायी,
फिर तुम्हारी याद आई।
दर्द की लौ टिमटिमायी,
फिर तुम्हारी याद आई।

उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले के एक गाँव ’जूड़ी’ में जन्मे आचार्य बलवन्त वर्तमान में बैंगलूरु के एक कालेज में हिन्दी विभागाध्यक्ष के रूप में कार्यरत हैं।
आपका एक काव्य-संग्रह "आँगन की धूप" प्रकाशित हो चुका है। इसके अतिरिक्त आपकी कई रचनाएं समय समय पर अहिंसा तीर्थ, समकालीन स्पन्दन, हिमप्रस्थ, नागफनी, सोच-विचार, साहित्य वाटिका, वनौषधिमाला आदि पत्रिकाओं एवं समाचार पत्रों में भी प्रकाशित होती रही हैं। आपकी कुछ रचनाएं आकाशवाणी जलगाँव और बंगलूरु से भी प्रसारित हुई हैं।
आपका एक काव्य-संग्रह "आँगन की धूप" प्रकाशित हो चुका है। इसके अतिरिक्त आपकी कई रचनाएं समय समय पर अहिंसा तीर्थ, समकालीन स्पन्दन, हिमप्रस्थ, नागफनी, सोच-विचार, साहित्य वाटिका, वनौषधिमाला आदि पत्रिकाओं एवं समाचार पत्रों में भी प्रकाशित होती रही हैं। आपकी कुछ रचनाएं आकाशवाणी जलगाँव और बंगलूरु से भी प्रसारित हुई हैं।
दर्द को किसने जगाया,
बात वो किसने चलाई?
फिर तुम्हारी याद आई।
सिसकियों में शाम लेकर
सुबह का पैगाम लेकर,
रात जब भी मुस्कुरायी।
फिर तुम्हारी याद आई।
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