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फुन्नी दादा की प्रेम कहानी [व्यंग्य कथा] - पंकज प्रसून


त्रिपाठी परिवार के पुरुष जन्मजात दादा होते हैं. जमींदारी चली गयी, साथ में दादागीरी भी. ऐसे में समझदार पुरखों ने सरनेम ही दादा लिखना शुरू कर दिया और परिवार की मौखिक शान कायम रखी. इसी दादा वंश की तीसरी पीढ़ी के सिपहसालार हैं - फुन्नी दादा. फुन्नी दादा यूँ तो हैं पचास के आस पास पर पच्चीस के दिखने के लिए खासी मशक्कत करते हैं. ऐसी मशक्कत जिसे देख महिलाएं भी गश खा जाएँ. सिंगल पसली के मालिक हैं, सुबह उठकर मुगदर भांजते हैं..जमाने को दिखाने के लिए..पड़ोसी इस राज को आज तक नहीं जान पाए हैं कि मुगदर थर्माकोल का बना हुआ है. फुन्नी दादा की खोपड़ी मरुस्थल बन चुकी है. पर लोगों को फसल होने का भ्रम होता रहे इसलिए समूची खोपड़ी में डाई लगाते हैं और ऊपर से काली टोपी पहन लेते हैं. फुन्नी दादा निपट कुंवारे हैं. सारे बाल मिट गए पर मुई शादी की चाहत न मिटी. फुन्नी दादा को इस स्थिति तक पहुँचाने के पीछे का कारण थे उनके पिता, मन्नी दादा. जिन्होंने सरकार की परिवार नियोजन योजना को धता बताते हुए आठ बच्चे पैदा किये थे. जिनमें सात लड़कियां थीं. फुन्नी दादा ऊपर से पहले नंबर पर थे. बाप की गलती का खामियाजा बेटे ने भुगता था. फुन्नी दादा के मन में अपने पिता के प्रति खासी खुन्नस थी. फुन्नी दादा कहते थे –‘मेरा बाप संतोषी नहीं था ..मेरे बाद एक और लाल की लालसा ने सात ललियाँ पैदा कर डालीं. पांच बीघे प्रति शादी के हिसाब से पैंतीस बीघे ज़मीन बेच डाली पर एक लड़के को न बेच पाए. पांच महीने हुए सबसे छोटी बहन की शादी किये हुए. खुद के घर में पानी टपकता है पर वाटर प्रूफ टेंट लगवा दिया. लालटेन जलाने को घर में तेल के लाले पड़े रहते हैं पर सड़क से लेकर घर और घर से लेकर जनवास तक छियासी ट्यूब लाइटें लगवा मारी थीं. कोटे से मिट्टी का तेल लाकर ढिबरी जलाने वाले मन्नी दादा ने पैंतीस हज़ार का लाईट हाउस बुक किया था. उन्होंने बेटियों को दहेज़ देने में कोई कोर कसर नहीं छोडी थी. उनका मानना था कि बेटी को दहेज़ के साथ विदा करने से वह सशक्त बनती है. बेटी की ससुराल में कन्या पक्ष का प्रभुत्व स्थापित होता है. वह समधियाने में सोफे पर पैर फैला कर बैठ सकते थे. मूंछो पर ताव दे सकते थे. आधी से ज्यादा ज़मीन दहेज़ के भेंट चढ़ गयी थी. मन्नी दादा को इस बात का कतई अफ़सोस न था. फुन्नी के अन्दर उनको बीस बीघे दिखाई पड़ते थे. हालांकि पहले तीस दिखाई पड़ते थे ..लेकिन बेटे की बढ़ती उम्र के साथ बीघे घटते गए .. अब इतना दाम भला कौन लगाएगा बेटे का ..

पंकज प्रसूनरचनाकार परिचय:-



पंकज प्रसून................।

हाँ तो बात फुन्नी दादा की चल रही थी.वह अंदर ही अन्दर पिता के कुपित रहते थे.पर बाहर जाहिर नहीं होने देते थे. उनकी शादी को लेकर गाँव में चुहलबाजी होती ही रहती थी. गाँव की भौजाइयां,चाचियों आदि पर इम्प्रेशन झाड़ने के लिए उन्होंने एक एल्बम बना रखा था जिसमें कई खूबसूरत लड़कियों के फोटो लगे होते थे. जो साड़ी के स्टीकर,पत्रिकाओं व ग्रीटिंग कार्ड्स से संकलित होती थीं.जैसे जैसे बहनों की शादियाँ निपटती गयीं वैसे वैसे इस फोटो संकलन के पन्ने भी बढ़ते गए.वह एल्बम दिखाते हुए गर्व से कहते थे ‘इतनी सारे प्रस्ताव आ चुके हैं पर मुझे ये लड़कियां पसंद नहीं आयीं, कारण यह है हम आतंरिक सुन्दरता चाहते हैं,भौतिक सौन्दर्य दिखावा मात्र है’. प्रेम के इस अद्भुत आध्यात्म को गाँव के खिल्लबाज अपने ही अंदाज में सेलिब्रेट करते थे. आतंरिक सौन्दर्य को लेकर कई नान वेज जुमले अगल बगल के गावों के ब्रिलियंट चुहलबाजों ने तैयार कर डाले थे.
फुन्नी दादा कहते थे इन चुहलबाजों से ‘उड़ा लो आज खिल्ली,एक दिन ऐसी खूबसूरत बेगम लाऊंगा कि खीसें थम जायेंगी तुम लोगों की. एक चुहलबाज बोला –‘हाय,काश कि सासें थम जातीं...’ फुन्नी दादा गुस्से में आये तो यह बोलता हुआ भाग गया कि सासें तो थमेंगी आपकी,..थाम नहीं पाओगे दादा इस उम्र में. इतना लबर लबर ठीक नहीं. ऐसी उम्र है दादा कि कहीं जोर की उल्टी हो जाय उल्टी के रास्ते दिल बाहर आ जायेगा.’
ऐसे कमेन्ट सुनकर फुन्नी दादा अपने मित्र कमलू साहू की दुकान पर शिलाजीत चाट चाट कर बाप को गरियाते थे. कमलू साहू आल राउंडर किस्म का बनिया था. उसने एक कमरे में पूरा शोपिंग माल सजा रखा था.गेहूं ,गुड़, चीनी, चायपत्ती,पीसीओ,मोबाइल,रीचार्ज,कपड़े से लेकर मेडिकल स्टोर तक सब मौजूद था उसकी दूकान में .कमलू साहू पल्लेदारी का काम भी करता था. फसल कटते ही फुन्नी दादा के घर पर बोरा लेकर पहुँच जाता था,और औने-पौने दाम पर अनाज खरीद लाता था.बदले में वह फुन्नी दादा को शिलाजीत खिलाता था. फुन्नी दादा को यह बिलकुल भी नहीं मालूम था कि मन्नी दादा भी उसके शिलाजीत क्लाइंट थे. चतुर सुजान कमलू गुप्त रूप से एक साथ दो पीढ़ियों को जवान बनाए रखने का पुनीत कार्य कर रहा था.युवा भारत निर्माण ऐसे ही होता है. शिलाजीत खिलाने के बाद कमलू फुन्नी दादा के फड़कते बाजुओं को पकड़कर बोला- ‘शांत हो जाओ गुरु, आप भी इन चिरकुटों की बातों से तैश में आ जाते हैं. ये लो आज का अखबार कुछ नए रिश्तों का विज्ञापन आया हुआ है.’ फुन्नी दादा अखबार के ‘वर चाहिए’ विज्ञापनों से नंबर नोट करने लगे. और फिर हमेशा की तरह कमलू साहू के पीसीओ से विज्ञापन पर दिए गए नंबरों पर फोन घुमाने लगे. वह खुद के बड़े भाई बनकर फोन करते थे, और एक सांस में सारी खूबियाँ बता डालते थे. ’लड़का अति सुन्दर है, एमए फर्स्ट इयर सेकण्ड क्लास से पास है, परिवार संभ्रांत है, सारी बहनें सेटल हैं, कोई नशा पत्ती नहीं करता है, अत्यंत व्यवहार कुशल है, आस पास में बहुत नाम है आदि आदि. कन्या पक्ष वाला पूछता कि सेलरी क्या पांच अंकों में है? इस बात पर वह खीझ जाते थे- ‘अनलिमिटेड है डेढ़ बीघे में जितना गेहूं पैदा कर ले उतनी कमाई’. फुन्नी दादा ‘जाति बंधन नहीं’ से लेकर ‘तकालशुदा महिला तीन बच्चों के साथ अकेली है, आवश्यकता है एक जिम्मेवार पति और पिता की’ जैसे विज्ञापनों के नंबर भी मिलाते थे पर बात कमाई पर आकर अटक जाती थी. आज फिर वही हुआ पचास रुपये पीसीओ में स्वाहा हो गए पर नतीजा वही ढाक के तीन पात. फुन्नी दादा ने बीड़ी सुलगाई और बोले –‘यार कमलू, आज कल हर कोई डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक, अधिकारी चाहता है,कोइ अच्छा इंसान चाहता ही नहीं’. कैसा लोकतंत्र है ये हम जैसों का क्या होगा ?’
‘गुरु, चिंता न करें देर आयेगी, दुरुस्त आएगी, आपको धैर्य रखना पड़ेगा,
‘यार कमलू, आज पचास रुपये हैं नहीं जेब में’
‘क्या बात करते हैं गुरु, कल पांच किलो गेहूं भिजवा दीजियेगा.’
सप्ताह में हर रविवार जब अखबार में मैट्रीमोनियल आता था तो फुन्नी दादा की यही स्थिति होती थी. फुन्नी दादा के मन में हमेशा यह कसक रहती थी कि अखबार में दिए नंबर को लड़की का बाप ही क्यों उठाता है?
आज की शाम फुन्नी दादा की ज़िंदगी में बहार बन कर आयी. उनकी नस नस में शिलाजीत दौड़ने लगा था. उनके पाँव ज़मीन पर नहीं पड़ रहे थे यही कारण था कि कमलू साहू के पीसीओ तक पहुँचने में उनको महज सेकंडों का समय लगा. मन्नी दादा उनकी स्पीड देख कर चिल्ला उठे ,’संभल कर बच्चा, इतना तेज हल चलाता तो पैदावार बढ़ जाती फसल की.’ बात कुछ यूँ थी कि आज शाम कमलू के पीसीओ पर किसी सुनीता का फोन आया था कानपुर से. वह फुन्नी दादा को पूछ रही थी. उसने आधे घंटे के बाद दोबारा फोन करने के लिए बोला था. फुन्नी दादा कमलू के साथ साँसें थाम कर फोन की घंटी की प्रतीक्षा करने लगे.उनका मन बावरा हो रहा था.धड़कनें धौंकनी बन चुकी थीं. कमलू उनको अश्वगंधा और मिश्री का चूर्ण देते हुए बोला- ‘कंट्रोल करो गुरु, नया चूरन है, फांका मार कर पानी पी लो आराम मिलेगा.’ गुरु ने फांका मारा नहीं की घंटी घनघनाई. फुन्नी दादा भूखे शेर के तरह फोन पर झपटे और चोंगा उठाते ही खरगोश बन गए. यह उधर से आयी मधुर आवाज़ का परिणाम था. हेल्लो जी ... सुनकर वह अन्दर तक हिल गए थे. सारे पेंच ढीले हो गए थे.
‘क्या आप कन्नी जी के छोटे भाई फुन्नी जी बोल रहे हैं?’
फुन्नी दादा की आवाज़ को जैसे लकवा मार गया था.
‘आँ .म.. म .फु..नी .’
‘जी फुन्नी जी, मैं सुनीता कुमारी कानपुर से बोल रही हूँ..आप कैसे हैं?’
फुन्नी दादा ने चोंगा सीने से लगा लिया था.
कमलू बोला- ‘वाह रे गुरु! अब चोंगा सीनें में घुसा ही डालोगे क्या? जवाब दो उसको, वर्ना समझ जायेगी की लड़का एकदम चोंगा है. ’
‘मैं अब ठीक हूँ, अभी अभी ठीक हुआ हूँ. आपका कबसे इंतज़ार था. कितना मीठा बोलती हैं आप.’
‘हाँ फुन्नी जी, मेरे पिताजी गन्ने के कारोबारी हैं. इसलिए ..’
‘वाह सुनीता जी! मुझे गन्ना बहुत पसंद है, मेरे घर के चारों और गन्ने की फसल है, मेरे पिता जी कोल्हू मालिक हैं’.
कमलू साहू भन्ना का बोला, ’हाँ,हाँ .. बाप कोल्हू मालिक हैं और लड़का कोल्हू का बैल है. देश का सारा गुड़ इनके ही यहाँ बनता है. बस करो गुरु.. वर्ना सारा गुड़ गोबर हो जाएगा.’
फुन्नी दादा सचेत होकर बोले, ’हाँ सुनीता जी, कितना पढ़ी हैं आप? परिवार में कौन कौन है?’
‘जी सोलहवीं पास हूँ, बापू मम्मी और एक छोटा भाई’
‘आप कितने साल की हैं?’
‘ये क्या पूछ लिया फुन्नी जी, आप भी न.. कहीं लड़कियों से उनकी उम्र पूछते हैं ?’
कमलू बोला ‘गुरु, यह पूछो कि छोटा भाई आपने कितने साल छोटा है?’
‘अच्छा सुनीता जी ..आप क्या पसंद करती हैं?’
‘मैं तो घूमना,खाना बनाना, गाने सुनना, सिलाई कढ़ाई और दही- बड़े बहुत पसंद करती हूँ, और साड़ियाँ पहनना मुझे बहुत अच्छा लगता है,और आप ?’
‘मुझे दूसरों की पसंद में शामिल रहना पसंद है’
क्या सही जगह तीर मारा था है गुरु अबकी.
फुन्नी दादा करीब आधे घंटे बात करते रहे ,जब तक कि उसने यह नहीं कह दिया कि मेरे बापू आ चुके हैं. फुन्नी दादा ने तमाम सारी बातें कर डाली. और अंत में उसका मोबाइल नंबर लेने में सफल रहे.
‘यार कमलू, आज मेरी ज़िंदगी का सबसे खूबसूरत दिन है, और एक वह दिन भी आएगा.–‘फुन्नी वेड्स सुनीता.’
‘गुरु ,इतना खुश मत हो,भाभी जी कि उम्र 25 है और आप पचास के पार निकलने वाले हैं. आपने उसकी उम्र तो पूछ ली पर अपनी उम्र कब तक छुपाओगे?’
‘यार कमलू, यह मौका मैं गंवाना नहीं चाहता कुछ कर कि जवानी जिंदाबाद जो जाए.’
‘तीन हज़ार का खर्चा आएगा. नया नुस्खा हाथ लगा है.. केसर मूसली और मकरध्वज.. खिल उठेगो गुरु. बालों के लिए हजार अलग से लगेंगे. भृंगराज की कीमत तो आपको पता ही है.’
‘तू दवा तैयार कर, मैंने बाप की चोरी से कुछ पैसे जमा किये हैं, निकाल लूँगा’
अब फुन्नी दादा का फोनेन कार्यक्रम नियमित रूप से चलने लगा, शाम सात से आठ बजे तक वह कमलू साहू के पीसीओ से चिपके रहते थे. एक घंटे में करीब सौ रुपये का बिल आता था. फुन्नी दादा का दिल में प्यार भरा जा रहा था और एकाउंट खाली होता जा रहा था.
कमलू ने समझाया-‘देखो गुरु, बात बन नहीं पा रही है. जिन्दगी भर का सवाल है और आप एक घंटे में जवाब ढूंढ लेना चाहते हैं. मेडिकल साइंस कहती है कि आधी रात में लड़की से बात करने से प्यार अंजाम तक पहुँच जाता है. यही वह समय होता है जब प्यार वाला हारमोनियम सुर में बजता है.’
हारमोनियम से उसका मतलब हारमोन से था.
‘तो मोबाइल लेना पड़ेगा. पर अकाउंट तो खाली हो चुका है.’
‘अरे गुरु! जब तक कमलू जिंदा है आपको फिकर करने के कोई जरूरत नहीं. मेरे पांच बच्चों के ट्यूशन लगवाने थे, मैं सोच रहा था कि गुरु आपसे ही क्यों न.. बदले में आपको मोबाइल दे दूंगा’
फुन्नी दादा भावुक हो गए थे- ‘कमलू तू मेरे लिए कितना करेगा.. तेरे एहसानों का बदला चुका नहीं पाऊंगा’
कमलू साहू ने फुन्नी दादा को दो हजार का मोबाइल चार हज़ार का बताते हुए दे दिया. और फुन्नी दादा उसके पांच बच्चों को साल भर ट्यूशन पढ़ाने के लिए अनुबंधित हो गए थे.
फुन्नी दादा अब जैसे ही ट्यूशन पढ़ा कर आते, फोन से चिपक जाते.. बड़े से बड़ा रावण भी जब रात में गर्लफ्रेंड से बात करेगा तो उसकी आवाज सुरीली हो जायेगी. सो फुन्नी दादा की भी हो जाती थी. दालान में पड़ी एक दूसरी खटिया पर मन्नी दादा सोया करते थे. वह अक्सर रात में उठकर नीम की पत्ती सुलगा देते थे. उनको फुन्नी दादा की आवाज से मच्छरों के भुनभुनाने का भ्रम होता रहता था. इसलिए ऊबकर फुन्नी दादा मंदिर के पास की झोपडी में रात को बिस्तर ले कर चले जाते, तो कभी बाग़ की और प्रस्थान कर जाते. फोन कैसे एक इंसान को गृहत्यागी बना देता है, उसका इससे अच्छा उदाहरण भला और क्या हो सकता है.
हाँ तो समय बीतता गया,बातें होती गयीं. जैसे कि देश में होता आया है. प्यार बढ़ता है तो नाम बिगड़ जाते हैं. यह नाम पड़ोसी ले ले तो लाठियां बरस जाती हैं, और प्रेमी ले तो किस्सियाँ .. अब फुन्नी दादा सुनीता के लिए फुनिया जानू हो गए थे और सुनीता उनके लिए सुनिया जानू. सारी रात खुसुर –पुसुर होती रहती थी. अब प्रेम वार्ता फ्री में तो हो नहीं सकती थी. कमलू फुन्नी दादा के मोबाइल में रिचार्ज पर रिचार्ज डाल रहा था, और फुन्नी दादा उसकी दूकान में अनाज की बोरियां. सुनीता ने उनका दिल इस कदर चुरा लिया था कि अब वह मन्नी दादा के नज़रों से छुपा कर भुसैले से गेहूं चुराने लगे थे. आज सुबह एक थैले में एक किलो गेहूं लेकर आये और कमलू को देते हुए बोले –‘भाई, छोटा रिचार्ज कर दे.’ फुन्नी दादा स्वाभिमानी थे उनके संस्कार इस बात की गवाही नहीं देते थे कि सुनीता उनको फोन करे. हाँ,मिस काल कर सकती थी. स्वाभिमान इस कदर हावी था कि वह अब सुनीता का मोबाइल भी रिचार्ज कराने लग गए थे.
फुन्नी दादा सुनिया जानू की हर इच्छा पूरी करते थे. कानपुर में उसके नाम से मनी ऑर्डर भेजते थे, हर त्यौहार उसके लिए साड़ी भेजते थे. इतना प्यार लुटा चुके थे कि खुद लुटने के करीब पहुँच चुके थे. सुनीता उनको कई बार कानपुर बुलाती थी, पर वह टाल जाते थे. असल में उनका कोर्स अभी पूरा नहीं हुआ था. कोर्स? अरे वही जवानी वाला कोर्स जो कमलू साहू करा रहा था. उनको कमलू साहू पर पूरा विश्वास था कि एक दिन वह पच्चीस वाला बदन और बाल पा लेंगे, फिर अपनी सुनिया से मिलने जायेंगे और उसके बापू को ससुर बनाने का प्रस्ताव रखेंगे.
आठ महीने हो गए थे, फुन्नी दादा मन ही मन जवान हो रहे थे. कमलू साहू बहुत होशियार था. किसी कुशल वैध की तरह विशुद्ध मोरल सपोर्ट देता था, और अशुद्ध चूर्ण. खड़िया मिट्टी में पीला रंग और अश्वगंधा मिला कर कर देता था. जिसमें खड़िया मिट्टी सफ़ेद मूसली का और पीला रंग केसर का प्रतीक था. फुन्नी दादा की बालविहीन खोपड़ी देखने का अधिकार सिर्फ कमलू को ही प्राप्त था. वह कहता था- जमीन को इतनी उपजाऊ बना दूंगा गुरु कि फसल तो आयेगी ही आयेगी.’ कमलू के इसी मोरल सपोर्ट ने फुन्नी दादा को अतिआशावादी बना दिया था.
फुन्नी दादा सावन की आशा में प्यार की पेंगे मार रहे थे. इधर भुसैले में से गेहूं की बोरियां गायब हो रही थीं. ऐसे में मन्नी दादा को शक होना लाजिमी था. वह फुन्नी की दिनचर्या का विसद अध्ययन करने लगे. और जल्द पता चल गया कि बेटा इश्कबाजी की चपेट में है. पर मन्नी दादा ताव में नहीं आये. उन्होंने बैठ कर विचार किया और निष्कर्ष यह निकाला कि सारे इश्क की जड़ यह मोबाइल फोन है. इनको ख़त्म करके परिवार को ख़त्म होने से बचाया जा सकता है. उन्होंने मोबाइल को नष्ट करने का फैसला कर लिया.
शाम ढले फुन्नी दादा जब अपना चेहरा साफ़ कर रहे थे, ठीक उसी समय उन्होंने फुन्नी की जेब से मोबाइल साफ़ कर दिया. फिर आम की बाग़ में अपने विश्वस्त पिंटू तिवारी की मदद से सिम का अंतिम संस्कार किया. फिर नश्वर मोबाइल को वहीं बाग़ में दफ़न कर दिया. और विजयी भाव से वापस आ गए.
फुन्नी दादा दिन भर मोबाइल खोजते रहे. इंसान पशु पक्षी सबसे पूछते रहे. उनका हाल सीता की खोज में निकले राम जैसा हो गया था.’हे बबलू हे राम कुमारा ..का देखेव मोबाइल हमारा ?’ उनकी लैलागीरी पिंटू तिवारी से देखी न गयी.. और उसने मोबाइल की शहादत का आँखों देखा हाल बयाँ कर दिया.
थोड़ी ही देर में ढिबरी के उजाले में वही पिंटू फुन्नी दादा के साथ मोबाइल की कब्र उधेड़ रहा था. और फुन्नी दादा अपने बाप को पारिवारिक गालियों से नवाज रहे थे.. दो फिट खुदाई के बाद पिंटू ने जैसे ही फुन्नी दादा को मोबाइल का क्षतिग्रस्त शव निकाल कर दिया.. वह मोबाइल को छाती से लगाकर हाय सुनिया हाय सुनिया करते हुए फफक पड़े.- ‘हाय रे यह हाल कर डाला, आत्मा कहाँ है इसकी? पिंटू ने कुचला हुआ सिम उनको दिखाया.
‘इतना क्रूर तो अमरीश पुरी नहीं रहा होगा, साले ..आत्मा तक को कूच डाला’
पर पिंटू ने उनको ढांढस बंधाया- ‘दादा ,शरीर तो जीवित है अभी, मोबाइल तो ऑन हो गया है’
‘तो इसमें नयी आत्मा डाल, मुझे तुरंत अपनी सुनिया से बात करनी है’
‘पर स्क्रीन जल रही है सिर्फ. इस पर कोई नंबर नहीं आ रहा है’
‘मैं कह रहा हूँ आत्मा डाल तू, सुनिया का नंबर तो दिल में नोट है’
पिंटू ने फुन्नी दादा के मोबाइल में अपना सिम डाल दिया, जिसमें चार रुपये का बैलेंस शेष था. और उन्होंने चट से सुनिया का नंबर डायल कर दिया. और गीली आवाज में सुनिया.. सुनिया.. जपने लगे. मोबाइल का माइक टूट गया था जिसकी वजह से इधर की आवाज सुनिया तक नहीं पहुँच पा रही थी. और उधर से किसी जेंट्स की आवाज आ रही थी. जो हैलो कहकर फोन काट दे रहा था., पर फुन्नी दादा की चुल बढ़ती ही जा रही थी, सिम में एक रुपये बचे थे. यानी एक मिनट. और इस एक मिनट में फुन्नी दादा पूरी की पूरी सुनामी झेल गए थे.जब उधर से आवाज़ आयी,’कौन है बे..सामने आ..मेरी लुगाई को रात में फोन करता है .. लगता है तूने कमलू साहू का नाम नहीं सुना. फोन रख स्साले..’
फुन्नी दादा भन्ना गए.कानों के रास्ते करंट पूरे शरीर में फ़ैल गयी.. दिमाग फ्लैश बैक में चला गया, एक मिनट में प्रेम की पूरी कैसेट रिवाइंड हो गयी थी. बोले –‘पिंटू एक काम कर ..मोबाइल वाला गड्ढा पांच फुट लंबा और आठ फुट गहरा कर दे.’
‘क्या हुआ दादा ?’
‘कब्र बनवानी है’
‘किसकी ?’
‘खुद की’
‘क्यों दादा, महबूबा बेवफा निकल गयी क्या ?
‘ऐसा कर,दो कब्रें खोद’
‘क्या ज़माना आपको मिलने नहीं दे रहा..या एक फूल दो माली..’
‘अबे फूल कहकर फूल की बेइज्जती तो न कर ! जिसको फूल समझा था वह तो कटहल निकला..जिसके ऊपर कांटे ही कांटे हैं.,ये बता पिंटू,कमलू की लुगाई का माइका कहाँ है?’
‘कानपुर में.क्यों ?
‘मनी आर्डर याद आ गए,साड़ियाँ याद आ गयीं’
‘ऐसा कर,तीन कब्रें खोद..’

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