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तवज्जो [लघुकथा] - रचना व्यास

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लड़के का फोटो दिखाते हुए पंडितजी बोले "तो आपकी ओर से भी रिश्ता पक्का है ना |

रचना व्यासरचनाकार परिचय:-



रचना व्यास मूलत: राजस्थान की निवासी हैं। आपने साहित्य और दर्शनशास्त्र में परास्नातक करने के साथ साथ कानून से स्नातक और व्यासायिक प्रबंधन में परास्नातक की उपाधि भी प्राप्त की है।

करोड़ो की संपत्ति का अकेला वारिस और उनकी फैक्ट्री भी तो है | बिटिया इतनी पढ़ी -लिखी है , संभाल ही लेगी | अब देखना क्या है ?" पिता संतुष्ट थे चलो कुछ रचनात्मक व चुनौतीपूर्ण करने का बिटिया का सपना भी पूरा हो जायेगा | महलनुमा घर में उसका गृहप्रवेश हुआ फिर उसी रात पति की मानसिक अक्षमता के बारे में जानकर वह समझी कि उसकी सक्षमता को इतनी तवज्जो क्यों दी जा रही थी ?

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8 टिप्पणियाँ

  1. बहुत बढ़िया .....रचना व्यास जी को बधाई ....!

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  2. बहुत बढ़िया .....रचना व्यास जी को बधाई ....!

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  3. रचनाजी,
    आपने तो थोड़े शब्दों में काफी कुछ कह दिया, के "यह ख़िलक़त है भय्या ! बहू-बेटी को लक्ष्मी कहते ज़रुर है, मगर वास्तव में वो बाज़ार की लेन-देन की सामग्री बन गयी है ! जैसे गाय को माता कहते हैं मगर उसके खून से बने दूध को बाज़ार में बेचा जाता है ! यह नहीं देखा जाता, के इस गाय का दूध उसके टोगड़े के लिए पैदा होता है ! बस इसी तरह कन्या कितनी भी योग्य हो, मगर उसकी योग्यता उसके कल्याण के लिए न होकर उसके ससुराल के हित साधने के लिए होती है !" अब रचनाजी कुछ ऐसा कीजिये, आप ज़रा सत्ती की मार्मिक दशा का बखान करते हुए एक मार्मिक कहानी लिखें ! जोधपुर आ जाइए, देखिये उन सत्तियों की समाधियाँ, जिनको समाज पूजता आया है..पति के मरने के बाद अफवाह फैला दी जाती थी "अमुख मृतक की पत्नि पति के बिछोह के कारण जलकर सत्ती होना चाहती है ! फिर क्या उस ग़मगीन औरत को अफीम का प्याला पिला दिया जाता था ! बस वो ग़मगीन औरत नशे में नारियल लिए श्मसान जाती थी, और वहां तैयार चिता पर उसे बैठा दिया जाता! होश में आने पर वह अपने बचाव के लिए उठने का प्रयास करती तो ये समाज के ढोंगी लाठी का प्रहार कर उसे वापस चिता में ढकेल देते थे ! जलने के बाद उस औरत की समाधि बना दी जाती थी! कई पीढ़ियों तक उसके परिवार वाले समाधि पर आये चढ़ावे से लाभान्वित होते रहते हैं !" चांदपोल के बाहर आये श्मसान में कई सत्तियों के शिला-खंड आपको देखने के लिए मिल जायेंगे ! वहां आपको नाथावत व्यासों की सत्ती की समाधि भी मिल जायेगी, जिसका पीहर कल्लों की गली के पास बिस्सों के चौक में है ! ससुराल तापी बावड़ी के निकट वाली नाथावातो की गली में है ! कहते है, इस सत्ती का परचा है ! लोगों की मन्नत पूरी करती है ! उस सत्ती को पति की मौत के पहले होली के दिन नणन्द, जेठानियों ने कटु-शब्द सुनाये थे ! ऐसा कहते हैं, के उन कटु-शब्दों से आहत होकर पति की मौत के बाद, उसने सत्ती होने का निर्णय लिया था ! इसी तरह सिवांची-गेट के पास आपको बोहरों की सत्ती की समाधि भी मिल जायेगी, अब वो स्थान लोगों को शादी-ब्याव आदि कामों के लिए किराए पर दिया जाता है ! बस, रचानाजी आपको एक ही बात कहानी में दर्शानी है "औरत जीवित अवस्था में और मरने के बाद भी लाभ की वस्तु बनकर रह गयी है ! यानि ज़िंदा हाथी लाख का, और मरा हुआ हाथी सवा लाख का!
    दिनेश चन्द्र पुरोहित [लेखक एवं अनुवादक] dineshchandrapurohit2@gmail.com

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