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बस इक शज़र गया [ग़ज़ल] - गौरव शुक्ला

यूँ देखिये तो आँधियों में बस इक शज़र गया
लेकिन न जाने कितने परिन्दों का घर गया

जैसे गलत पते पे चला जाए कोई शख़्स
सुख ऐसे मेरे दर पे रुका और गुज़र गया

मैं ही सबब था अबके भी अपनी शिक़स्त का
इल्ज़ाम अबकी बार भी किस्मत के सर गया

अर्से से दिल ने की नहीं सच बोलने की ज़िद
हैरान हूँ मैं कैसे ये बच्चा सुधर गया

उनसे सुहानी शाम का चर्चा न कीजिये
जिनके सरों पे धूप का मौसम ठहर गया

जीने की कोशिशों के नतीजे में ही अक्सर
महसूस ये हुआ कि मैं कुछ और मर गया

रचनाकार परिचय:-
लखनऊ निवासी आई.टी. एक्‍सपर्ट गौरव शुक्ला कुछ अरसा पहले अपनी आँखों की ज्‍योति खो चुके हैं। गहरे डिप्रेशन में चले जाने के बाद उन्‍होंने जैसे पूरी दुनिया से नाता ही तोड़ लिया था। अपना लिखा सब कुछ मिटा दिया। हमें उनकी ये कविताएं बहुत मुश्किल से मिल पायी हैं। आजकल वे ब्रेल के जरिेये अपने और अपने जैसे दूसरे दृष्टिहीनों के लिए संवाद की नयी दुनिया की तलाश में लगे हैं। हमें पूरा विश्‍वास है, एक दिन वे अपनी कविता की बेहतर और परिचित दुनिया में लौटेंगे।

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6 टिप्पणियाँ

  1. यूँ देखिये तो आँधियों में बस इक शज़र गया
    लेकिन न जाने कितने परिन्दों का घर गया................ye sher Munavvar rana ka hai

    जवाब देंहटाएं
  2. जैसे गलत पते पे चला जाए कोई शख़्स
    सुख ऐसे मेरे दर पे रुका और गुज़र गया
    बहुत खूब !

    जवाब देंहटाएं
  3. Bhai Rajesh Reddi ji ki ghazal hai ye..Kam se kam unka naam to de dete gaurav Bhai...

    जवाब देंहटाएं
  4. Bhai Rajesh Reddi ji ki ghazal hai ye..Kam se kam unka naam to de dete gaurav Bhai...

    जवाब देंहटाएं

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