एपायल छनकाती बेटियां
संजय वर्मा "दृष्टि" २-५-१९६२ को उज्जैन में जन्मे लेखक है। कई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में इनके पत्र और रचनाएँ नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। आप आकाशवाणी से भी काव्य पाठ कर चुके हैं। इन्हें कई सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है
मधुर संगीत सुनाती बेटियां
पिता की साँस बेटियां
जीवन की आस बेटियां
हाथों की लकीर बेटियां
राखी की डोर बेटियां
उचाईयों को छू जाती बेटियां
होसला बढ़ा जाती बेटियां
चाँद -तारों से प्यारी बेटियां
उम्मीद की किरण बेटियां
मेहंदी रचाती रहती बेटियां
ख्वाबो के रंग सजाती बेटियां
ससुराल जब जाती बेटियां
यादें घरों मे छोड़ जाती बेटियां
जब -जब संदेशा भेजती बेटियां
मन को खुश कर जाती बेटियां
आँखों मे सदा ही बसती बेटियां
आंसू बन संग हमारे रहती बेटियां
मातापिता का बनती सहारा बेटियां
मजबूत रिश्तों का बंधन होती बेटियां
1 टिप्पणियाँ
इतनी गुणी होने पर भी जाने क्यों कुछ नासमझ लोगों की आँखों में खटकती हैं बेटियां ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ...
गणेशोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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