
सतपाल ख्याल ग़ज़ल विधा को समर्पित हैं। आप निरंतर पत्र-पत्रिकाओं मे प्रकाशित होते रहते हैं। आप सहित्य शिल्पी पर ग़ज़ल शिल्प और संरचना स्तंभ से भी जुडे हुए हैं तथा ग़ज़ल पर केन्द्रित एक ब्लाग आज की गज़ल का संचालन भी कर रहे हैं। आपका एक ग़ज़ल संग्रह प्रकाशनाधीन है। अंतर्जाल पर भी आप सक्रिय हैं।
सोचिये अब भला-बुरा मौसम
टकटकी बांधे देखता मैं रहा
और धुएँ सा पसर गया मौसम
एक छ्ल्ला मिला है पीतल का
मुझको अलमारी में मिला मौसम
एक दिन मिल गया वो मिट्टी में
सख़्त हालात से लड़ा मौसम
मेरे जैसे उदास सा ही दिखा
बाद मुद्धत के जो मिला मौसम
धूप और छांव ज़िंदगी है "ख़याल"
ज़र्द होगा कभी हरा मौसम॥
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