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खड़े हैं पेड़ [कविता] - अशोक बाबू माहौर

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खड़े हैं
मुँह बाँधे
निकालकर कंघी
लहराते,सँवारते
अपने आप को
पेड़

अशोक बाबू माहौररचनाकार परिचय:-

नाम- अशोक बाबू माहौर
जन्म-10/01/1985
साहित्य लेखन - विभिन्न साहित्यक विधाओं में संलग्न
प्रकाशन: रचनाकार,स्वर्गविभा,हिन्दीकुंज,अनहद कृति आदि हिंदी की साहित्यक पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित
सम्मान: ई-पत्रिका अनहद कृति की तरफ से 'विशेष मान्यता सम्मान २०१४-१५' से अलंकृत
संपर्क: ग्राम-कदमन का पुरा,तहसील-अम्बाह,जिला-मुरैना (मध्य प्रदेश)

अनगिनत नीम के
शीशम के
स्तम्भ से
सीना तान
बबूल के


मंद समीर
इर्द-गिर्द दौड़कर
उनकी पत्तियाँ गिनती
करती बातायन
सबसे

खंगालती जड़ें
मिटटी हिला डुला कर


बैठकर शिखर पर
पेड़ की टहनयों पर
घूमकर
रगड़कर खुद को
छालों की
चटाई पर

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