जलते वन के इस तरुवर को
पावस का संग्यान करा दो।
आज प्रिये मधुपान करा दो।।
रचनाकार परिचय:-
सुख-दुख के ताने-बाने में
लखनऊ निवासी आई.टी. एक्सपर्ट गौरव शुक्ला कुछ अरसा पहले अपनी आँखों की ज्योति खो चुके हैं। गहरे डिप्रेशन में चले जाने के बाद उन्होंने जैसे पूरी दुनिया से नाता ही तोड़ लिया था। अपना लिखा सब कुछ मिटा दिया। हमें उनकी ये कविताएं बहुत मुश्किल से मिल पायी हैं। आजकल वे ब्रेल के जरिेये अपने और अपने जैसे दूसरे दृष्टिहीनों के लिए संवाद की नयी दुनिया की तलाश में लगे हैं। हमें पूरा विश्वास है, एक दिन वे अपनी कविता की बेहतर और परिचित दुनिया में लौटेंगे।
उलझा रहा चिरंतर...
दुर्गम पथ पर, चोटिल पग ले
चलता रहा निरंतर...
जीवित हूँ पर जीवन क्या है
इसका मुझको भान करा दो।
आज प्रिये मधुपान करा दो।।
थके हुए निर्जल अधरों में
फिर से प्यास जगी है।
सुलग रही यह काया भीतर
जैसे आग लगी है।
देखो मेरी ओर नयन भर
तृष्णा का अवसान करा दो।
आज प्रिये मधुपान करा दो।।
जैसे दूर हुये जाते हैं
हम ख़ुद ही अपने से।
अच्छे दिन जो बीत चुके हैं
लगते हैं सपने से।
मन में श्याम निशाएं गहरी
उनका एक विहान करा दो।
आज प्रिये मधुपान करा दो।।
1 टिप्पणियाँ
very nice
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.