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रसानंद दे छंद नर्मदा : ५ [लेखमाला]- आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

साहित्य शिल्पी
साहित्य शिल्पी के पाठकों के लिये आचार्य संजीव वर्मा "सलिल" ले कर प्रस्तुत हुए हैं "छंद और उसके विधानों" पर केन्द्रित आलेख माला। आचार्य संजीव वर्मा सलिल को अंतर्जाल जगत में किसी परिचय की आवश्यकता नहीं। आपने नागरिक अभियंत्रण में त्रिवर्षीय डिप्लोमा, बी.ई., एम.आई.ई., एम. आई. जी. एस., अर्थशास्त्र तथा दर्शनशास्त्र में एम. ए., एल-एल. बी., विशारद, पत्रकारिता में डिप्लोमा, कंप्युटर ऍप्लिकेशन में डिप्लोमा किया है।

साहित्य सेवा आपको अपनी बुआ महीयसी महादेवी वर्मा तथा माँ स्व. शांति देवी से विरासत में मिली है। आपकी प्रथम प्रकाशित कृति 'कलम के देव' भक्ति गीत संग्रह है। 'लोकतंत्र का मकबरा' तथा 'मीत मेरे' आपकी छंद मुक्त कविताओं के संग्रह हैं। आपकी चौथी प्रकाशित कृति है 'भूकंप के साथ जीना सीखें'। आपने निर्माण के नूपुर, नींव के पत्थर, राम नाम सुखदाई, तिनका-तिनका नीड़, सौरभ:, यदा-कदा, द्वार खड़े इतिहास के, काव्य मन्दाकिनी 2008 आदि पुस्तकों के साथ साथ अनेक पत्रिकाओं व स्मारिकाओं का भी संपादन किया है। आपने हिंदी साहित्य की विविध विधाओं में सृजन के साथ-साथ कई संस्कृत श्लोकों का हिंदी काव्यानुवाद किया है। आपकी प्रतिनिधि कविताओं का अंग्रेजी अनुवाद 'Contemporary Hindi Poetry" नामक ग्रन्थ में संकलित है। आपके द्वारा संपादित समालोचनात्मक कृति 'समयजयी साहित्यशिल्पी भागवत प्रसाद मिश्र 'नियाज़' बहुचर्चित है।

आपको देश-विदेश में 12 राज्यों की 50 सस्थाओं ने 75 सम्मानों से सम्मानित किया जिनमें प्रमुख हैं- आचार्य, वाग्विदाम्बर, 20वीं शताब्दी रत्न, कायस्थ रत्न, सरस्वती रत्न, संपादक रत्न, विज्ञान रत्न, कायस्थ कीर्तिध्वज, कायस्थ कुलभूषण, शारदा सुत, श्रेष्ठ गीतकार, भाषा भूषण, चित्रांश गौरव, साहित्य गौरव, साहित्य वारिधि, साहित्य शिरोमणि, साहित्य वारिधि, साहित्य दीप, साहित्य भारती, साहित्य श्री (3), काव्य श्री, मानसरोवर, साहित्य सम्मान, पाथेय सम्मान, वृक्ष मित्र सम्मान, हरी ठाकुर स्मृति सम्मान, बैरिस्टर छेदीलाल सम्मान, शायर वाकिफ सम्मान, रोहित कुमार सम्मान, वर्ष का व्यक्तित्व(4), शताब्दी का व्यक्तित्व आदि।

आपने अंतर्जाल पर हिंदी के विकास में बडी भूमिका निभाई है। साहित्य शिल्पी पर "काव्य का रचना शास्त्र (अलंकार परिचय)" स्तंभ से पाठक पूर्व में भी परिचित रहे हैं। प्रस्तुत है छंद पर इस महत्वपूर्ण लेख माला की पाँचवीं कड़ी:
​दोहा की छवियाँ अमित   

दोहा की छवियाँ अमित, सभी एक से एक 
निरख-परख रचिए इन्हें, दोहद सहित विवेक
​ 


रम जा दोहे में तनिक, मत कर चित्त उचाट  
ध्यान अधूरा यदि रहा, भटक जायेगा बाट 
 

दोहा की गति-लय पकड़, कर किंचित अभ्यास 
या मात्रा गिनकर 'सलिल', कर लेखन-अभ्यास 

दोहा छंद है शब्दों की मात्राओं के अनुसार 
​रचा जाता 
है
 इस
​में
 दो पद
​ ​
 
​(पंक्ति) 
तथा प्रत्येक पद में दो चरण 
​(विषम १३ मात्रा तथा सम)​ 
होते हैं.
​ चरणों के अंत में यति (विराम) होती है दोहा 
के
 विषम चरण 
​के आ
रम्भ 
​में एक शब्द में जगण  निषिद्ध है। विषम चरणों में कल-क्रम (मात्रा-बाँट) 
३ ३ २ ३ २
​ या 
४ ४ ३ २
​  तथा सम चरणों में 
३ ३ २ ३
​ या 
४ ४ ३
​ हो तो लय सहज होती है, किन्तु अन्य  निषिद्ध नहीं हैं।
संक्षिप्तता, लाक्षणिकता, सार्थकता, मर्मबेधकता तथा सरसता 
​उत्तम दोहे के गुण हैं
​​
​ 
कथ्य, भाव, रस, बिम्ब, लय, अलंकार, लालित्य
​ 
 
गति-यति नौ गुण नौलखा, दोहा हो आदित्य

​                                                    
डॉ. श्यामानन्द सरस्वती 'रौशन'​,​
​ ​
खडी हिंदी
​​
  
​                                                   ​
दोहे में अनिवार्य हैं, कथ्य-शिल्प-लय-छंद
​​
​                                                                                                       ​                
ज्यों गुलाब में रूप-रस. गंध और मकरंद
​ ​

​रामनारायण 'बौखल', बुंदेली ​
गुरु ने दीन्ही चीनगी, शिष्य लेहु सुलगाय
​ ​
चित चकमक लागे नहीं, याते बुझ-बुझ जाय
​​ 


​                                                                     
                                                                  मृदुल कीर्ति
​, ​
अवधी
​                                                          कामधेनु दोहावली, दुहवत ज्ञानी वृन्द
  
​                                                 
सरल, सरस, रुचिकर,गहन, कविवर को वर छंद
​ 
।।

सावित्री शर्मा, बृज भाषा 
शब्द ब्रम्ह जाना जबहिं, कियो उच्चरित ॐ 
होने लगे विकार सब, ज्ञान यज्ञ में होम
​ 

शास्त्री नित्य गोपाल कटारे
​,​
 
संस्कृत
​ 
वृक्ष-कर्तनं करिष्यति, भूत्वांधस्तु भवान्
​ ​

पदे स्वकीये कुठारं, रक्षकस्तु भगवान्
​ 
 

ब्रम्हदेव शास्त्री
​,​
​ ​
मै
​थि
ली
 
की हो रहल समाज में?, की करैत समुदाय?
किछु न करैत समाज अछि, अपनहिं सैं भरिपाय
​ 

डॉ. हरनेक सिंह 'कोमल'
​, ​
पंजाबी 
पहलां बरगा ना रिहा, लोकां दा किरदार

मतलब दी है दोस्ती, मतलब दे ने यार
 
बाबा शेख फरीद शकरगंज (११७३-१२६५)

कागा करंग ढढोलिया, सगल खाइया मासु
​ 

ए दुई नैना मत छुहऊ, पिऊ देखन कि आसु
​ 


दोहा के २३ प्रकार लघु-गुरु मात्राओं के संयोजन पर निर्भर हैं।

गजाधर कवि, 
दोहा मंजरी 
भ्रमर सुभ्रामर शरभ श्येन मंडूक बखानहु
​ 
मरकत करभ सु और नरहि हंसहि परिमानहु
​ 
गनहु गयंद सु और पयोधर बल अवरेखहु
​ 
वानर त्रिकल प्रतच्छ, कच्छपहु मच्छ विसेखहु
​ 
शार्दूल अहिबरहु व्यालयुत वर विडाल अरु.अश्व्गनि
​ 
 
उद्दाम उदर अरु सर्प शुभ तेइस विधि दोहा करनि
​ 
 
*

दोहा के तेईस हैं, ललित-ललाम प्रकार
​ 
व्यक्त कर सकें भाव हर, कवि विधि के अनुसार
​ 

भ्रमर-सुभ्रामर में रहें, गुरु बाइस-इक्कीस
​ 
शरभ-श्येन में गुरु रहें, बीस और उन्नीस
​ 

रखें चार-छ: लघु सदा, भ्रमर सुभ्रामर छाँट
​ 
 
आठ और दस लघु सहित, शरभ-श्येन के ठाठ
​ 

भ्रमर- २२ गुरु, ४ लघु=४८

बाइस गुरु, लघु चार ले, रचिए दोहा मीत 
 
भ्रमर सद्रश गुनगुन करे, बना प्रीत की रीत
​ 

सांसें सांसों में समा, दो हो पूरा काज
​ 
 
मेरी ही तो हो सखे, क्यों आती है लाज ? 

सुभ्रामर - २१ गुरु, ६ लघु=४८

इक्किस गुरु छ: लघु सहित, दोहा ले मन मोह
​ 
कहें सुभ्रामर कवि इसे, सह ना सकें विछोह
​ 
 

पाना-खोना दें भुला, देख रहा अज्ञेय
​ 
हा-हा,ही-ही ही नहीं, है सांसों का ध्येय
​ 

शरभ- २० गुरु, ८ लघु=४८

रहे बीस गुरु आठ लघु का उत्तम संयोग
​ 
कहलाता दोहा शरभ, हरता है भव-रोग
​ 

हँसे अंगिका-बज्जिका, बुन्देली के साथ
​ 
मिले मराठी-मालवी, उर्दू दोहा-हाथ
​ 

श्येन- १९ गुरु, १० लघु=४८

उन्निस गुरु दस लघु रहें, श्येन मिले शुभ नाम
​ 
 
कभी भोर का गीत हो, कभी भजन की शाम
​ 

ठोंका-पीटा-बजाया, साधा सधा न वाद्य
​ 
बिना चबाये खा लिया, नहीं पचेगा खाद्य
​ 

मंडूक- १८ गुरु, १२ लघु=४८

अट्ठारह-बारह रहें, गुरु-लघु हो मंडूक 

दोहा में होता सदा, युग का सच ही व्यक्त 

देखे दोहाकार हर, सच्चे स्वप्न सशक्त 

मरकत- १७ गुरु, १४ लघु=४८
सत्रह-चौदह से बने, मरकत करें न चूक 


निराकार-निर्गुण भजै, जी में खोजे राम 

                                    गुप्त चित्र ओंकार का, चित में रख निष्काम 
।                                                                                                             
दोहा के शेष प्रकारों पर अगली कड़ी में विचार करेंगे।
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                                      - क्रमश: ६

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