ताटंक/ लावणी छंद
मात्रा भार– 30 मात्राएँ,16 एवं 14 पर यति!
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मात्रा भार– 30 मात्राएँ,16 एवं 14 पर यति!
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नाम- डॉ० राजीव जोशी
जन्म- १७ सितम्बर १९७७
माता- स्व० श्रीमती लक्ष्मी देवी
पिता- श्री खीमानन्द जोशी
ग्राम- भयेड़ी, पो०- क्वैराली, जनपद-बागेश्वर(उत्तराखंड)
शिक्षा- एम०एस०सी०(भौतिकी),एम०ए०(हिंदी, शिक्षा-शास्त्र)
बी०एड०,एल०एल-बी०,आइ०जी०डी०-बॉम्बे,पी-
एच०डी०(हिंदी), यू०जी०सी०नेट.
लेखन- हिमांशु जोशी: रूप एक रंग अनेक, विभिन्न राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं, समाचार पत्रों तथा ऑनलाइन जनरल्स(पत्रिकाओं) में कविताएं, लेख एवं शोध-पत्र प्रकाशित, कहानी लेखन.
शोध/आलेख- हिमांशु जोशी:कृतित्व के नए आयाम(हिमांशु जोशी के व्यक्तित्व एवं सम्पूर्ण कृतित्व तथा पत्रकारिता का शास्त्रीय अध्ययन), मध्य हिमालयी पहाड़ी की भाषिक संरचना, हिमांशु जोशी का बाल साहित्य, हिंदी वर्तनी की समस्याएं, देवसिंह पोखरिया का काव्य सौष्ठव, पत्रकारिता एवं हिमांशु जोशी, समकालीन कहानियों में व्यंग्य.
संप्रति- राजकीय इंटरकॉलेज हड़बाड़, जनपद-बागेश्वर, उत्तराखंड में भौंतिक विज्ञान प्रवक्ता पद पर कार्यरत.
ई-मेल rajeevbageshwar@gmail.com
फोन न०- ९६३९४७३४९१, ९४१२३१३७१७
जन्म- १७ सितम्बर १९७७
माता- स्व० श्रीमती लक्ष्मी देवी
पिता- श्री खीमानन्द जोशी
ग्राम- भयेड़ी, पो०- क्वैराली, जनपद-बागेश्वर(उत्तराखंड)
शिक्षा- एम०एस०सी०(भौतिकी),एम०ए०(हिंदी, शिक्षा-शास्त्र)
बी०एड०,एल०एल-बी०,आइ०जी०डी०-बॉम्बे,पी-
एच०डी०(हिंदी), यू०जी०सी०नेट.
लेखन- हिमांशु जोशी: रूप एक रंग अनेक, विभिन्न राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं, समाचार पत्रों तथा ऑनलाइन जनरल्स(पत्रिकाओं) में कविताएं, लेख एवं शोध-पत्र प्रकाशित, कहानी लेखन.
शोध/आलेख- हिमांशु जोशी:कृतित्व के नए आयाम(हिमांशु जोशी के व्यक्तित्व एवं सम्पूर्ण कृतित्व तथा पत्रकारिता का शास्त्रीय अध्ययन), मध्य हिमालयी पहाड़ी की भाषिक संरचना, हिमांशु जोशी का बाल साहित्य, हिंदी वर्तनी की समस्याएं, देवसिंह पोखरिया का काव्य सौष्ठव, पत्रकारिता एवं हिमांशु जोशी, समकालीन कहानियों में व्यंग्य.
संप्रति- राजकीय इंटरकॉलेज हड़बाड़, जनपद-बागेश्वर, उत्तराखंड में भौंतिक विज्ञान प्रवक्ता पद पर कार्यरत.
ई-मेल rajeevbageshwar@gmail.com
फोन न०- ९६३९४७३४९१, ९४१२३१३७१७
पा कर 'राफ़' ज्यों ज्वाला की, ....हिम ने सीखा है गलना
उँगली थाम तुम्हारी पापा, ....मैने सीखा है चलना
गढ़ कुम्हार के माफिक मुझको, तन-मन सब संवार दिया
है जीवन का कण-कण सारा, तुमसे ही उधार लिया ||1||
चेहरे पर गुस्से की लाली.. भौंहें तनिक चढ़ा ली थी
गलत राह से मुझे खींचने, तुमने बाँह बढ़ा ली थी
लगता है जब भी डर मुझको, पापा कह पुकार लिया
है जीवन का कण-कण सारा,तुमसे ही उधार लिया ||2||
मेरी ख़ातिर चले दूर तक, रख कर काँधे पर मुझको
किया त्याग स्वयं ही सब कुछ,कमी न होने दी मुझको
पिता रूप में सख्त रहे तुम, बन कर 'मय्या' प्यार दिया
है जीवन का कण- कण सारा,तुमसे ही उधार लिया ||3||
माँ के खातिर तो मैं कुछ भी, करने में असमर्थ रहा
आगे भी ना कर पाया तो,ये जीवन भी व्यर्थ अहा!
चरण आपके, चार धाम हैं, मुझको ये संस्कार दिया
है जीवन का कण-कण सारा, तुमसे ही उधार लिया ||4||
शब्दार्थ- राफ़ (मध्य हिमालयी पहाड़ी की कुमाउनी बोली का एक शब्द) =आग की लपटों से आने वाली तेज गर्मी
2 टिप्पणियाँ
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