लाला जगदलपुरी ने जीवन के अंतिम समयों में साहित्य और सार्वजनिक जीवन से स्वयं को निर्लिप्त कर लिया था। उनका यह आखिरी साक्षात्कार है जिसमें लाला जी ने केवल साहित्य ही नहीं अपितु समसामयिक विषयों पर भी अनेक प्रश्नों के उतर दिये हैं। आज जब साहित्यशिल्पी लाला जगदलपुरी के जन्मदिवस 17 दिसम्बर से विशेषांक प्रकाशित करने जा रही है तो इसकी पहली कड़ी के रूप में यह साक्षात्कार प्रकाशित किया आना महत्वपूर्ण था।
राजीव रंजन: लाला जी, उम्र के इस पडाव पर आप अब तक के अपने साहित्यिक-लेखकीय कार्यों को किस प्रकार मूल्यांकित करते हैं?
लाला जगदलपुरी: मैं अपने साहित्यिक-लेखकीय कार्यों को लगभग 91 वर्ष की आयु में भी किसी हद तक अपने ढंग से निभाता ही चला आ रहा हूँ, जबकि वृद्धावस्था का प्रभाव मन, मस्तिष्क और शरीर की सक्षमता को पहले की तरह अनुकूल नहीं रख पाता। फिर भी मैं किसी तरह स्वाध्याय और लेखन से जुडा हुआ हूँ।
राजीव रंजन: बस्तर की कविता का पर्याय लाला जगदलपुरी को ही माना जाता रहा है। एक युग जिसमें आप स्वयं, शानी जी तथा धनंजय वर्मा जी आदि का लेखन सम्मिलित है और दूसरा बस्तर का वर्तमान साहित्यिक परिवेश, क्या आप इन दोनों युगों में कोई अंतर पाते हैं?
लाला जगदलपुरी: बस्तर से मेरा जन्मजात संबंध स्थापित है, इस लिये साहित्य की विभिन्न विधाओं में बस्तर को मैनें भावनात्मक-अभिव्यक्तियाँ दे रखी हैं। साथ-साथ शोधात्मक भी। वैसे, मेरी मूल विधा तो काव्य ही है।
बस्तर के धनन्जय वर्मा और शानी अपने लेखन-प्रकाशन को ले कर हिन्दी साहित्य में अखिल भारतीय स्तर पर चर्चित होते चले आ रहे हैं। बस्तर के लिये यह गौरव का विषय है।
बस्तर का वर्तमान साहित्यिक परिवेश, वर्तमान की तरह तो चल रहा है परंतु इस परिवेश में लेखन-प्रकाशन से सम्बद्ध इक्के-दुक्के साहित्यकार ही प्रसंशनीय हो पाये हैं।
राजीव रंजन: बस्तर के साहित्य, इतिहास, संस्कृति, पर्यटन जैसे अनेकों विषयों पर आपनें उल्लेखनीय कार्य किया है। आपके कार्यों और पुस्तकों को बस्तर के हर प्रकार के अध्ययन व शोध के लिये मानक माना जाता है। आप संतुष्ट है अथवा अभी अपने कार्यों को पूर्ण नहीं मानते?
लाला जगदलपुरी: जहाँ तक हो सका मैनें बस्तर पर केन्द्रित विभिन्न विषयक लेखन-प्रकाशन को अपने ढंग से अंजाम दिया है। अपनी लेखकीय सामर्थ्य के अनुसार निश्चय ही बस्तर सम्बंधी अपने लेखन-प्रकाशन से मुझे आत्मतुष्टि मिली है। मेरे पाठक भी मेरे लेखन की आवश्यकता महसूस करते हैं।
राजीव रंजन: आपने बस्तर में राजतंत्र और प्रजातंत्र दोनो ही व्यवस्थायें देखीं है। बस्तर के आम आदमी को केन्द्र में रख कर इन दोनों ही व्यवस्थाओं में आप क्या अंतर महसूस करते हैं?
लाला जगदलपुरी: बस्तर में प्रजातांत्रिक गतिविधियाँ केवल प्रदर्शित होती चली आ रही हैं, किंतु बस्तर के लोकमानस में पूर्णत: आज भी राजतंत्र स्थापित है। “बस्तर दशहरा” शीर्षक की एक कविता की उल्लेखनीय पंक्तियाँ साक्षी हैं –
पेड कट कट करकहाँ के कहाँ चले गयेपर फूल रथ/ रैनी रथ/ हर रथजहाँ का वहीं खडा हैअपने विशालकाय रथ के सामनेरह गये बौने के बौनेरथ निर्माता बस्तर केऔर खिंचाव में हैंप्रजातंत्र के हाँथोंछत्रपति रथ कीराजसी रस्सियाँ”
राजीव रंजन: इन दिनों बस्तर में बारूद की गंध महसूस की जाने लगी हैं। इस क्षेत्र के वरिष्ठतम बुद्धिजीवी होने के नाते आपसे बस्तर अंचल में जारी नक्सल आतंक पर विचार जानना चाहूंगा।
लाला जगदलपुरी: बस्तर में नक्सली आतंक की भयानकता का मैं कट्टर विरोधी हूँ। नक्सली भी यदि मनुष्य ही हैं तो उन्हें मनुष्यता का मार्ग ग्रहण करना चाहिये।
राजीव रंजन: विचारधारा और साहित्य के अंतर्सम्बंध को आप किस दृष्टि से देखते हैं?
लाला जगदलपुरी: विचारधारा और साहित्य के अनिवार्य सम्बंध को मैं मानवीय दृष्टि से महसूस करता ही आ रहा हूँ।
राजीव रंजन: क्या आप मानते हैं कि आज पाठक धीरे धीरे कविता से दूर जा रहा है? इसके आप क्या कारण मानते हैं?
लाला जगदलपुरी: कविता स्वभावत: भावना प्रधान होती है, किंतु आज के अधिकांश व्यक्ति भावुकता से तालमेल नहीं बिठा पाते। इसी कारण कविता से आम पाठक दूर होते जा रहे हैं।
राजीव रंजन: इन दिनों आप क्या और किन विषयों पर लिख रहे हैं?
लाला जगदलपुरी: इन दिनों मेरा लेखन सीमित हो गया है। वयात्मक दृष्टि और शारीरिक दुर्बलता इसके प्रमुख कारण हैं। फिर भी कुछ न कुछ लिखता ही रहता हूँ। बिना लिखे रहा नहीं जाता।
राजीव रंजन: आपका संदेश?
लाला जगदलपुरी: मेरी हार्दिक इच्छा है कि कविता के प्रति पाठकों में अभिरुचि उत्पन्न हो।
2 टिप्पणियाँ
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जवाब देंहटाएंVirendra Thakur, Bablu Siddique, मुकेश सिंघानिया और 4 अन्य को यह पसंद है.
टिप्पणियाँ
Gs Manmohan
Gs Manmohan Wah kya baat hai.....
नापसंद · जवाब दें · 1 · 20 दिसंबर को 10:05 अपराह्न बजे
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