[लाला जी बस्तर की आंचलिक बोलियों के विद्वान थे। आज साहित्यशिल्पी पर लाला जगदलपुरी पर केन्द्रित विशेष श्रंखला के अंतर्गत प्रस्तुत है उनकी भतरी बोली में लिखी गयी एक रचना, अनुवाद सहित।]
ना जानी ह ओय
---------
कार बन्धु आय कोन? ना जानी होय
कार मने मयाँ सोन? ना जानी होय
इति-हँती ढाकला मसान-बादरी
काय बेर? काय जोन? ना जानी होय
इती मनुख, हँती मनुख, सबू मनुख जीव
कार लहू, कार लोन?
ना जानी होय
मालूम नहीं हो पाता
----------
कौन किसका बंधु है? नहीं जान पड़ता।
किस के मन में ममत्व का सोना है? नहीं मालूम पड़ता।
यहाँ वहाँ मरघटी बादल छा गये हैं।
क्या सूरज क्या चाँद? नहीं मालूम पडता।
यहाँ मनुष्य, वहाँ मनुष्य।
सभी मानव प्राणी हैं।
किसका लहू? किसका नमक है?
जान नहीं पड़ता।
ना जानी ह ओय
---------
कार बन्धु आय कोन? ना जानी होय
कार मने मयाँ सोन? ना जानी होय
इति-हँती ढाकला मसान-बादरी
काय बेर? काय जोन? ना जानी होय
इती मनुख, हँती मनुख, सबू मनुख जीव
कार लहू, कार लोन?
ना जानी होय
मालूम नहीं हो पाता
----------
कौन किसका बंधु है? नहीं जान पड़ता।
किस के मन में ममत्व का सोना है? नहीं मालूम पड़ता।
यहाँ वहाँ मरघटी बादल छा गये हैं।
क्या सूरज क्या चाँद? नहीं मालूम पडता।
यहाँ मनुष्य, वहाँ मनुष्य।
सभी मानव प्राणी हैं।
किसका लहू? किसका नमक है?
जान नहीं पड़ता।
1 टिप्पणियाँ
बहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.