एक विधा, एक आयाम
अथवा एक रास्ता तय करने में ही व्यक्ति को एक जीवन कम लगने लगता है, यह वाक्य डॉ.
के के झा जैसे मनीषियों पर लागू नहीं होता है। शिक्षा, पर्यटन, संस्कृति, इतिहास,
नृतत्वशास्त्र, पुरातत्व, पर्यावरण, विधि, साहित्य और भी न जाने कितने आयामों को
उन्होंने अपना कार्यक्षेत्र बनाया। 30.12.2014 की सुबह बयासी वर्ष की उम्र में
उन्होंने लम्बी बीमारी के बाद रायपुर के एक निजी अस्पताल में आखिरी स्वाँसे लीं।
उन्हें अपनी कर्म भूमि जगदलपुर (बस्तर) में पंचतत्व में विलीन किया गया किंतु यह
भी एक सत्य है कि वे सर्वदा रहेंगे। उनके कार्यों, उनकी स्मृतियों तथा योगदान को
कभी भुलाया नहीं जा सकता।
अपने कार्यक्षेत्र
को भी उन्होंने शिक्षा ही बनाया था। डॉ. कृष्ण कुमार झा ने केन्दीय विद्यालय संगठन
में सहायक आयुक्त के पद पर कार्य करते हुए उत्तर पूर्वी भारते के सात राज्यों,
छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश आदि राज्यों में अपनी सेवायें
प्रदान की हैं। यही नहीं वे अनेक महाविद्यालयों में प्राचार्य तथा विश्वविद्यालयों
में उपकुलपति जैसे पदों को भी सुशोभित करते रहे हैं। उन्होंने अपने निजी प्रयासों
से बस्तर संभाग में अनेक स्थानों पर विद्यालय तथा महाविद्यालय खुलवाये इनमें दंतेश्वरी
महिला महाविद्यालय, कांकेर कालेज, राष्ट्रीय विद्यालय तथा नेशनल
इंग्लिश स्कूल आदि प्रमुख हैं। अध्ययन को ले कर उनके जुनून को इसी बात से जाना जा
सकता है कि जिन दिनों बस्तर में शिक्षा के बुनियादी अवसर भी उपलब्ध नहीं थे
उन्होंने उच्च शिक्षा इंग्लैण्ड जा कर हासिल की। उन्होने यूरोप तथा एशिया के अनेक
देशों की अध्ययन यात्रायें की हैं। कॉमनवेल्थ एज्युकेशन फैलोशिप तथा विश्व
स्वास्थ्य संगठन के प्रायोजन में इंग्लैण्ड, स्कॉटलैंड आदि देशों में भी वे विशेष
अध्ययन के लिये गये थे। विश्व मंचों में उन्हें अनेक अवसरों पर भारत का
प्रतिनिधित्व करने का अवसर भी प्राप्त हुआ है। ऑरलो, बेल्ज़ियम में आयोजित
अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलन में उन्होंने न केवल सहभागिता ही की अपितु कतिपय
सत्रों की अध्यक्षता भी उनके द्वारा की गयी थी।
डॉ. कृष्ण कुमार झा को उनकी साहित्यिक
प्रतिभा के लिये भी विशेष रूप से जाना जाता है। बस्तर पर सर्वाधिक प्रामाणिक
इतिहास लेखन तो उन्होंने किया ही है जिसमें से अधिकतम कार्य अभी अप्रकाशित है व शोध
ग्रंथों के रूप में ही संकलित है। तथापि बस्तर के लोकनायक, दो महल जैसी पुस्तकों
के माध्यम से उन्होंने आंचलिक इतिहास को बहुत ही सरल शब्दों में जनसुलभ बना दिया
है। इतिहास पर उनकी समुद्रगुप्त, बालार्जुन जैसी कृतियाँ इस दृष्टि से भी अनूठी
हैं कि वे खण्डकाव्य के रूप में लिखी गयी हैं। देवयानी, आकाश कुसुम जैसे अनेक
उपन्यास भी उनकी रचनाधर्मिता का द्योतक हैं जिसमें अतीत और वर्तमान के अनेक
संवेदशील विषय छुवे गये हैं। बात जो कचोटती है वह यह कि डॉ. के के झा जैसे
व्यक्तित्व का बहुतायत कार्य उनके जीवनकाल में अप्रकाशित ही रह गया है, जो कुछ भी
छपा उनमे से अधिकांश जगदलपुर में ही निजी प्रयासों से सामने आ सका है। इसका अर्थ
यह नहीं कि उनके कार्यों का मूल्यांकन नहीं हुआ। अचीवमेंट अवार्ड, मिलेनियम अचीवर
अवार्ड, राष्ट्रीय सम्मान, हिन्द गौरव सम्मान आदि अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कारों व
सम्मानों से उन्हें विभूषित किया गया है।
डॉ. कृष्ण कुमार झा
न केवल इतिहासकार थे अपितु बस्तर के इतिहास का अभिन्न हिस्सा थे। वे महाराजा
प्रवीर चन्द्र भंजदेव तथा विजय चन्द्र भंजदेव के अच्छे मित्रों में गिने जाते
थे। वर्ष 1966 के कुख्यात राजमहल
गोलीकाण्ड के वे गवाहों में से भी रहे हैं। उस दौर में गवाहों पर कितना दबाव रहा
होगा इसकी सहज कल्पना की जा सकती है तथापि पाण्डेय कमीशन की राजमहल गोलीकाण्ड पर
रिपोर्ट के दूसरे अध्याय का विन्दु 17 सी अवश्य पढ़ने योग्य है जो कि उनकी
निर्भीकता का द्योतक भी है। जहाँ हर बयान में पुलिस कार्यवाई को क्लीनचिट दिये
जाने की गवाहों में होड़ लगी थी वहीं डॉ झा कहते हैं कि – "It was further seen that some adiwasis were coming out through a door in the front side of the new palace.
They were seated, surrounded and severely attacked with lathies by several
policemen. Whoever tried to escape was chased by many policemen and beaten. One
or two fleeing adiwasis were also fired at."
अपने एक साक्षात्कार में डॉ. झा ने बताया था कि इस
बेबाक बयानी के कारण उन्हें बहुत भुगतना भी पड़ा था तथा राजमहल परिसर में उनके
द्वारा संचालित महाविद्यालय की मान्यता रद्द कर उसे बंद करने के लिये विवश कर दिया
गया था। यह घटना अब इतिहास है तथा इतिहास लिखने वाले डॉ. कृष्ण कुमार झा भी अब इतिहास
के पन्नों में स्वर्णाक्षरों से अंकित हो गये हैं। बस्तर उन्हें कभी भुला नहीं
सकेगा।
2 टिप्पणियाँ
डॉ कृष्ण कुमार झा और उनके भ्राताश्री डॉ॰ बसंतकुमार झा से मैं सुपरिचित था।अपने जदलपुर/बस्तर/तोंगपाल/बचेली प्रवास के दौरान अनेक साहित्यिक सांस्कृतिक गतिविधियों ,तथा
जवाब देंहटाएंआकाशवाणी कार्यक्रमों और संगोष्ठियों मे मेरी सहभागिता रही थी।विश्व इतिहास,सांस्कृतिक
अनुशीलन और वैश्विक कथानकों की अनेक कही अनकही गाथाओं के निष्णात पूरोधा ज्ञाता थे।इनमहान विभूति की पुण्यतिथि पर अपनी विनम्र श्रद्धांजलि संप्रेषित कर रहा हूँ।
शिवकुमार शिवेश
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जवाब देंहटाएंRanu Tiwari, Sujash Sharma, Ravish Tiwari और 55 अन्य को यह पसंद है.
टिप्पणियाँ
Lalit Sharma
Lalit Sharma झा जी से भेंट होती थी, अब स्मृति शेष है। सादर नमन।
पसंद · जवाब दें · 1 · 30 दिसंबर 2015 को 10:20 पूर्वाह्न बजे
Shashank Shende
Shashank Shende डॉ. झा बहुत ही विनम्र और लाजवाब व्यक्तित्व के इंसान थे . बहुत कुछ सीखने को मिलता था उनसे . इतिहासवेत्ता थे साथ ही साहित्य पर भी पकड़ रखते थे . बस्तर के गिने-चुने विद्वानों में से एक . उनका सान्निध्य बहुत अच्छा लगता था वे बहुत प्यार करते थे . उनके घर भी कभी कभार जाना होता था और आकाशवाणी के विशिष्ट कार्यक्रमों में उनकी शिरकत होती थी
पसंद · जवाब दें · 2 · 30 दिसंबर 2015 को 10:56 पूर्वाह्न बजे
Himanshu Shekhar Jha
Himanshu Shekhar Jha Rajeev tumse ..Chachaji ko behd lagav tha..tumhari lekhan dristi ki mujhse charcha bhi karte the..
पसंद · जवाब दें · 30 दिसंबर 2015 को 04:47 अपराह्न बजे
Shivesh Shivakumar
Shivesh Shivakumar Dr K K Jha, appreciated my work,projects,innovations with special focus to my contributions towards cultural education,cultural literacy drive,cultural journalism through my CCRT CELL intiated at Kendriya Vidyalaya SPM,HOSHANGABAD
पसंद · जवाब दें · 31 दिसंबर 2015 को 03:43 पूर्वाह्न बजे
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