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फारगती ( हिसाब चुकाना ) [कहानी ] - योगेन्द्र प्रताप मौर्य

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लेख..........................लेख।

 योगेन्द्र प्रताप मौर्य रचनाकार परिचय:-



योगेन्द्र प्रताप मौर्य
ग्राम व पोस्ट - बरसठी
जिला - जौनपुर( उ.प्र.)
पिन- 222162
मो. -8400332294
ईमेल - yogendramaurya198384@gmail.com

उसकी मांग उजाड़ी जा रही थी ।चूड़ियाँ फोड़ी जा रहीं थीं । थोड़ी देर में स्त्रियों के साथ वह सफेद साड़ी पहने हुए दालान की तरफ जाती दिखाई पड़ी । कुछ स्त्रियां जोर- जोर से रो रहीं थीं । धवल की नजर उस पर ठहर गई । अरे ! ये क्या हुआ ? दो दिन पहले ही तो चूड़ियाँ बेचने आया था इधर । वह वैष्णवी को दूध-भात खिला रही थी ।वैष्णवी एक कौर मुंह में लेती फिर दुवारे बैठे कौओं, जो उसके दूध-भात पर नजर गड़ाये होते, उन्हें हाथ हिलाकर -हिलाकर कर उड़ाती ।किन्तु वे फिर आ जाते ।उसकी अम्मा थोड़े दूध-चावल कौओं की तरफ फेक देती ।वे झपट पड़ते । वैष्णवी खुश हो जाती ।उसकी अम्मा गुनगुनाती ।

आओ चंदा
सूरज आओ
सब मिलकर
गुड़िया को खिलाओ

गुड़िया मेरी परी
है सुन्दर
सखी - सहेली
इसे बनाओ

कांव-कांव करते
कौओं को
सब मिलकर , कहीं
दूर भगाओ

पर आज दो दिन पहले की ख़ुशी गमगीन थी । सबको रोते देख वैष्णवी भी अपनी अम्मा का आँचल पकड़े रो रही थी ।उसकी सुधि कौन लें ? धवल एक आदमी से पूछा - क्या हुआ भाई ? उसने कहा -अंधे हो क्या ? देख नहीं रहे हो कि मिरिगियहवा बौ राड़ हो गई ।

इतना कटु शब्द सुनकर धवल स्तब्ध रह गया । किन्तु उसने सत्य ही कहा था ।सत्य तो कड़वा होता ही है । हाँ ये अलग बात है कि उसकी भाषा भी कड़वी थी ।

धवल पिछली बातों में खो गया कि जब वह इधर चूड़ी बेचने आता और वैष्णवी की अम्मा उसे खाना खिला रही होती ।

तभी सासू माँ चिल्लाती - जब देखो इस डायन को खिलाती ही रहती है, पेट है कि मराड़ भरता ही नहीं । इसे ही आना था । कितनी पूजा - पाठ की थी ? कि मिरिगियहवा को एक लड़का हो जाई तो इसका भी वंश जाग जाई , लेकिन जल्दी तो इस राड़ को थी ।तो कहाँ से लड़का जनम लेता । मेरा बस चलता तो जन्म लेते ही मूड़ी मसक देती । न रहता बांस न बजती बांसुरी । बड़ी अजीब बात है । एक औरत होते हुए भी सासू माँ एक बच्ची के बारे में इतनी घटिया किस्म की बात कह रहीं थी । आखिर ओ भी तो किसी माँ के ही कोख से जन्मी है ? औरत न होती तो क्या यह संसार होता ? सासू माँ तो वैष्णवी के जन्मते ही दुःखों के सागर में गोता लगाने लगी थीं । न जाने कितनी भद्दी - भद्दी गालियों से अपने बहू का अपमान किया करती थीं ? समझ में नहीं आता है कि वंश कौन आगे बढ़ाता है ? लड़का या लड़की ।

रेशमी की अभी उमर ही कितनी रही होगी ? बमुश्किल बाईस-तेईस ।बेचारी की हालत नहीं देखी जाती ।इस घर में अब उसकी कैसे निभेगी ? निभे या न निभे रहना तो यहीं हैं और जातियों में तो कुछ ठीक था किन्तु ब्राम्हणों में पुनर्विवाह बड़ा मुश्किल काम था । कौन उसके पीड़ा को समझेगा ? सासू माँ या ससुर जी कि रेशमी के जेठ जी जो रेशमी पर हरदम आँख गड़ाये रहते थे । रेशमी को अब यह घर काटने को दौड़ता था । उसका मन बिलकुल भी इस घर में नहीं लगता था ।

रेशमी और धवल अक्सर स्कूल में होने वाले नाटकों में बड़े उत्साह के साथ भाग लेते थे और हर बार प्रथम पुरस्कार इनको ही मिलता था ।उसे भली-भांति याद है कि Ishwar Chandra Viddyasagar की किताब Hindu Widow Marriage पर आधारित नाटक में बेहतरीन अभिनय पर पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा था ।हर कोई रूमाल लिए अपने - अपने आंसू पोंछ रहा था । सचमुच सब को रुला के माने थे , रेशमी और धवल । प्रथम पुरस्कार इनके ही झोली में आया था । मुख्य अतिथि जी ने पुरस्कार देते समय कहा था - रेशमी और धवल एक दिन तुमलोग बड़ा नाम करोगे । सच पूछो तो इनका जीवन एक नाटक ही है ।जिसमें समय के साथ- साथ इनके किरदार बदल रहे थे ।

धवल और रेशमी पांचवी से ही साथ - साथ पढ़ रहे थे । दोनों पढ़ने में अच्छे थे, बचपन के हर सुख- दुःख में वे साथ होते ।धवल का घर रेशमी के घर से सटे पास वाले गांव में था । स्कूल दूर होने के कारण धवल और रेशमी साथ - साथ ही पढ़ने जाते थे । धवल मनिहारन था ।अपने बाबाजी की मृत्यु के कारण वह बारहवीं तक ही पढ़कर चूड़ियाँ बेचने का काम करने लगा । जबकि रेशमी के बाबूजी पंडिताई करके घर का खर्चा चलाते थे ।उनको लकवा मारे जाने के कारण घर की स्थिति और ख़राब हो गई । इसलिए रेशमी भी बारहवीं के बाद पढ़ाई नहीं कर पाई । बाबूजी रेशमी की शादी जल्दबादी में तय कर दिए , रेशमी फूल सी सुन्दर थी ।इसलिए बिना दहेज के ही शादी तय हो गई थी ।दूल्हा कैसा है ? कितना पढ़ा है ? क्या करता है ? कहीं उम्र में बड़ी तो नहीं है ? कोई बीमारी तो नहीं है ? बिना कुछ सोचे - समझे ।अगुआ मात्र के कहने पर तथा दहेज की मांग न होने पर शादी तय हो चुकी थी ।

रेशमी बाबूजी की सेवा - सुश्रूषा छोड़कर नहीं जाना चाहती थी ।किन्तु समाज के विधान के आगे वह विवश थी । उसके मन में कभी - कभी आता था कि उसका दूल्हा कैसा होगा ? गोरा -काला या श्याम रंग का ।उसका गढ़न अच्छा होगा या ख़राब ।उसका व्यवहार कैसा होगा ? किस मिजाज का होगा ? रेशमी के मन में तमाम प्रश्न उठते थे । वह बड़ी उलझन में थी । उस दिन धवल आया था । उसे रेशमी की शादी के बारे में पता चल गया था । वह रेशमी को चाहने लगा था । पर कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था । रेशमी उसके भावनाओँ को समझ रही थी ।किन्तु वह समाज के मान्यताओं से बगावत नहीं कर सकती थी । उसमें अपने कुनबे के दायरों को लाँघने की हिम्मत नहीं थी ।थोड़ी देर बाद धवल चुपचाप वहां से निकला उसका चेहरा उतरा हुआ था ,जैसे कि उसके बुने हुए ख्वाब टूट गए हो ।रेशमी उसे रोकना चाही किन्तु वह आगे बढ़ चुका था । धवल के दिल की बात दिल में ही रह गई । उसकी रेशमी किसी और की होने जा रही थी । धवल स्वयं से पूछने लगा - क्या उसका मेरे प्रति कभी आकर्षण नहीं था ? तब मेरा आकर्षण उसके प्रति कैसे हो गया ? शायद इसी को एक तरफा प्यार कहते है ।

आखिर वह दिन भी आया । शहनाई बजी ,शादी हुई , विदाई हुई और आ गई रेशमा अपने ससुराल दुलहन बनके । लड़के की अम्मा परी जैसी दुल्हन पाके फूले नहीं समा रही थी ।उसे तो बिन मांगे मुराद मिल गई थी ।

और उधर गांव में काना-फूसी शुरू हो चुकी थी - इतनी सुन्दर मेहरारू मिरगियहवा को कैसे मिल गई ? किसी ने कहा - ये तो मिसिर जी की देन है ।वही अगुआ थे ।बहुत बेईमान है मिसिरवा । किसी गरीब घर की कन्या को लिया के फंसा दिया । बेचारी की भाग्य फूटी थी । तभी तो यहाँ आ गई ।

धीरे - धीरे रेशमी भी जान गई कि इनको ( गोधन )मिर्गी आती है ।उसकी हालत ऐसी हो गई कि काटो तो खून नहीं ।पर बेचारी अब क्या करती ? उसने अपने बाबूजी पर विश्वास किया , पर उसके साथ तो विश्वासघात हुआ था ।उसकी सासू माँ तो उसे सुबह से लेकर शाम तक खरी-खोटी सुनाने लगी । बेचारी कितना भी काम करें ? पर सासू माँ के आदत की दवा नहीं थी । एक दिन गोधन को अचानक मिर्गी आई ।आसपास कोई नहीं था ।पानी में नाक रगड़ते - रगड़ते उसकी मृत्यु हो गई ।

बेचारी रेशमी और उसकी बेटी वैष्णवी को एक कोठरी मिला था रहने के लिए ।अब तक उसके अम्मा - बाबूजी स्वर्गसिधार चुके थे ।

उसका कोई था तो , बस धवल ही था ।बेचारा कितनी बार आ चुका था ।रेशमी का हालचाल लेने । चूड़ियाँ बेचने के बहाने ।

चूड़ियाँ ले लो... .चूड़ियाँ ले लो...... धवल चिल्ला रहा था वह इधर फिर आया था ।

वैष्णवी कंगन के लिए जिद करने लगी ।सो धवल बोला- बेटी ये ढेर सारे कंगन है जो पसंद आये वह जोड़ा निकाल लो ।

मेले पास पैसा नहीं है बाबू -वैष्णवी कहती है ।कोई अपने बाबूजी को पैसे देता है जा ले जा - धवल ने कहा ।वैष्णवी ख़ुशी-ख़ुशी कंगन लेके चली गई ।रेशमी खिड़की से सब देख रही थी ।

आज फिर दारू चढ़ा के आये थे जेठ जी - चिंता काहें करती हो हम हैं ना हमको बस खुश कर दो । और आराम से रहो इस घर में किसी का डर नहीं ।वैष्णवी का भी इंतजाम कर देंगे ये तो तुमसे भी ज्यादा सुन्दर है ।खूब नाम कमाई ।जेठ जी रेशमा का हाथ पकड़ना चाहे ।किन्तु रेशमी झट से कमरे में जाकर सिटकनी चढ़ा ली ।तभी वैष्णवी बोली -

क्या हुआ अम्मा काहे हांफ रही हो ?- कुछ नहीं बिटिया एक कुत्ते से डर गई थी ।

जेठजी कुत्ते ही तो थे जिनकी कोई औलाद नहीं थी । मेहरिया भी झगड़ा करके नइहर चली गई थी ।

रेशमी अब इस घर में बिलकुल भी सुरक्षित नहीं थी ।उसे आज अचानक स्कूल के दिनों का ख्याल हो आया ।वह नाटक जिसे उसने कभी खेला था । कहीं उसका नाटक सच तो नहीं होने जा रहा था ? जिसमें उसके पति के मरने के उपरांत उसकी शादी धवल से हो गई थी ।रेशमी को आज भी अपने गुरूजी की बातें याद हैं वे बताते थे कि ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने अंग्रेजों से सन् 1856 में हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम पारित करवाकर इस अमानवीय कृत्य पर रोक लगाने की कोशिश की थी ।

बड़ा आश्चर्य होता है जब एक औरत का पति मर जाता है ।तो वह औरत दूसरी विवाह नहीं कर सकती थी ,और यह प्रायः सुनने में आता है कि अरे इसकी तो एक औलाद भी है कहाँ लेके जायेगी ? अब तो इसी के सहारे पूरी जिंदगी बिता देगी । हो या न हो इसे बढ़ावा देने में समाज का ही हाथ होता है और जब आदमी की पत्नी मर जाती है तो वह आराम से दूसरी विवाह कर लेता है ।अरे अभी तो इसका पूरा उम्र पड़ा है ।अकेले कैसे बिता पायेगा पूरी जिंदगी और जल्द ही वह दूसरी शादी कर लेता है ।सच पूछिए तो भले ही एक तरफ स्त्रियों के आगे आने की बात होती है ।किन्तु उसकी समाज में स्विकारिता कम ही मिलती है ।कथनी - करनी में फर्क होता है ।आज भी कहीं न कहीं यह समाज पुरुष प्रधान ही है ।

रेशमी धवल के बारे में ही सोच रही थी कि बेचारा आज भी वह मुझे उतना ही चाहता है जितना कि पहले चाहता था ।मैंने तो कितनी बार कहा कि अब अपना घर बसा लो कब तक अकेले ही जिंदगी बिताओगे ? पर हर बार वह मेरे बातों को टाल जाता ।

तभी अचानक ससुरजी के खाँसने की आवाज आई ।

ससुर जी ही इस घर में ऐसे थे ।जो रेशमी का सुधि लेते थे । उन्हें पता भी था ।रेशमी के साथ जो भी हुआ बहुत गलत हुआ ।किन्तु उनकी भी सासू माँ और जेठ जी के आगे एक भी नहीं चल पाती थी । वे तो गोधन की शादी हो , इसके लिए तैयार भी न थे पर पंडिताइन के जिद के आगे वे भी विवश थे ।

पर अब क्या हो ? रेशमी की तो जिंदगी उजड़ चुकी थी । अब आगे की जिंदगी कैसे बीतेगी ? ससुर जी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था ।

वैष्णवी भी दो साल की हो गई थी ।रेशमी कहती है - बैठिये बाबूजी । बाबूजी खाट पर बैठ जाते हैं और बोले - कहो क्या बात है ? बेझिझक बोलो । रेशमी बोली - बाबूजी मैं अब यहाँ नहीं रहना चाहती हूँ ।ससुरजी बोले- पर जाओगी कहाँ ? रेशमी बोली- कहीं भी, जहाँ मन करेगा । ससुरजी बोले- किन्तु तुम्हारे साथ में वैष्णवी भी है ।रेशमी बोली - मैं उसे संभाल लूँगी बाबूजी ।फिर आगे बोली - मैं यहाँ अब सुरक्षित नहीं हूँ । ससुरजी बोले - नहीं बेटी मैं तुम्हारे साथ हूँ ।रेशमी बोली - कोई साथ नहीं है बाबूजी सब दिखावा है किसी ने मुझपर जुल्म किया ? किसी ने जबरदस्ती किया सब चुपचाप सहती गई ।सासू माँ के कटु शब्दों की भी हमने कोई परवाह नहीं की ।सारे अन्न्याय ,अत्याचार सब सहती गई ।सच बताऊँ तो , बाबू जी मैं यहाँ कभी भी खुश नहीं थी ।न ही हूँ ।बाबूजी अब हमें जाने दीजिये । बाबूजी मेरा सच्चा प्यार यह मनिहारन (धवल) है ।जिसे आज भी मेरा इंतजार है मेरे बचपन का दोस्त धवल ।ससुरजी की आँखों में आंसू भर आया और बोले -

अब और न रुलाओ बिटिया । मुझसे तुम्हारा दर्द नहीं देखा जा रहा था ।मैं अपने जिंदगी की इसे सबसे बड़ी भूल मानता हूँ और यह भूल सुधार करना चाहता था ।इसीलिए आज मैंने ही धवल को बुलाया था । ससुरजी ने रेशमी की हाथ धवल के हाथ में दे दी ।और बोले - जा बिटिया मैं तुझे फारगती (हिसाब चुकाना ) देता हूँ आज से तू सदा धवल की हो गई । वैष्णवी दोनों से चिपट जाती है ।बरसों का किया नाटक आज यथार्थ में तब्दील हो चुका था ।

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