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रसानंद दे छंद नर्मदा : ११ [लेखमाला]- आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

साहित्य शिल्पी
साहित्य शिल्पी के पाठकों के लिये आचार्य संजीव वर्मा "सलिल" ले कर प्रस्तुत हुए हैं "छंद और उसके विधानों" पर केन्द्रित आलेख माला। आचार्य संजीव वर्मा सलिल को अंतर्जाल जगत में किसी परिचय की आवश्यकता नहीं। आपने नागरिक अभियंत्रण में त्रिवर्षीय डिप्लोमा, बी.ई., एम.आई.ई., एम. आई. जी. एस., अर्थशास्त्र तथा दर्शनशास्त्र में एम. ए., एल-एल. बी., विशारद, पत्रकारिता में डिप्लोमा, कंप्युटर ऍप्लिकेशन में डिप्लोमा किया है।

साहित्य सेवा आपको अपनी बुआ महीयसी महादेवी वर्मा तथा माँ स्व. शांति देवी से विरासत में मिली है। आपकी प्रथम प्रकाशित कृति 'कलम के देव' भक्ति गीत संग्रह है। 'लोकतंत्र का मकबरा' तथा 'मीत मेरे' आपकी छंद मुक्त कविताओं के संग्रह हैं। आपकी चौथी प्रकाशित कृति है 'भूकंप के साथ जीना सीखें'। आपने निर्माण के नूपुर, नींव के पत्थर, राम नाम सुखदाई, तिनका-तिनका नीड़, सौरभ:, यदा-कदा, द्वार खड़े इतिहास के, काव्य मन्दाकिनी 2008 आदि पुस्तकों के साथ साथ अनेक पत्रिकाओं व स्मारिकाओं का भी संपादन किया है। आपने हिंदी साहित्य की विविध विधाओं में सृजन के साथ-साथ कई संस्कृत श्लोकों का हिंदी काव्यानुवाद किया है। आपकी प्रतिनिधि कविताओं का अंग्रेजी अनुवाद 'Contemporary Hindi Poetry" नामक ग्रन्थ में संकलित है। आपके द्वारा संपादित समालोचनात्मक कृति 'समयजयी साहित्यशिल्पी भागवत प्रसाद मिश्र 'नियाज़' बहुचर्चित है।

आपको देश-विदेश में 12 राज्यों की 50 सस्थाओं ने 75 सम्मानों से सम्मानित किया जिनमें प्रमुख हैं- आचार्य, वाग्विदाम्बर, 20वीं शताब्दी रत्न, कायस्थ रत्न, सरस्वती रत्न, संपादक रत्न, विज्ञान रत्न, कायस्थ कीर्तिध्वज, कायस्थ कुलभूषण, शारदा सुत, श्रेष्ठ गीतकार, भाषा भूषण, चित्रांश गौरव, साहित्य गौरव, साहित्य वारिधि, साहित्य शिरोमणि, साहित्य वारिधि, साहित्य दीप, साहित्य भारती, साहित्य श्री (3), काव्य श्री, मानसरोवर, साहित्य सम्मान, पाथेय सम्मान, वृक्ष मित्र सम्मान, हरी ठाकुर स्मृति सम्मान, बैरिस्टर छेदीलाल सम्मान, शायर वाकिफ सम्मान, रोहित कुमार सम्मान, वर्ष का व्यक्तित्व(4), शताब्दी का व्यक्तित्व आदि।

आपने अंतर्जाल पर हिंदी के विकास में बडी भूमिका निभाई है। साहित्य शिल्पी पर "काव्य का रचना शास्त्र (अलंकार परिचय)" स्तंभ से पाठक पूर्व में भी परिचित रहे हैं। प्रस्तुत है छंद पर इस महत्वपूर्ण लेख माला की ग्यारहवी कड़ी:
असार तज संसार सार गह    *
 
सार नाम के २ छंद हैं. १. मात्रिक २ वार्णिक 

१. यौगिक जातीय २८ मात्रिक सार छंद - प्रति पंक्ति २८ मात्रा, १६-१२ पर यति, पंक्त्यांत में २ गुरु। कभी-कभी सरसता के लिए गुरु लघु लघु या लघु लघु गुरु भी कर लिया जाता है।  
उदाहरण- 
१. धन्य नर्मदा तीर अलौकिक, करें तपस्या गौरा। 
२. मातृभूमि हित शीश कटाते, हँस सैनिक सीमा पर। 
३. नैन नशीले बिंधे ह्रदय में, मिलन हेतु मन तरसा। 

२. वार्णिक सार छंद - ७-७ पर यति 
उदाहरण -
१. गाओ गीत, होगी प्रीत जीतो हार, हो उद्धार। 
*
मात्रिक सार छंद 
दोहा की तरह रचने में सरल तथा पढ़ने, गाने, सुनने में सरस सार छंद यौगिक जाति का द्विपदिक,द्विचरणीय मात्रिक छंद है जिसकी हर पंक्ति में १६-१२ मात्राओं पर यति सहित कुल २८ मात्राएँ होती हैं पंक्ति के अंत में गुरु गुरु, गुरु लघु लघु अथवा लघु लघु गुरु का विधान है माधुर्य की दृष्टि से पंक्त्यांत में दो गुरु होना श्रेष्ठ है
उदाहरण: 

०१. सुनिए, पढ़िये, कहिए जी भर,  सार छंद सुख देगा 

०२. नहीं सफलता दूर रहेगी, करिए कर्म निरंतर 

०३. भूत लात के बात न मानें, दूर करो सरहद से    

०४. राधा जपती श्याम नाम नित, राधा जपते गिरिधर 

०५. कोयल दीदी ! कोयल दीदी ! मन बसंत बौराया ।
       सुरभित अलसित मधुमय मौसम, रसिक हृदय को भाया ॥

       कोयल दीदी ! कोयल दीदी ! वन बसंत ले आयी ।
       कूं कूं उसकी प्यारी बोली, हर जन-मन को भायी ॥     -विंध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी ’विनय’ 

मराठी भाषा का साकी छंद 'सार' पर ही आधारित है 

श्री रघुवंशी ब्रम्ह-प्रार्थित लक्ष्मीपति अवतरला। 
विश्व सहित ज्याच्या जनकत्वें, कौशल्या धवतरला।।  

सार छंद को लेकर गरमी जनों ने एक रोचक प्रयोग किया है. प्रथम चरण में छन्न पकैया की २ आवृत्ति कर शेष ३ चरण समन्यानुसार कहे जाते हैं

उदाहरण- 
छन्न पकैया छन्न पकैया, बजे ऐश का बाजा,
भूखी मरती जाये परजा, मौज उडाये राजा |

छन्न पकैया छन्न पकैया, सब वोटों की गोटी,
भूखे नंगे दल्ले भी अब ,खायें दारु बोटी | 

छन्न पकैया छन्न पकैया, देख रहे हो कक्का,
जितने कि बाहुबली यहाँ पर, टिकट सभी का पक्का |

छन्न पकैया छन्न पकैया, हर जुबान ये बातें
मस्ती मस्ती दिन हैं सारे, नशा नशा सी रातें |

छन्न पकैया छन्न पकैया, डर के पतझड़ भागे 
सारी धरती ही मुझको तो, दुल्हन जैसी लागे |

छन्न पकैया छन्न पकैया, बात बनी है तगड़ी 
बूढे अमलतास के सर पर, पीली पीली पगड़ी |   -योगराज प्रभाकर 

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- क्रमश:11

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