"काश! तुम लोगों ने मुझे इंसान ही रहने दिया होता, भगवान् नहीं समझा होता!" प्रभु विन्रम स्वर में बोले।

१. पूरा नाम : महावीर उत्तरांचली
२. उपनाम : "उत्तरांचली"
३. २४ जुलाई १९७१
४. जन्मस्थान : दिल्ली
५. (1.) आग का दरिया (ग़ज़ल संग्रह, २००९) अमृत प्रकाशन से। (2.) तीन पीढ़ियां : तीन कथाकार (कथा संग्रह में प्रेमचंद, मोहन राकेश और महावीर उत्तरांचली की ४ — ४ कहानियां; संपादक : सुरंजन, २००७) मगध प्रकाशन से। (3.) आग यह बदलाव की (ग़ज़ल संग्रह, २०१३) उत्तरांचली साहित्य संस्थान से। (4.) मन में नाचे मोर है (जनक छंद, २०१३) उत्तरांचली साहित्य संस्थान से।
२. उपनाम : "उत्तरांचली"
३. २४ जुलाई १९७१
४. जन्मस्थान : दिल्ली
५. (1.) आग का दरिया (ग़ज़ल संग्रह, २००९) अमृत प्रकाशन से। (2.) तीन पीढ़ियां : तीन कथाकार (कथा संग्रह में प्रेमचंद, मोहन राकेश और महावीर उत्तरांचली की ४ — ४ कहानियां; संपादक : सुरंजन, २००७) मगध प्रकाशन से। (3.) आग यह बदलाव की (ग़ज़ल संग्रह, २०१३) उत्तरांचली साहित्य संस्थान से। (4.) मन में नाचे मोर है (जनक छंद, २०१३) उत्तरांचली साहित्य संस्थान से।
"प्रभु ऐसा क्यों कह रहे हैं? क्या हमसे कुछ अपराध बन पड़ा है?" सबसे करीब खड़े भक्त ने करवद्ध हो, व्याकुलता से कहा।
"अगर मै सच्चा इंसान बनने की कोशिश करता तो संभवत: भगवान् भी हो जाता!" प्रभु ने पुन: विन्रमता के साथ कहा।
"वाह प्रभु वाह।" आज आपने 'नई बात' कह दी," भक्त श्रद्धा से नतमस्तक हो गया और वातावरण में चहुँ ओर प्रभु की जय-जयकार गूंजने लगी।
भगवान् बनने की दिशा में वह एक कदम और आगे बढ़ गए।
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