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कुंडलियाँ-4 - महावीर उत्तरांचली

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(16.) बूढ़ा पीपल गांव का

 महावीर उत्तरांचली रचनाकार परिचय:-



१. पूरा नाम : महावीर उत्तरांचली
२. उपनाम : "उत्तरांचली"
३. २४ जुलाई १९७१
४. जन्मस्थान : दिल्ली
५. (1.) आग का दरिया (ग़ज़ल संग्रह, २००९) अमृत प्रकाशन से। (2.) तीन पीढ़ियां : तीन कथाकार (कथा संग्रह में प्रेमचंद, मोहन राकेश और महावीर उत्तरांचली की ४ — ४ कहानियां; संपादक : सुरंजन, २००७) मगध प्रकाशन से। (3.) आग यह बदलाव की (ग़ज़ल संग्रह, २०१३) उत्तरांचली साहित्य संस्थान से। (4.) मन में नाचे मोर है (जनक छंद, २०१३) उत्तरांचली साहित्य संस्थान से।

बूढ़ा पीपल गांव का, रोता है दिन, रैन
शहरों के विस्तार से, उजड़ गया सुख, चैन
उजड़ गया सुख, चैन, कंकरीटों के जंगल
मचती भागम-भाग, कारखानों के दंगल
महावीर कविराय, बना है सोना, पीतल
युवा हुआ बरबाद, तड़पता बूढ़ा, पीपल

(17.) मायामृग भटका किये
माया मृग भटका किये, जब-जब मेरे पास
इच्छाओं में डूबकर, तब-तब रहा हतास
तब-तब रहा हतास, मिटी न मिटे यह तृष्णा
आदिम युग की प्यास, राधिका बिन ज्यों कृष्णा
महावीर कविराय, लगी झुरने यह काया
बूढ़ा हुआ शरीर, पर न मिटी मोह माया

(18.) तू-तू, मैं-मैं हो गई
तू-तू, मैं-मैं हो गई, बात बनी गंभीर
चलने लगे विवेक पर, लोभ-मोह के तीर
लोभ-मोह के तीर, पहेली तब क्या बूझे
जब न बचे विवेक, विकल्प न कोई सूझे
महावीर कविराय, ज़रा भी मत कर टैं-टैं
वरना होगी व्यर्थ, करी जो तू-तू, मैं-मैं

(19.) रब तो है अहसास भर
रब तो है अहसास भर, नहीं धूप या छाँव
वो तो घट-घट में बसा, नहीं हाथ वा पाँव
नहीं हाथ वा पाँव, निराकार उसे जानो
कह गए दयानन्द, बात वेदों की मानो
महावीर कविराय, पता यह सच सबको है
लाख करों इंकार, मगर जग में रब तो है

(20.) काटा पेड़ हरा-भरा
काटा पेड़ हरा-भरा, आँगन में दीवार
भाई-भाई लड़ रहे, मांग रहे अधिकार
मांग रहे अधिकार, धर्म संकट है भारी
रिश्ते-नाते गौण, गई सबकी मति मारी
महावीर कविराय, हो रहा सबको घाटा
लेकिन क्या उपचार, पेड खुद ही जो काटा

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